बुरहानपुर में मुगल कालीन यादें पानी के रूप में आज भी ताजा

बुरहानपुर में मुगल कालीन यादें पानी के रूप में आज भी ताजा,
  वर्ष १६१५ पानी के रचनात्मक प्रयास अभी तक जारी 
  

           
महाराष्ट्र भर में खान्देश को सबसे ज्यादा गरम क्षेत्र माना जाता है । अप्रैल माह के अंत तक इन दिनों खान्देश का तापमान ४७ डिग्री सेल्सीअस के आकडे को सहजता से छू कर अपने गरम इरादों को प्रस्तुत कर चुका है । एैसे में खान्देश में पानी की किल्लत का सहजता से ही अनुमान लगाया जा सकता है । इन दिनों जलगांव जिले के कई क्षेत्रों में पानी के लिए खीचतान एवं दर दर की ठोकरे खाना प्रारम्भ हो चुका है । किन्तू पानी के लिए पर्याप्त व्यवस्थापन व नियोजन न होने के कारण खान्देश भर में गरमी का दौर आते ही पानी की कमी के स्वर तेज होते दिखाई पडने लगते है । एैसे में रावेर तहसील के लोग पास में सटे हुए मध्यप्रदेश के बुरहानपुर शहर की मुगल कालीन जलव्यवस्थापन व्यवस्था को याद करते फूले नही समाते। मध्यप्रदेश का बुरहानपुर पूर्व काल में खान्देश प्रदेश के भूभाग के रूप में जाना जाता था । कालांतर महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश के निर्माण के साथ सीमाओं का समझौता होते हुए बुरहानपुर शहर मध्यप्रदेश के अन्तर्गत चला गया । बुरहानपुर में वर्ष १६१५ में पानी के लिए किये गये प्रयास आज २१ वीं शताब्दी में भी लगभग ५०० वर्ष के उपरान्त लोगों की प्यास बुझाने में कारगर साबित हो रहा है । बुरहानपुर में १६४० में एक भूगर्भ के नीचे पानी के व्यवस्थापन को लेकर जलयोजना तैयार की गई थी । इस भूमिगत जलयोजना के लिए खान्देश के तत्कालीन बादशाह अकबर ने अपने नौ रत्नों में से एक अब्दुल रहीम खान खाना के अनुभवों एवं कहने के कारण बुरहानपुर परिसर की पानी की किल्लत को ध्यान में रखते हुए दूरगामी परिणामों के लिए एक भूमिगत जलवितरण योजना प्रारम्भ की गई । बुरहानपुर शहर के उत्तरी भाग में तकरीबन ४ किलो मीटर की दूरी पर सातपुडा पहाडिओं के बीच चुने गये एक स्थान पर तकरीबन ८० फुट की गहराई वाले एक जल स्त्रोत को चुना गया । जिसके पास तत्कालीन रियासत के विशेषज्ञ कारीगरों व्दारा एक ४० फुट की लंबाई एवं २० फुट की चौडाई का भूमिगत तल घर तैयार किया गया । इस तलघर में प्राकृतिक पानी के पहाडी मार्गो से जलसंचयन करते हुए एक योजनाबद्ध तरीके से बुरहानपुर के लालबाग एवं आज के सब्जी बाजार क्षेत्र तक लाया गया । बुरहानपुर की सतपुडा पहाडिय़ों से ताप्ती नदी की ओर बहने वाले भूमिगत जल स्रोतों को तीन स्थानों पर रोका गया है, जिन्हे स्थानीय लोगों व्दारा मूल भण्डारा, सूखा भण्डारा और चिंताहरण जलाशय कहा जाता है । विदित हो कि, लालबाग क्षेत्र में स्थित फुब्बारा परिसर तक लाये गये इस जल के माध्यम से आज भी बुरहानपुर में इसी १६१५ की जल योजना से यह फुब्बारा चलाया जा रहा है । अकबर के कार्यकाल में अब्दुल रहीम खान खाना के व्दारा तैयार किये गये इस जल परियोजनाओं के तहत इस काम के लिए ३ किलो मीटर जलवाहिनी के लिए खुदाई की गई । जिस पर १०४ छोटे छोटे कुएं बनाए गये थे । इन सभी माध्यमों से बुरहानपुर शहर के फुब्बारे तक लाये गये इस जल परियोजना का आज भी पीने के पानी के रूप में प्रयोग किया जा रहा है । 
              

