हिंदी के प्रख्यात व्यंगकार डा.शंकर पुणतांबेकर
हिंदी के प्रख्यात व्यंगकार डा.शंकर पुणतांबेकर का निधन
हिंदी साहित्य में व्यंग्यविधा के पुरोधा कहे जाने वाले डा.शंकर पुणतांबेकर का रविवार ३१ जनवरी दोपहर १.३० बजे निधन हो गया। वह ९२ वें वर्ष के थे। हाल ही में विगत ८ जनवरी २०१६ को उन्होने अपना जन्म दिन मनाया। शंकर पुणतांबेकर के उपरांत उनके तीन बेटे, बेटी, बहुएं, नाती पोते से भरा पुरा परिवार मौजुद है। साहित्य क्षेत्र में व्यंग्य लेखक के रूप में एक बडा नाम डा.शंकर पुणतांबेकर रहन सहन में एक साधारण व्यक्तीत्व व असाधारण प्रतिभा थे। उनका जन्म मध्यप्रदेश के गुणा जिले के कुंभराज में वर्ष १९२५ में हुआ था। शंकर रघुनाथ पुणतांबेकर के रूप में प्रचलित साहित्यकार की प्राथमिक शिक्षा, दिक्षा, विदिशा, ग्वालियर व आग्रा में हुई। उन्होने हिंदी में पीएच.डी. करते हुए जलगांव के मुलजी जेठा महाविद्यालय में वर्ष १९६० से १९८५ तक लगातार २५ वर्ष अध्यापन कार्य किया। वर्ष १९८५ में अवकाश प्राप्ती के उपरांत वह सीधे साहित्य सेवा व लेखन कार्य में जुट गये। ९० वर्ष से अधिक आयु के होने के बावजुद डा.पुणतांबेकर ने अपने लेखन कार्य को सतत जारी रखा। अपने अंतिम दिनों में भी वह चलते-फिरते समाज में विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से मार्गदर्शन देते हुए साहित्य व लेखन क्षेत्र की विधाओं पर अपने अनुभव सांझा कर रहे थे। विशेष बात यह है कि इस वृद्धावस्था में भी पुर्ण सचेतना के साथ डा.शंकर पुणतांबेकर आम तौर पर प्रकाशित होने वाली आलोचनाओं, व्यंग्यों पर अपनी मुक्त टिप्पणी दिया करते थे। इतना ही नहीं कॉमेडी यां व्यंग्य के नाम पर समाज में परोसी जा रही फुहडता से भी वह अच्छे खासे व्यथित दिखाई देते थे। डा.शंकर पुणतांबेकर ने हिंदी में प्रारंभिक दौर में गंभीरता भरा लेखन शुरू किया। बाद में वह वर्ष १९७२ से व्यंग्य लेखन की विधा में जुडे गए। और उन्होने उच्च कोटी का व्यंग्य लिखते हुए समाज को १९ पुस्तके व्यंग्य पर उपलब्ध कराई। डा.पुणतांबेकर की अबतक ३० से अधिक पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है। उनके व्यंग्य उपन्यास, नाटक, संग्रह आदि में एक मंत्री स्वर्ग लोक में, तीन व्यंग्य, बा-अदब बेमुलाहिजा, दुर्घटना से दुर्घटना तक, व्यंग्य अमरकोष, फिलहाल बिखरे पन्ने आदि प्रमुख है। आम आदमी को सामने रखकर लिखने वाले डा.पुणतांबेकर ने ओबामा के राष्ट्रपति बनते ही ओबामा को केंद्रीत रखते हुए सटीक व्यंग्य भी लिखा। जिसे बडे पैमाने पर सराहा गया। डा.पुणतांबेकर के एक मंत्री स्वर्ग लोक में उपन्यास का कन्नड व मराठी भाषाओं में अनुवाद भी किया गया है। इसके अलावा भी उनकी कईं कृतियों का मराठी भाषा में अनुवाद हुआ है। उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय सहित अनेक विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय में वह शोध छात्रों के मार्गदर्शक थे। डा.पुणतांबेकर संस्कार भारती के जलगांव अध्यक्ष भी रह चुके थे। वर्ष १९९२ वें में उन्हे महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी का मुक्ती बोध पुरस्कार प्रदान किया गया। वर्ष १९९४ वें में वह अखिल भारतीय व्यंग्य के चकल्लस पुरस्कार से स मानित हुए। वर्ष १९९८ वें में हैदराबाद में उन्हे आचार्य आनंदऋषी साहित्य पुरस्कार प्रदान किया गया। दिल्ली के पुरूषोत्तम न्यास में वर्ष २००२ में उन्हे व्यंग्य श्री पुरस्कार से नवाजा़। वर्ष २००४ में लखनऊ के माध्यम साहित्यीक संस्थान के शिखिर सम्मान पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत के पुर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई द्वारा चलाई गई लखनऊ से प्रकाशित राष्ट्रधर्म पत्रिका में भी वह नियमित व्यंग्य लेखक थे। अपने अंतिम दिनों में वह वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की जा रही समग्र हिंदी साहित्यीक खंड के कार्य से जुडे हुए थे।
- विशाल चड्ढा
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें