अंग्रेजो द्वारा स्थापित पाचोरा-जामनेर ट्रेन जमा हो रही इतिहास के झरोखों में
अंग्रेजो द्वारा स्थापित पाचोरा-जामनेर ट्रेन जमा हो रही इतिहास के झरोखों में
तकनिकी के दौर में रेलवे विभाग की तरक्की आज देखते ही बनती है। अधिकांश स्थानों पर रेलवे मार्ग में बदलाव करते हुए उच्चतकनिक को लागू कर दिया गया है। एक ओर रेलवे विभाग नये संशोधनों से ट्रेन दुर्घटनाओं को रोकने के लिए स्वचलित तकनिक निर्माण कर ते हुए सफलता की ओर बढ रहा है। वहीं दूसरी ओर जलगांव जिले में अंग्रेजो के काल में प्रारंभ की गई ५६ किलो मीटर दूरी का पाचोरा-जामनेर एकल नैरोगेज रेलवे मार्ग आज भी इतिहास की कहानी को बखान कर रहा है। महाराष्ट्र सरकार में जलगांव जिले से कई बार मंत्री पद दिया गया। किंतू किसी भी राजनैतिक नुमाइंदे ने पाचोरा-जामनेर रेल मार्ग के लिए व्यापक प्रयास नहंीं किये। यही कारण है कि मात्र ५६ किलो मीटर का यह मार्ग पुरातन धरोहर के रूप में स्थापित हो गया है। पाचोरा-जामनेर लोहमार्ग की स्थापना का कार्य मुंबई के मेसर्स शापुर्जी गोडबोले संस्थान की ओर से वर्ष १९१८ में पहूर तक निर्माण किया गया था। बाद में पहूर से जामनेर का भाग १९१९ में नागरिकों के लिए खोला गया। राज्य शासन के नियंत्रण में होने वाले इस मार्ग को ग्रेट इंडियन पैनिन सुला रेलवे कंपनी के पास अनुबंध प्रणाली पर दिया गया। लगभग ६ वर्ष तक यह अनुबंध जारी रहा। और १ जुलाई १९२५ को पुन: राज्य सरकार ने अपना नियंत्रण स्थापित किया। बाद में मध्य रेलवे की स्थापना के उपरांत इस रेल मार्ग की छोटी लाईन को भुसावल मंडल के अंतर्गत जोड दिया गया था। पाचोरा-जामनेर रेल मार्ग पर पहले तीन यात्री गांडियां चलाई जाती थी। जामनेर से पाचोरा के बीच वरखेडी, पिंपलगांव, शेंदुर्णी, पहूर, भागदारे आदि रेलवे स्टेशन हुआ करते है। कालांतर में समय के बदलाव के साथ कोयले के इंजन पर दौड रही इस छोटी लाईन छोटी ट्रेन में डिजल इंजन जोडा गया। समुद्री सतह से २६४ मीटर की उंचाई पर स्थित जामनेर स्टेशन से पाचोरा के लिए इस ट्रेन में ६ डिब्बे जोडकर यात्रा का दायित्व निभाया जा रहा है। पाचोरा व जामनेर दो तहसीलों को जोडने वाली इस ट्रेन के लिये जामनेर में १८ कर्मी कार्यरत किये गए है। जिनमे एक स्टेशन मास्टर, एक गेट मैन, एक चाबी वाला, दो इंजन चालक व १३ गैंग मैन शामिल है। पैसे की बचत को देखा जाए तो पाचोरा से जामनेर के लिए सडक मार्ग से लगने वाले किराये की तुलना में इस ट्रेन के माध्यम से मात्र २५ प्रतिशत किराया खर्च हो रहा है। किंतू इस छोटी लाईन का कोई विस्तार ना होने के कारण पाचोरा-जामनेर ट्रेन इतिहास में समाती जा रही है।
स्थानिय सांसदों द्वारा संसद में बोलने के अपने अधिकार को दिखाने के लिये मात्र इस मार्ग का उल्लेख किया गया है। किंतू स्थानिय जिले की राजनीति लगभग सौं वर्षांे की इस धरोहर के विकास के लिए खुलकर मैदान में नहीं आई। भाजपा के सांसद रहे वाई.जी.महाजन ने २३ मार्च २००१ में संसद में इस मार्ग के लिए प्रश्न निर्माण किया था। श्री महाजन ने कहा था कि उनके संसदीय क्षेत्र जलगांव में मध्य रेलवे पर पाचोरा-जामनेर मार्ग पर छोटी रेल लाईन मौजूद है। जलगांव जिले के पाचोरा तथा जामनेर ये दो महत्वपूर्ण तहसील इस रेल लाईन से जुड़े हुए हैं, इस छोटी रेल लाईन को ब्रॉड गेज लाईन में परिवर्तित करने हेतु रेल मंत्रालय द्वारा सर्वेक्षण कार्य भी प्रारंभ किया गया था। श्री महाजन ने संसद में छोटी रेल लाईन को बड़ी रेल लाईन में परिवर्तित करके जामनेर से आगे बोदवड तक बढ़ाने की आवश्यकता को भी प्रकट किया था। अपने भाषण में वाईजी महाजन ने कहा था कि इस परिवर्तन से क्षेत्र का विकास होगा। विश्व-प्रसिद्ध अजंता गुफाएं इस रेल लाईन के पहूर स्टेशन से सिर्फ 30 कि.मी. की दूरी पर है। अगर इस छोटी रेल लाईन को बड़ी रेल लाईन में परिवर्तित किया जाता है तो देश-विदेश के पर्यटकों को अजंता जाने के लिए सुविधा हो सकती है। बाद में वर्ष २००८-०९ के रेलवे बजट सत्र में बोलते हुए भाजपा सांसद हरीभाऊ जावले ने १० मार्च २००८ को पाचोरा-जामनेर मार्ग का मुद्दा उठाया। तत्कालिन रेलवे मंत्री लालु प्रसाद यादव को जानकारी देते हुए श्री जावले ने कहा था कि पाचोरा-जामनेर नैरोगेज लाइन का आमान परिवर्तन ब्राडगेज लाइन में करने और उसे मलकापुर तक बढ़ाने के काम का उद्घाटन दिनांक 16.02.1996 को तत्कालिन माननीय रेल राज्य मंत्री, श्री सुरेश कलमाडी ने किया था। किंतू इस मार्ग पर अब तक कोई निर्माण कार्य प्रारंभ नहीं हुआ। इन सब बातों के बाद पाचोरा-जामनेर रेल मार्ग व ऐतिहासिक छोटी ट्रेन अब इतिहास के पन्नों में अंकित होती दिखाई दे रही है। क्योंकि रेलवे विभाग को ऐतिहासिक वस्तुओं की जगह शुद्ध मुनाफे के भाग की ओर देखना पसंद है। एक ओर तो अजंता की गुफाओं में विदेशी व केंद्रिय सहयोग से पर्यटन के दुरगामी अवसर स्थापित किये जा रहे है। वहीं दूसरी ओर पर्यटकों को इस रेल मार्ग से जोडकर सुविधाएं देने के स्वप्र को अनदेखा किया जा रहा है।
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