खान्देश का परंपरागत कानुबाई उत्सव

खान्देश  का  परंपरागत  कानुबाई  उत्सव

सावन माह की शुरुवात से ही खान्देश में विभिन्न उत्सवों की रौनक दिखाई देने लगती है। इनमें खान्देश में मनाये जाने वाले विभिन्न त्यौहारों में ग्रामीण विभागों सहित शहरी भागों में भी बडी ही धूमधाम से मनाये जाने वाले कानुबाई उत्सव का आज भी अपना एक अलग स्थान है । सोमवार को विगत एक सप्ताह से चली आ रही तैयारियों के  कानुबाई उत्सव का समापन हुआ। आम तौर पर स्थानिय प्रथाओं में श्रावण की नागपंचमी के उपरांत आने वाले पहले रविवार को यह कानुबाई उत्सव मनाया जाता है। दूसरे दिन सोमवार को ही बडे ही धूमधाम से भक्तिपूर्ण वातावरण में कानूबाई उत्सव का समापन किया जाता है ।कानुबाई उत्सव के लिये पुरानी परंपरा को देखते हुए तिथी आदि नहीं देखी जाती। सोमवार को परिवारों द्वारा घर में सजाई गई कानुबाई की पुजा अर्चना करते हुए मेहरुण तालाब परिसर में विसर्जन किया गया। खान्देश के इस कानूबाई उत्सव को स्थानीय ग्रामीणों में रोट का उत्सव भी कहा जाता है । कानुबाई उत्सव के बहाने खान्देश में परिवार व कुनबे एकत्रित होते हुए पूजा पाठ के साथ खानपान का सामुहिक आनंद भी उठाते है। दीपावली त्यौहार मनाने के लिये जिस प्रकार से घर की सजावट करते हुए बरतनों को साफ किया जाता है। खानदेश की अराध्यदेवी कानुबाई के इस त्यौहार के अवसर पर दूर दराज के इलाकों में अपने नौकरी, कामकाज आदि के लिए गये हुए सभी परिजन इक ठ्ठा होते है । और अपनी कुलदेवता की कानुबाई के रूप में पूजा अर्चना करते है ।

कानूबाई उत्सव के अवसर पर एक बडे चौरंग पर कानूबाई की  स्थापना की जाती है । इस चौरंग को पवित्र कलश, आभूषण, धान्य, वृक्षों के पत्ते तथा हल्दी कुमकुम आदि से सजाया जाता है । इसी प्रकार से कानुबाई उत्सव में भी महिला वर्ग तैयारियां करती है। त्यौहार के मौके पर इकठ्ठा हुए परिवार रोट के लिये भी तैयारी करते है। रोट के पकवान बनाने के लिये परिवार के बडे बुजुर्ग पुरूष वर्ग की गिनती के अनुसार सवा मुठ्ठी भर गेंहु, चावल, दाल लेते हुए उन्हे पिसा जाता है। और इसका खाद्य पदार्थ बनाकर पारंपारिक पुरणपुडी, खीर, चने की दाल डालकर आमटी, सीताफल की सब्जी लगभग प्रत्येक घरों में बनाई जाती है। रोट त्यौहार में प्याज लहसुन का प्रयोग प्रतिबंधित किया जाता है। इन सब के लिये घर का पुरूष वर्ग नदी से पानी लाकर सहयोग करता है। स्थानिय बुजुर्गों ने बताया कि परिवार मिलकर यह बनाया गया रोट त्यौहार के तीन दिन बाद तक मिल बैठकर खाते  रहते है। यदि इस बीच पुर्णिमा नक्ष्यत्र लगता है तो बचा हुआ रोट सुरक्षित जगह पर गढ्ढा खोदकर उसमें डालदिया जाता है। लोगों को विश्वास है कि कानुबाई की स्थापना के साथ घर, आसपास व गांव की सभी समस्याएं खत्म हो जाती है। अन्य परंपराओं के बीच रात भर नाचते खेलते लोकगीतों को बीच जागरण किया जाता है। बाद में रोट खाद्य पदार्थों का थाल सजाकर कानूबाई को भोग लगाने के बाद उत्सव पुरा किया जाता है। दूसरे दिन नदी पर कानूबाई का विसर्जन करने के  लिये पुन: परंपरागत तरिकों से सिर पर कानुबाई को रखकर विसर्जन के लिये ले जाते है। बैंड बाजे एवं कानूबाई के भक्तिगीतों के साथ भावपूर्ण वातावरण में कानूबाई का विसर्जन किया जाता है । शहर के बलीराम पेठ, भोईटे नगर, आशा बाबा नगर, हरिविठ्ठल नगर, राम पेठ, पुराना जलगांव आदि क्षेत्रों में सभी समाज के लोगों द्वारा इस त्यौहार को मनाया जाता है । सोमवार होने के चलते व्यवसायिक व्यस्ततम होते हुए भी अपने परिवारों के साथ कानुबाई के गीत गाते दिखाई देते हैं । इस त्यौहार में जिन घरों में कानुबाई उत्सव का आयोजन किसी कारणवश नहीं होता, ऐसे परिवार शहर के अन्य भागों में स्थापित की गयी कानुबाई के दर्शन के लिए भी उत्सुकता पुर्वक खडे दिखायी दिये। खानदेश की लोकगाथाओं के आधार पर कहा जाता है कि यह क्षेत्र कानुबाई देवी का क्षेत्र है। जिसके कारण इस परिसर को पहले कानहादेश और बाद में अपभ्रंश होते हुए खानदेश में बदल गया। किंतू इतिहास के झरोंखों में मुगल शासन काल में राजा फारूखी खान द्वारा बसाया गया क्षेत्र खानदेश कहलाया है।

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