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जिंदगी.. जीने का खुबसूरत अंदाज़

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जिंदगी.. एक खुबसुरत शब्द से आगाज़ करते हैं अपने लिखने का.. देखने और जीने का अपना अपना नजरिया है.. कुछ पंक्तियाँ उभर रही हैं ज़ेहन में..                         एक और अहसान कर दे जिंदगी,                         अब तो शहर भी चरमराने लगे हैं                         मेरी आहट से,                         बुत खौफ खाते हैं शायद                         मेरी रूह से,                         मैं डरावना नहीं ,                          लेकिन                         अक्स बन गया है कुछ ऐसा .. शाम की फुर्सत में बैठे हुए कुछ सोच रहा था कि जिसने भी दिया होगा उसे नाम.. बहुत सोच कर कहा होगा..                                         " जिंदगी " कुछ असंतोष पैदा करने वाले लोग जब यह कहते हैं की मेरी तो  जिंदगी ख़राब हो गई , क्या बकवास जिंदगी मिली है तब लगता है की इश्वर की इस खुबसूरत कायनात को , शायरों - कवियों की सुन्दर कल्पनाओं से सजी इस अद्भुत विरासत को हम ही थकी-हारी सी बना लेते हैं. खैर जिंदगी शब्द को सदी के लेखकों , शायरों ने बहुत उम्

जगजीत , आशा और लता जी.. वाह क्या बात है

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ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह , स्वरकोकिला लता जी व आशा जी की जुगलबंदी का यह गीत लाजवाब, अप्रतिम है. गीत की शुरुवात में जगजीत जी द्वारा कहे गए शेर के अंदाज़ को गीत के अंत तक महसूस किया जा सकता है. आइना देख के बोले यह सँवरने वाले अब तो बे -मौत मरेंगे मेरे मरने वाले देखके तुमको होश में आना भूल गए याद रहे तुम औ ज़माना भूल गए जब सामने तुम जब सामने तुम , आ जाते हो क्या जानिये क्या हो जाता है कुछ मिल जाता हा i, कुछ खो जाता है क्या जानिये क्या हो जाता है चाहा था यह कहेंगे सोचा था सोचा था वो कहेंगे आये वोह सामने तो , कुछ भी न कह सके बस देखा के उन्हें हम. देख कर तुझको यकीन होता है कोई इतना भी हसीं होता है देख पाते हैं कहाँ हम तुमको दिल कहीं होश कहीं होता है हो जब सामने तुम , आ जाते हो क्या जानिये क्या हो जाता है कुछ मिल जाता है , कुछ खो जाता हा i क्या जानीय क्या हो जाता है आ कर चले न जाना , ऐसे नहीं सताना दे कर हंसी लबों को , आँखों को मत रुलाना देना न बेक़रारी दिल का करार बन के यादों में खो न जाना तुम इंतज़ार बन के , इंतज़ार बन के भूल कर तुमको न जी पाएंगे साथ तुम होगी जह