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उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए..

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उजाले   अपनी   यादों   के   हमारे   साथ   रहने   दो , न   जाने   किस   गली   में   ज़िंदगी   की   शाम   हो   जाए.. बशीर बद्र का यह शेर याद दिलाता है वर्ष १९७५ में आई सुचित्रा सेन की फिल्म आंधी की   ।   सुचित्रा सेन की राजनीती   विषय पर केन्द्रित यह आखरी फिल्म थी   ।   यह फिल्म   निर्माण से लेकर ही विवादों यां सुर्ख़ियों में रही. आमतौर पर फिल्म आंधी की पटकथा को प्रख्यात लेखक कमलेश्वर की करती काली आंधी पर आधारित मन गया   । किन्तु हकीकत यह है   की गुलज़ार साहब ने इसकी पटकथा को जन्म दिया   ।   इतना ही नहीं इस फिल्म के चर्चित वा आजतक गुनगुनाये जा रहे   गीत भी गुलज़ार ने ही लिखे थे   ।   आंधी फिल्म को आज तक  इंदिरा गाँधी के व्यक्तित्व से जोड़ कर देखा जाता रहा है ,  हालांकि गुलज़ार इसका हमेशा से खंडन करते रहे हैं   ।   इंदिरा गाँधी के पहनावे से   मिलता जुलता नायिका सुचित्रा सेन   का पहनावा व फिल्म के दक्षिण में फिल्म के पोस्टरों पर लिखा सन्देश हमेशा इसे विवादस्पद बनाता रहा है   ।   दक्षिण   में पोस्टरों पर लिखा गया थ की अपनी प्रधानमंत्री को देखें स्क्रीन पर ... तत्कालीन प्रधान