खानदेश की प्रचलित स्वांग लोककला
खानदेश की प्रचलित स्वांग लोक कला
खानदेश में विठ्ठल,बालाजी, प्रभु श्री राम आदि के रथोत्सव निकाले जाने की परंपरा है।इन रथोत्सव में मोर पंख धारी स्वांग की लोककला प्रस्तुत की जाती है। परंपराओं के आधार पर लोककथाओं के पात्र के रूप में भवानी देवी व भूर राक्षस के युद्ध संवाद को प्रस्तुत करने वाले स्वांग बडी संख्या में प्रस्तुत किए जाते हैं । अथाह भीड के बीच यह मोर पंख धारी स्वांग सभी का आकर्षण बनते हैं । रथोत्सव के दौरान एक दिन पहले से कुल तीन दिन तक के लिये इन स्वांग धारी भवानी स्वरूप की बडी संख्या में प्रस्तुती रहती है। स्वांग की इस लोककला में सिर्फ पुरूष वर्ग अपनी मन्नत पुरी करने के लिए देवी मां भवानी का स्वांग यां स्वरूप लेकर अपने मुखमंडल पर सिंदूर लगाकर, दैत्य और मां भवानी के बीच होने वाले युद्ध का वर्णन करते है। इस लोककलात्मक नृत्य के दौरान डफ, संबल, ढोल, नगाडा आदि वाद्योंं के एक अनोखे ताल पर युद्ध नृत्य आरंभ करते है। जैसे जैसे वादयों का ताल अति शीध्रता से बजाया जाता है, वैसे ही देवी माँ के यह स्वांग संगीत के लय और ताल पर शरीर कि गतीविधीयां और भी तेज करते है।
इस नृत्य को देखते समय दर्शकों के शरिर पर रोंगटे खडे हो जाते है। एक प्रचलित दंतकथा के अनुसार भगवान विष्णू को निद्रा अवस्था में देख भुर नामक राक्षस उन्हे मारने पहुँचा। किन्तू श्री विष्णू को इस स्थिती से उबारने के लिए आदि शक्ति ने स्वांग रचकर भुर दैत्य का वध किया था। उसी दंतकथा के आधार पर आज भी उसी स्वांग क ो रचकर स्थानीय कलाकार मन्नत मांगते है, ताकि वो भी श्री विष्णू को बचाने के पुण्य का आशिर्वाद प्राप्त कर सके। गौरतबल है कि इस सारे स्वांग उत्सव में मन्नत मानकर भिक्षा ग्रहण करने का कार्य सिर्फ पुरूष ही करते है। इस मन्नत के लिए पुरूष देवी मां भवानी जैसा पहनावा करतेह है।अपने सिर पर मयुर पंखो का अलग अलग प्रकारों का आकर्षक छत्र बनाकर पहनते है। बडी ही कार्यकुशलता से किया गया यह छत्र देखने में बडा ही सुंंदर लगता है। स्वांग अपने सिर पर यह छत्र पहनते से पुर्व बडी ही आत्मियता और भावपूर्ण श्रद्धा से इसकी पूजा अर्चना करते है।
युद्ध के समय का माँ भवानी का रौद्ररूप दिखाने के लिए यह स्वांग अपने मुखमंडल पर सिंदुर लगाकर माँ भवानी का प्रतिकात्मक रौद्ररूप अपने इस नृत्य को माँ भवानी और राक्षस के बीच होने वाले युद्ध को नृत्यनाटिका के रूप में दिखाते है। इस नृत्यनाटिका के दौरान उन स्वांगो के पैरों मे बंधे घुंगरू की छनक वादकों के बजते हुए ताल पर स्वांगो को जोशपुर्ण प्रेरणा प्रदान करते है। इस नृत्यनाटिका में स्वांग माँ भवानी के हाथों मे विराजे हुए शस्त्रों का प्रतिकात्मक रूप से उपयोग करते है। और उनकी पुरातन कथाओं व मान्यताओं के आधार पर विषम संख्या ही होती है। अर्थात जो पुरूष यह स्वांग रचकर मन्नत मांगने का कार्य करता है वह एक, तीन, पांच, सात वर्ष के क्रम में ही भिक्षा मांगकर स्वांग रचते हुए अपनी श्रद्धा पूरी करता है।
रामायण की एक कथा के अनुसार भगवान विष्णू के राम अवतार में मयुर ने उन्हे एक कार्य सम्पन्न करने में मदद की थी। इसी कारण वश मयुर व्दारा किये गये कार्य का कर्ज चुकाने के लिए अपने अंाठवे अवतार ,कृष्ण अवतार में मयुर पंख अपने सिर पर धारण करते हुए एक अलग अंदाज में श्री कृष्ण भगवान ने अजरामर कर दिया।
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