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प्रभू श्रीराम के चरणों से पावन हुयी भूमि

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आस्था का सुहाना संगम...प्रभु राम और विज्ञान का द्वन्द .. चोपडा तहसील के अंतर्गत आनेवाले एक   प्राकृतिक श्रीक्षेत्र उनपदेव को पौराणिक कथाओं के आधार पर प्रभू श्रीराम के चरणों से पावन हुयी भूमि के रुप में प्रसिध्द इस क्षेत्र को रामायण काल   के शरभंग ऋषि   की तपोभूमि भी माना जाता है। उनपदेव के   बारे में एक विशेषता है कि, यहां के जलकुंड में गो मुख से प्राचीन   काल से गरम पानी निर्झर बह रहा है। इस गरम पानी के अद्भुत मान्यता के साथ महाराष्ट्र ही नही दूर-दूर के लोग भी श्रीक्षेत्र उनपदेव में पर्यटन के साथ-साथ आस्था लिये आते है। गरम पानी के उद्गम से भरा यह क्षेत्र सातपुडा पर्वत श्रेणियों के आंचल में समाया हुआ है। अब तक वैज्ञानिक से लेकर शास्त्रीय आधार पर भी श्रीक्षेत्र उनपदेव के इस गर्म पानी के श्रोत को जानने का      प्रयास किया जा चुका      है। किंतु प्रकृति के इस चमत्कार को दूर-दूरतक लोग आस्था से जुडा मानते है। पौराणिक आधार पर श्रीक्षेत्र उनपदेव में पौष माह में पारम्परिक यात्रा महोत्सव प्रारंभ होता है। जिसमें महाराष्ट्र के अलावा मध्यप्रदेश, गुजरात   यहां तक की राजस्थान आ

बंधन....

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     धीरे-धीरे सब कुछ भूल जाते हैं,   धरती पर शायद जीवाश्म ही रह जाते हैं..।  पहले तो सिर्फ़ पहचान होती है,   यूं फ़िर जिंदगी आम होती है..।  रिश्तों कि उडान में कोई अपना सा बन जाता है,  कोई कुछ कदम तक साथ आता है..।  कुछ पद-चिन्हों पर चलना कबूल करते हैं,   कुछ इन्सां की रौनक से ही जुड्ने की भूल करते   हैं..। दूर हो जाते हैं मंजर फ़िर भी कोई छू जाता है,  कोई दिल के करीब रह कर भी मीलों दूर पाता है..। सागर की लहरें बार-बार छूती हैं किनारे की रेत को, क्यों नही भूल जाती वह भी इस अचानक सी भेंट को..। हम नही कहते कि एक ही दिन हो किसी को याद करने का,  शेष बाकी दिन अपनी व्यस्तता को रोने का..। दिल में दर्द हो तो दुआ हर दिन ही भाता है, दिल से याद करने पर संदेश स्वंय ही पहुँच जाता है..। आज तो फ़ुर्सत भी नही अपने कुछ शब्द संदेशों में भेज दें,  अपने विचारों को अपनो में भेज दें..। खैर शिकवा नही शिकायत भी नहीं, अपनो से तो क्या परायों से भी नही..। इसी लिये तो हम इन्सान  कहलाते हैं , सूखी रेत पर न मिटने वाले पद-चिन्ह छोड जाते हैं..। जीवाश्म यां यादें कोई पहचान नहीं होती, अपनत्व और