बेटी बचाओ, बेटी पढाओ अभियान
८ मार्च महिला दिवस पर विशेष
बेटी बचाओ, बेटी पढाओ अभियान के अखिल भारतीय संयोजक डा.राजेंद्र फडके से इस महत्वपूर्ण अभियान पर देश में हो रहे कार्यो व उसके परिणामो पर चर्चा की विशाल चड्ढा ने
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पदभार संभालते ही देश में कन्या जन्मदर के गिरते स्वरूप पर चिंता व्यक्त करते हुए बेटियों के लिए एक बडी योजना प्रारंभ करने का निर्णय लिया। उन्होंने हरियाणा के पानीपत से २२ जनवरी २०१५ को बेटी बचाओ, बेटी पढाओ अभियान की शुरूआत करने का निर्णय लिया। जिसे बाद में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शहा ने बैंगलूर की केंद्रिय बैठक में प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में नमामी गंगे व स्वच्छता अभियान के साथ चलाए जाने की घोषणा की। प्राथमिक दौर में देश के कन्या जन्मदर वाले १०० जिलो को चुना गया। देश के सभी ३६ राज्यो में इस कार्य का शुभारंभ करते हुए बैठके व आकडो के संकलन का कार्य प्रारंभ किया। महाराष्ट्र में इस अभियान के १० जिले चुने गए। उत्तर भारत की तर्ज पर पुरे देश में अभियान के अंतर्गत कन्या पुजन का कार्य प्रारंभ किया गया। नवरात्र पर कन्या पुजन के साथ ग्रमीण व पिछडे इलाक ो में प्रबोधन के कार्य भी प्रारंभ किए गए। इन सब कार्यो के दौरान पता चला कि ९२९ अनुपात से कम देश में ६१ जिले और भी कार्य के लिए जोडने आवश्यक है। महाराष्ट्र में ४ अन्य जिलो का भी इसमें समावेश किया गया। अभियान के लिए उत्तरप्रदेश, पंजाब, मध्यप्रदेश, छत्तीसगड, हरियाणा, राजस्थान, उडिसा, सिक्कीम, अरूणाचल प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, जम्मू काश्मीर, नागालैंड, मिझोराम, तमिलनाडू, मनीपूर, हिमाचल प्रदेश का समावेश किया गया। रूढीवादी बाते, गरीबी, कुपोषण, कन्या भेदभाव जैसी बातो पर प्रबोधन किया गया। ऐसे में ज्ञात हुआ कि देश में शिक्षा की दृष्टी से लडकियों का अनुपात बढाना होगा। कई राज्य पहले से ही आओ स्कूल चले हम योजना चला रहे है। लडको की ८७ प्रतिशत शैक्षणिक उपलब्धता की तुलना में लडकियो का अधिकतम अनुपात ८३ था। जो आगे जाकर ड्राप ऑऊट रेट के रूप में बहुत कम हो जाता है। इस राष्ट्र व्यापी अभियान के अंतर्गत जिला पंचायत नगरपालिका, मनपा, ग्रामपंचायत के स्कुलो में अभिभावको का प्रबोधन कर कन्या धन की विशेषता व सम्मान से अवगत कराने की योजना प्रारंभ की गई। इसी दिशा में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा लाडली लक्ष्मी योजना व महाराष्ट्र द्वारा माझी कन्या भाग्यश्री योजना प्रारंभ की गई है। देश में जहां पर भाजपा सरकारे नहीं है, वहां पर महिला बालकल्याण मंत्रालय, सांसदो, पार्टी पदाधिकारियों, लोकप्रतिनिधिओं के माध्यम से बेटी बचाओ बेटी पढाओं अभियान का प्रसार किया जा रहा है। अखिल भारतीय संयोजक डा.राजेंद्र फडके ने बताया कि जिस तरह से रेलवे, इस्पात आदि की शासकीय समितियां होती है, उसी प्रकार से इस अभियान के लिए भी स्थानियस्तर पर अशासकीय पद भर कर कार्य बढाया जाएगा। बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान का कार्य करते हुए देशभर से आए सुझावो के अंतर्गत ज्ञात हुआ कि शिशुगृह में बच्चा गोद लेने की जटिल प्रक्रिया में कन्या को गोद लेने के लिए सरलता बनाए जाने की आवश्यकता है।
महाराष्ट्र में बेटी बचाओं बेटी पढाओं अभियान के अंतर्गत उपलब्ध कराए गए आकडो के अनुसार १ हजार लडको की तुलना में ९२९ लडकियों का अनुपात आ रहा है। बेटी बचाओं बेटी पढाओं राष्ट्र व्यापी अभियान की केंद्रिय समिती के अखिल भारतीय संयोजक डा.राजेंद्र फडके ने बताया कि देशभर में इस अभियान को लेकर होने वाली बैठको, समितीओं के सुझाव व अध्ययन से एक बात सामने आई है कि जहां पर साक्षरता की दर अधिक है, वहां पर बेटी सेक्स रेशो अधिक है। जिसे देखते हुए अभी भी देश में व्यापक प्रबोधन की आवश्यकता है। आकडो पर नजर डाले तो महाराष्ट्र में कम बेटी जन्मदर वाले जिलो में सांगली जिले का देश में ६३ वां क्रमांक आता है। सांगली जिले में वर्ष २०१३-१४ में ८४५, वर्ष २०१४-१५ में ८५५ व अभियान प्रारंभ होने के बाद वर्ष २०१५-१६ में ८६५ संख्या सामने आ रही है। देश में इस अभियान से बहुतसा चित्र बदल रहा है।
