भोर की पहली किरण
भोर की पहली किरण पक्षियों का कलरव चाह कर भी बिस्तर से न निकले का मन उमंग उत्साह के पन्नो की उधेड़ बुन में दिन भर के ताने बाने बुनते हुए न जाने कब सुबह हो गई.. थकान और पसीने की बदबू, मिटटी की सौंधी खुशबु गोधुली पर गोरज से माथा सजाये लौट कर थकान कैसे मिटायें इस धीमी सोच में सूरज ढल गया घर पहुंचा तो तेरा मुस्कुराता चेहरा देख दिन भर का सारा कशमकश रफूचक्कर हो गया तेरी यह मुस्कान ही मेरे जीने का अदब है.. गुनगुना रहा हूँ यह गीत तू ही मेरा जीवन है... विशाल