जिंदगी.. जीने का खुबसूरत अंदाज़
जिंदगी.. एक खुबसुरत शब्द से आगाज़ करते हैं अपने लिखने का.. देखने और जीने का अपना अपना नजरिया है.. कुछ पंक्तियाँ उभर रही हैं ज़ेहन में.. एक और अहसान कर दे जिंदगी, अब तो शहर भी चरमराने लगे हैं मेरी आहट से, बुत खौफ खाते हैं शायद मेरी रूह से, मैं डरावना नहीं , लेकिन अक्स बन गया है कुछ ऐसा .. शाम की फुर्सत में बैठे हुए कुछ सोच रहा था कि जिसने भी दिया होगा उसे नाम.. बहुत सोच कर कहा होगा.. " जिंदगी " कुछ असंतोष पैदा करने वाले लोग जब यह कहते हैं की मेरी तो जिंदगी ख़राब हो गई , क्या बकवास जिंदगी मिली है तब लगता है की इश्वर की इस खुबसूरत कायनात को , शायरों - कवियों की सुन्दर कल्पनाओं से सजी इस अद्भुत विरासत को हम ही थकी-हारी सी बना लेते हैं. खैर जिंदगी शब्द को सदी के लेखकों , शायरों ने बहुत उम्