संदेश

जुलाई, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रेमन मैगसेसे पुरस्कार..निलीमा मिश्रा

चित्र
ग्रामीण क्षेत्र में पहुंचे रेमन मैगसेसे पुरस्कार का  अर्थ भारत में जमीनी स्तर का  कार्य, पारोला की  निलीमा मिश्रा ने किया गांव में बसता है भारत, उक्ति को सिध्द सामाजिक कार्यों, विभिन्न प्रकार के  उत्थानों, समाज की    दिशा निर्धारण व प्रेरणा के  लिए दिए जानेवाले विश्व के  एक  सर्वोच्च पुरस्कार रेमन मैगसेसे पुरस्कार का  वर्ष २०११ ·का  सम्मान जलगांव जिले के  पारोला तहसील के  बहादरपुर गांव की    सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री निलीमा मिश्रा को   दिए जाने की    घोषणा घोषणा के  साथ गांधीजी के  अमर वाक्य कि   गांव में भारत बसता है का  सत्यापन हुआ है। पारोला तहसील के  छोटे से गांव बहादरपुर से अपने सामाजिक   कार्यों को   ग्रामीण पटल पर उदय करनेवाली निलीमा के  बारे में किसी ने भी नहीं सोचा होगा कि   , गांव में सामान्य सा व्यक्तित्व एवं अपने काम की    धुनी निलीमा एक दिन अंतरराष्ट्रीय स्तर के  इस पुरस्का र का  सम्मान प्राप्त करेंगी। फिलीपींन्स के  राष्ट्राध्यक्ष रेमन मैगसे से की    स्मृती में वर्ष १९५७ से प्रारंभ किये गये इस पुरस्·कार को   उनकी    जयंती पर मनिला में आगामी ३१ अगस्त को   वितरित कि या
चित्र
जलगाँव जिले में आ सकता है मेगसेसे पुरस्कार, परोला की नीलिमा मिश्रा प्रबल दावेदार.. जलगाँव जिले के परोला के बहादरपुर में एक स्वमसेवी संगठन के माध्यम से, महिला बचत गुटों के निर्माण, अग्निहोत्र चिकित्सा शैली व अन्य कार्यों से विश्व पटल पर अपना और अपने संगठन का नाम रोशन करने वाली नीलिमा मिश्रा  २६ जुलाई या एक दो दिन में मेगसेसे पुरस्कारसे सम्मानित हो सकती हैं..      प्राप्त जानकारी के अनुसार कुछ दिन पूर्व ही  मेगसेसे पुरस्कार देने वाले सस्थान के नुमाइंदो ने परोला के बहादरपुर  स्थित  भगिनी  निवेदिता ग्रामीण विज्ञानं निकेतन का दौरा  करते हुए नीलिमा मिश्रा के सामाजिक कार्यों का  जायजा  लिया,  इतना  ही नहीं उनके ग्रामीण विकास के कार्यों की  सराहना करते हुए उनका नाम मेगसेसे पुरस्कार के   लिए प्रतिस्पर्धा में तय किया जिस पर २६ जुलाई  को अंतररास्ट्रीय निर्णायकों दयारा फैसला लिया  जा सकता है..  यदि यह पुरस्कार नीलिमा मिश्रा के  हक़  में  आता  है  तो  इसे  जलगाँव  जिले का  गौरव  कहा जायेगा..    जारी.. 

भूषण को जरूरत है मददगार हाथों की..

चित्र
जिंदगी से जूझते कलाकार भूषण  को जरूरत है मददगार हाथों की..   पिता द्वारा अपनी किडनी देने के बावजूद संघर्ष जारी है जीवन का..   जलगांव शहर के  रंगमंच, पथनाटय  एवं विभिन्न कलाओं  से जुडे एक  युवा कलाकार भुषण प्रमोद पाटिल को  अपने जन्मजात हुनर कला के  मंचन को  आज विपत्ति की  स्थिति में अस्पताल के  बिस्तर पर पडे सजीवता में एक किरदार  कि  तरह निभाना पड रहा है । लगभग १८ से २० वर्ष की  आयु में जलगांव के  पथनाटयों, रंगमंच के  किरदारों यहाँ तक  कि   राज्यनाटय स्पर्धा में अपनी कला का   लोहा मनवाते हुए पुरस्कृत होने वाले इस नौजवान भुषण प्रमोद पाटिल को  आज परिस्थितियों ने उछलने, कूदने एवं कुछ कर दिखाने की उम्र में अस्पताल के बिस्तर पर इंजेक्शन, दवांओं,ऑपरेशन आदि के साथ वेंटिलेटर पर   जीने पर मजबूर कर दिया है । आलम यह है कि साधारण  परिस्थिति के इस परिवार को अपनी सारी पूंजी भूषण के इलाज पर लगा देने के बाद क़र्ज़ में डूबना पड़ रहा है ।  फिर भी भूषण  के पिता- माता  और  रिश्तेदारों  ने हार न मानते हुए  अपना  सघर्ष जारी रखा है, किन्तु हकीकत यह है कि इस वक़्त भूषण और उसके परिवार को मददगार हांथों कि सख्त 

नीरा भसीन द्वारा रचित वह नारी ही तो है..

