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दुर्घटना से लौट कर

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अभी अभी तो मौत से साक्षात्कार करके लौटा हूँ रुसवा हो गई आग़ोश में न पाकर कोशिश तो थी गले लगा लेती वो फिर सहसा उसे ही लगा होगा अभी तो बहुत कुछ बनाना है इन हांथों से बेचारी लाचार, क्या ज़बाब दे उनको जो राह तक रहे थे मेरे जाने की उसे संघर्ष करना पड़ा अनगिनित सवालों से जो दुआएं कर रहे मेरी लंबी उम्र की इसी उहापोह में ही शायद वार करना पड़ा होगा उसे मज़बूर थी मुझे समेटने को वहीं दुविधा में थी ज़िंदा छोड़ने की मैं तो सिर्फ इतना जानता कि, मारने वाले से तारने वाला बड़ा कोई तो था जो वज्र का आघात झेल गया मुझ पर आई विपदा में खुद ही खेल गया कुछ दर्द छोड़ गया अहसास दिलाने को बची खुची ज़िन्दगी रिश्तों में निभाने को दुआ व स्नेह बहुत सारा था अपनों का बाल भी बांका न हो सका सपनो का