 बुरहानपुर की  यह जल परियोजना रेलवे लाइन के पार उत्तर दिशा  में कुछ ही किलोमीटर पर  शहर की अपेक्षा लगभग 100 फुट ऊंची सतह पर स्थित हैं । जल परियोजना के भूमिगत जल वाहिनियों के इन आठ संघों में से नालियों के रूप में दो संघ बहुत पहले ही नष्ट कर दिए गए थे । अन्य छह संघों में कईं कुएं हैं जो भूमिगत गैलरियों से संबद्ध है और जो इस प्रकार निर्मित है कि पास की पहाडिय़ों से जल का रिसना घाटी के मध्य की ओर खींचा जा सके । इस प्रकार पर्याप्त जल संग्रहित होने पर वह नगर में या उसके निकटवर्ती स्थानों में इष्ट स्थान तक चिनाई पाइप के माध्यम से  ले जाया जाता था । एक संघ से, जो मूल भण्डारा कहलाता है, से महल और नगर के मध्य भाग में जलपूर्ति की जाती थी, जो कईं वायुकूपकों से युक्त लगभग 1300 सौ फुट सुरंग मार्ग में जाता था ।  जल एक पक्के जलाशय, जो जाली कारंजा कहलाता है, जिसमें छोड़ा जाता था और यहां से मिट्टी के और तराशे गए पत्थर के पाइपों के जरिए पानी नगर में विभिन्न करंजों और वाटर टॉवरों में पहुंचाया जाता था। सूखा भण्डारा जल प्रदाय केंद्र मूलत: पान टाडो और लालबाग के अन्य बागों या मुगल सूबेदार के विलास के उद्यान की सिंचाई के लिए था ।  वर्ष १६१५ में शुरू हुए इस जल कार्या के लिए एक विशेष तकनीक के माध्यम से खुदाई काम करते हुए पानी की पाईपें आदि लाई गयी । इस बात का अभी भी शोध सामने आ रहा है कि, किस प्रकार से इस ३ किलो मीटर के क्षेत्र में पानी का प्रबन्ध किया गया । क्योंकि, लालबाग के फुब्बारे तक मिट्टी के पाईपों व्दारा यह पानी जनता तक पहुॅंचाया गया है । बुरहानपुर की १६ वीं शताब्दी की इस जलपरियोजना में जो मिट्टी का पाईप इस्तेमाल किया गया है, उसे अनुमानत: आग में तपा कर तैयार किया गया होगा । लेकिन, इस की मजबूती आज के जंगविरोधक सिलीकौन कोटेट पाईप से भी ज्यादा प्रभावी दिखाई पडती है । इस पाईप लाईन पर १०४ छोटे-छोटे कूएं भी खोदे गये है। प्रत्येक २ कूओं के बीच का अंतर लगभग १०० फिट आंका गया है।  इस भूमिगत जलपरियोजना के लिए पहले तलघर में उतरने के लिए सीडिओं से नीचे जाना पडता था । किन्तू अब मध्यप्रदेश शासन व्दारा इसका रखरखाव करते हुए लिफ्ट आदि लगा दी गई है । इस सन्दर्भ में पुरातत्व विभाग व्दारा अनाधिकृत रूप से दी गई जानकारी के अनुसार कहा जाता है कि, अकबर के कार्यकाल में निर्माण की गई इस अनोखी जलपरियोजना के सन्दर्भ में सिर्फ इस तरह की दो परियोजना ही क्रियान्वित है । जिनमें से दूसरी परियोजनाएं इरान के खुले भू भाग में स्थित बताई जाती है । विदित हो कि, बुरहानपुर की इस जलसंचयन एवं वितरण तकनीक का उल्लेख अकबर के इतिहास में लहरे खैर नाम से दर्ज है । हैरत की बात यह है कि, बिना किसी हवा के दबाव एवं बिजली की सहायता के यह पानी की परियोजना आज भी बुरहानपुर में ५०० साल बाद लोगों को पानी मुहैया करा रही है । मध्यप्रदेश शासन ने इस का पर्यटन विकास करने के लिए निधी स्वरूप आर्थिक सहयोग भी प्रदान किया है । रावेर से मात्र २० किलो मीटर की दूरी पर लगभग ५०० साल पहले बनाई गई यह जल परियोजना पानी की किल्लत के समय रावेर वासियों की बात बात पर सामने दिखाई पडती है । किन्तू विडंबना तो यह है कि, इतिहास के पन्नों से निकले इस तरह के लाभकारी एवं दूरगामी परिणामों को शासन नामक व्यवस्थाए स्विकारने से इन्कार कर देती है । बुरहानपुर एवं आसपास से सटे इलाकों में पानी के जलसंचयन व व्यवस्थापन के लिए सतत कार्य होते रहने के बावजूद खान्देश में इन कार्यो के लिए किसी भी प्रकार की प्रेरणा न लेते हुए खान्देश को जल से उपेक्षित रखा जा रहा है । विदित हो कि, बुरहानपुर और खण्डवा के पास तोरणी नामक गांव में डा.कलाम के राष्ट्रपति कार्यकाल में एक स्वयंसेवी संगठन के माध्यम से प्रभावी जलसंचयन भूजल व्यवस्थापन आदि के लिए कार्य किया गया था । इस कार्य के माध्यम से पानी के लिए तरसते तोरणी गांव में जहां भूजल अपेक्षा से दुगने स्तर पर नीचे चला गया था वही अब यह भूजल सहजता से कुछ फुट खुदाई पर उपलब्ध हो जाता है । विदित हो कि, तत्कालीन राष्ट्रपति डा.कलाम अपने कार्यकाल के पहले दौरे के रूप में तोरणी गांव की इस जल व्यवस्थापन कार्य प्रणाली को देखने आये थे । फिर भी  मध्यप्रदेश से मात्र २० किलो मीटर दूर महाराष्ट्र में अभी भी इस प्रकार के जलव्यवस्थापन के लिए उदासीनता व्याप्त है ।


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