चित्र
वह नारी ही तो है.. उषा किरण सी कोमल , वर्षा की बूँदों सी पावन फूलों की पंखुड़ियों समान, पलकों का अवगुंथन उठा नव जात शिशु ने, जिससे पहले पहल निहारा वह नारी ही तो है... कोमल होंठों पर छाई पहली मुस्कान की बलैइयाँ लेती नन्हे नन्हे हाथों में अपने स्पर्श से जादू भरती मानव रूप को सर्व प्रथम अपने आँचल की छाँव देती वह नारी ही तो है ....  जिसने प्रभु वा परिजनो से परिचय कराया जिसने संस्कारों का सस्नेह पाठ पढ़ाया जिसने मात्रभूमि के लिए कर्तव्यों का भान कराया वह नारी ही तो है.. ममता वरसाती स्नेह लुटाती, पल पल जीने की राह दिखाती पथ दर्शाती,आदर्श बताती,धरती परसज्जन और वीर बनाती वह नारी ही तो है...     निर्माण की प्रेरणा ,ज्ञान की अविरल बहती  धारा, देश को विवेक और आनंद जिसने समर्पित किया, वह नारी ही तो है..   नीरा भसीन bhasineera@gmail.com

गंगा के असल संत की अंत कथा...

चित्र
तहलका पोर्टल से साभार.. विषय गंभीर है इस लिए साँझा कर रहे हैं.. असल संत की अंत कथा... गंगा को लेकर संतों और खनन माफिया के बीच छिड़ी लड़ाई में उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने एक नहीं बल्कि बार-बार और खुल्लमखुल्ला खनन माफिया का साथ दिया है. स्वामी निगमानंद की मौत के पीछे का सच सामने लाती आशीष खेतान और मनोज रावत की विशेष पड़ताल बाबा रामदेव को ध्यान खींचने की कला आती थी. स्वामी निगमानंद के पास यह हुनर नहीं था. इसलिए एक ओर रामदेव विदेशों में जमा काला धन वापस लाने और भ्रष्टाचारियों को फांसी देने जैसे मुद्दे उठाकर सुर्खियों में छाए हुए थे तो दूसरी तरफ 38 साल के निगमानंद उतनी ही गुमनामी के बीच 68 दिन से भूख हड़ताल पर थे. जबकि जिस मांग को लेकर वे यह अनशन कर रहे थे उसका महत्व अगर राष्ट्रीय हित के पैमाने से ही देखा जाए तो रामदेव द्वारा उठाए जा रहे मुद्दों से कहीं ज्यादा ही था. उनकी लड़ाई गंगा को बचाने की थी. आखिरकार 13 जून को निगमानंद चल बसे. संयोग देखिए कि उनकी मौत उसी अस्पताल के उसी वार्ड में हुई जहां सिर्फ सात दिन के अनशन के बाद रामदेव को भर्ती किया गया था. कुछ दिन हल्ला हुआ. रामदेव और उनकी क

फेसबुक नहीं फांसे बुक है..

चित्र
इन दिनों ऑफिस, महाविद्यालय, साइबर कैफे , कही भी  फेसबुक की कथित सोशल नेटवर्किंग दिखाई दे जाएगी । ऐसे में फेसबुक के लिए सिर्फ समय की बर्बादी की टिप्पणी से बेहत्तर और  कुछ नहीं हो सकता ।  किसी भी चीज़ के परिणाम और दुषपरिणाम देर बाद सामने उभर कर आते हैं । संभवत  फेसबुक भी अब धीरे धीरे मीठे ज़हर की तरह लोगों के दिलों दिमाग में उतरता दिखाई दे रहा है । सामान्य भाषा में कहें तो फेसबुक को अब फांसे यां फंसे बुक भी कहा जा सकता है । क्योंकि पहले तो सोशल नेटवर्किंग, चैटिंग, सामजिक  दायरा  बढाने के लिए मित्रों का साम्राज्य खड़ा करने की होड़ मची रहती है किन्तु बाद में यही होड़ सिरदर्दी का सबब बन जाती है । एक सर्वेक्षण के अनुसार निजी क्षेत्र की कंपनियों में काम करनेवाले  कर्मचारी अपने काम के समय में से लगभग 12.5 प्रतिशत हिस्सा सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों के चक्कर में बर्बाद करते हैं। हाल ही में औद्योगिक संगठन ‘द एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया’ (एसोचैम) द्वारा कराए गए सर्वेक्ष के अनुसार औसतन हर कार्यालय में कर्मचारी काम छोड़कर रोजाना लगभग एक घंटा फेसबुक,   ऑर्कुट, माइस्पेस, ट्विटर