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पदमालय तीर्थ स्थल में गणेशजी से जुडी है अलौकिक कथाएं

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    विराजमान है बाएं व दाएं सूंडवाले गणेशजी                                               जलगांव शहर से लगभग ३० किलोमीटर की दूरी  एरंडोल तहसील में  स्थित पदमालय तीर्थ स्थल गणेशोत्सव के दौरान एक बडे श्रध्दा का केंद्र बना हुआ है। आमतौर पर वर्ष भर पदमालय तीर्थ स्थल पर श्रध्दालुओं का आगमन होता है। किंतु गणेशोत्सव के दौरान पदमालय में विराजमान बाएं व दाएं सूंडवाले गणेशजी की मूर्ति का दर्शन श्रध्दालुओं को एक वरदान समान प्राप्त होता है। पदमालय तीर्थ स्थल की कई अलौकिक बाते इसे और भी महत्वपूर्ण बना देती है। खान्देश के इस पुरातन मंदिर में चांदी के सिंहासन पर गणेशजी की बाएं व दाएं सूंडवाली  मूर्ति रत्नों से सजी विराजमान है। मंदिर संस्थान के विश्वस्तों का कहना है कि, महाराष्ट्र के अष्टविनायक की तरह मान्यता रखनेवाले इस तीर्थ को ढाई पीठ के आधे पीठ के रुप में जाना जाता है।            गणेशजी की मूर्ति किसी के द्वारा भी तैयार न करते हुये स्वयं भू रुप में प्रकट हुई है। पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि, शेषनाग ने जब धरती को विराजमान कराया था उस समय गणेशजी से दाएं और दर्शन देने के लिए अनुनय विनय

खान्देश भर में मनाया गया कृषिपर्व पोला, आधुनिकता की दौड में सजे हुए बैल प्रस्तुत कर रहे थे अनोखापन

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  जलगांव शहर सहित पूरे खानदेश में  सोमवार २५ अगस्त को कृषिपर्व के रुप में पोला उत्सव मनाया गया। इस वर्ष समाधान कारक बारिश होने के बावजुद पोला पर्व पर कुछ खास उत्साह दिखाई नहीं पडा। किन्तू परंपराओं को जारी रखते हुए पोला पर्व मनाया गया। आगामी दिनों में चुनाव की सरगर्मियां देखते हुए भी पोला पर्व पर प्रभाव देखा गया। जिले में इस त्यौहार की तैयारियों के लिए एक पखवाडे से लोगों की भागदौड प्रारंभ हो गई थी। शनिवार को शहर के बाजार क्षेत्र में पोला पर्व की खरिददारी देखी गई। रविवार को बाजार बंद होने के बावजुद भी छुटपुट खरीददार दिखाई दिये। खान्देश सहित संपूर्ण महाराष्ट्र में मनाये जाने की परंपरा है। आम तौर पर महाराष्ट्र के कृ षि प्रधान क्षेत्रों में पोला उत्सव बडी धुमधाम व श्रध्दा के साथ मनाया जाता है। महाराष्ट्र के अलावा छत्तीसगढ व अन्य राज्यों में भी पोला उत्सव मनाने की परंपरा है। पोला पर्व भादो मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इसे पोला पाटन व कुशोत्पाटनी आदि नाम से भी जाना जाता है। पोला त्यौहार में किसानों द्वारा अपने पशूधन खासतौर से बैल आदि की  पूजा, प्रतिष्ठा कर अपने पशु धन के लिए स्वास्थ्