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खान्देश का कृषिपर्व पोला

खान्देश का कृषिपर्व पोला पोला पर्व खान्देश सहित संपूर्ण महाराष्ट्र में मनाये जाने की परंपरा है। आम तौर पर महाराष्ट्र के कृ षि प्रधान क्षेत्रों में पोला उत्सव बडी धुमधाम व श्रध्दा के साथ मनाया जाता है। किंतु महाराष्ट्र के अलावा छत्तीसगढ व अन्य राज्यों में भी पोला उत्सव मनाने की परंपरा है। पोला पर्व भादो मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इसे पोला पाटन व कुशोत्पाटनी आदि नाम से भी जाना जाता है। पोला त्यौहार में किसानों द्वारा अपने पशूधन खासतौर से बैल आदि की  पूजा प्रतिष्ठा कर अपने पशु धन के लिए स्वास्थ्य की मंगल कामना की जाती है। कृषी कार्य पूरा होने के संकेत- पोला त्यौहार के समय खेतों में अंतिम निंदाई का कार्य लगभग पूरा हो जाता है। खेतों में धान के पौधे लहलहाते हैं। किसानों का ऐसा मानना है कि पोला के दिन धान की फसल गर्भ धारण करती है। इसलिए पशूधन की पूजा के साथ किसान इस दिन खेत जाना भी वर्जित मानते है। इस तथ्य को यह लोकपर्व प्रमाणित करता है। पोला उत्सव पर बैल के महत्व को देखते हुये अनुभवियों द्वारा कहा जाता है कि, यदि  वैज्ञानिक प्रणाली को छोड़ दें तो बैल के बिना कृषि संबंधि

कलामहर्षी केकी मूस

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                    चालीसगांव के प्रख्यात              अंतराष्ट्रीय कलाकार व छाया चित्रकार                                              कलामहर्षी केकी मूस