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जिंदगी.. जीने का खुबसूरत अंदाज़

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जिंदगी.. एक खुबसुरत शब्द से आगाज़ करते हैं अपने लिखने का.. देखने और जीने का अपना अपना नजरिया है.. कुछ पंक्तियाँ उभर रही हैं ज़ेहन में..                         एक और अहसान कर दे जिंदगी,                         अब तो शहर भी चरमराने लगे हैं                         मेरी आहट से,                         बुत खौफ खाते हैं शायद                         मेरी रूह से,      ...

जगजीत , आशा और लता जी.. वाह क्या बात है

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ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह , स्वरकोकिला लता जी व आशा जी की जुगलबंदी का यह गीत लाजवाब, अप्रतिम है. गीत की शुरुवात में जगजीत जी द्वारा कहे गए शेर के अंदाज़ को गीत के अंत तक महसूस किया जा सकता है. आइना देख के बोले यह सँवरने वाले अब तो बे -मौत मरेंगे मेरे मरने वाले देखके तुमको होश में आना भूल गए याद रहे तुम औ ज़माना भूल गए जब सामने तुम जब सामने तुम , आ जाते हो क्या जानिये क्या हो जाता है कुछ मिल जाता हा i, कुछ खो जाता है क्या जानिये क्या हो जाता है चाहा था यह कहेंगे सोचा था सोचा था वो कहेंगे आये वोह सामने तो , कुछ भी न कह सके बस देखा के उन्हें हम. देख कर तुझको यकीन होता है कोई इतना भी हसीं होता है देख पाते हैं कहाँ हम तुमको दिल कहीं होश कहीं होता है हो जब सामने तुम , आ जाते हो क्या जानिये क्या हो जाता है कुछ मिल जाता है , कुछ खो जाता हा i क्या जानीय क्या हो जाता है आ कर चले न जाना , ऐसे नहीं सताना दे कर हंसी लबों को , आँखों को मत रुलाना देना न बेक़रारी दिल का करार बन के यादों में खो न जाना तुम इंतज़ार बन के , इंतज़ार बन के भूल कर तुमको न जी पाएंगे साथ तुम होगी जह...

बुरा न मानो होली है

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जन्मदिन की हार्दिक शुभ कामना बच्चा लोग

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                                  मार्च माह के आगमन के साथ ही मानो मेरे लिए पर्व माह की शुरुवात हो जाती है ।   आज एक मार्च को मेरी छोटी बिटिया यानी मेरे बेटे " कनक " का जन्मदिन होता है । एक नटखट सा जल्दी ही सबमें घुलमिल जाने वाला व्यक्तित्व , अपने माता-पिता के अलावा सबकी आँखों का तारा , सबका प्यारा है । मंच सञ्चालन , प्रस्तुति  के लिए कनक कभी भी तैयार रहती है ।    तीन मार्च को मेरे छोटे भाई विपुल का जन्मदिन है । प्रोफ़ेसर साहब छोटे होने के कारण हमारी पीढ़ी के लाडले हैं । सत्तरह मार्च को मेरी बड़ी बिटिया वंशिका का जन्मदिन है । बांसुरी का तात्पर्य रकने वाले नाम उच्चारण की वंशिका का कला में कोई सानी नहीं है । कम उम्र में उम्दा कला की साधना को पाने का उसका सफल प्रयास है । गणेश जी की मिटटी की प्रतिमा बनाना सीख कर “वंश” ने दूसरों को भी सिखाना प्रारंभ किया ।                       वैसे कहते हैं की मार्च में जन्म...

भोर की पहली किरण

भोर की पहली किरण  पक्षियों का कलरव  चाह कर भी बिस्तर से न निकले का मन                            उमंग उत्साह के पन्नो                            की उधेड़ बुन में                           दिन भर के                           ताने बाने बुनते हुए                           न जाने कब सुबह हो गई.. थकान और पसीने की बदबू, मिटटी की सौंधी खुशबु गोधुली पर गोरज से माथा सजाये लौट कर थकान कैसे मिटायें                           इस धीमी सोच में                           सूरज ढल गया                ...