डा.फडके ने बताया कि अभियान को लेकर जो महत्वपूर्ण बिंदु सामने आया है, उसमें साक्षरता के मायने व जन्मदर को देखा जाए तो देश में उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर, कानपूर शहर, ओरैया, इटावा, गाझियाबाद में ८०.१२ से ७८.०७ प्रतिशत का साक्षरता दर है। यहां पर कन्या जन्मदर भी अन्यो जिलो की तुलना में प्रभावी है। गौतमबुद्ध नगर में ही वर्ष २०१३-१४ के ८४७ कन्या जन्मदर की तुलना में वर्ष २०१५-१६ की तुलना में ८६७ के आकडे सामने आए। केरल के सभी जिलो में साक्षारता का ग्राफ सर्वोच्च होने के कारण यहां पर कन्या जन्मदर भी अच्छी देखी जा सकती है। सिर्फ एक जिला इन सब में पिछडा दिखाई देता है। केरल में ९५.५० प्रतिशत साक्षारता के साथ १०८४ कन्या जन्मदर के आकडे स्पष्ट हुए है। केरल के बाद पुडूंचेरी में ८५.८५ प्रतिशत साक्षारता के साथ १०३७ कन्या जन्मदर देखी जा सकती है।
राष्ट्रीय संयोजक डा.राजेंद्र फडके द्वारा इस अभियान का जो ड्रॉप आऊट रेट मुद्दा बताया गया है उसमें अत्याधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि देश के १०० जिलो में छत्तीसगड का गरियाबंध इलाका ८१.७२ प्रतिशत ड्रॉप आऊट रेट के साथ देश में पहले क्रमांक का है। दनतेवाडा इलाका भी ८१.०३ प्रतिशत के साथ दुसरे क्रमांक पर है। मध्यप्रदेश का रतलाम सबसे कम ३९.६२ प्रतिशत ड्रॉप आऊट रेट के साथ ७८ वें क्रमांक पर है।
** ४१ प्रतिशत ग्रामपंचायत की कमान बेटियों के हाथ **
बेटी बचाओ, बेटी पढाओ अभियान की केंद्रिय समिती द्वारा जानकारी दी गई कि हरियाणा में प्रदेश की ४१ प्रतिशत ग्रामपंचायतो की कमान महिलाओं के हाथ में आई है। हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार जैसे पुरे पट्टे में बेटिओं को बहुत अधिक नहीं बढाया जाता। हरियाणा में कन्या जन्मदर के आकडे पूर्व में ७०० से ९०० के बीच थे। वर्ष २०१५-१६ के आकडो में इस अभियान के बाद से कन्या जन्मदर में सुधार के आकडे सामने आ रहे है। करनाल ने जहां पहले ७३६ कन्या जन्मदर थी। अब यह ७५६ दिखाई दे रही है। पानीपत में सर्वाधिक कन्या जन्मदर का ९४६ आकडा पहुंच गया है। यही कारण है कि प्रदेश के ग्रामपंचायत चुनाव में ३३३ गांवो में अविवाहित बेटिओं ने विजय हासिल करते हुए विकास की जिम्मेदारियां संभाली है।
** बेटी बचाओ बेटी पढाओ चौक का नामकरण **
महाराष्ट्र में बेटी बचाओं बेटी पढाओं अभियान के अंतर्गत उपलब्ध कराए गए आकडो के अनुसार १ हजार लडको की तुलना में ९२९ लडकियों का अनुपात आ रहा है। बेटी बचाओं बेटी पढाओं राष्ट्र व्यापी अभियान की केंद्रिय समिती के अखिल भारतीय संयोजक डा.राजेंद्र फडके ने बताया कि देशभर में इस अभियान को लेकर होने वाली बैठको, समितीओं के सुझाव व अध्ययन से एक बात सामने आई है कि जहां पर साक्षरता की दर अधिक है, वहां पर बेटी सेक्स रेशो अधिक है। जिसे देखते हुए अभी भी देश में व्यापक प्रबोधन की आवश्यकता है। आकडो पर नजर डाले तो महाराष्ट्र में कम बेटी जन्मदर वाले जिलो में सांगली जिले का देश में ६३ वां क्रमांक आता है। सांगली जिले में वर्ष २०१३-१४ में ८४५, वर्ष २०१४-१५ में ८५५ व अभियान प्रारंभ होने के बाद वर्ष २०१५-१६ में ८६५ संख्या सामने आ रही है। देश में इस अभियान से बहुतसा चित्र बदल रहा है।
डा.फडके ने बताया कि अभियान को लेकर जो महत्वपूर्ण बिंदु सामने आया है, उसमें साक्षरता के मायने व जन्मदर को देखा जाए तो देश में उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर, कानपूर शहर, ओरैया, इटावा, गाझियाबाद में ८०.१२ से ७८.०७ प्रतिशत का साक्षरता दर है। यहां पर कन्या जन्मदर भी अन्यो जिलो की तुलना में प्रभावी है। गौतमबुद्ध नगर में ही वर्ष २०१३-१४ के ८४७ कन्या जन्मदर की तुलना में वर्ष २०१५-१६ की तुलना में ८६७ के आकडे सामने आए। केरल के सभी जिलो में साक्षारता का ग्राफ सर्वोच्च होने के कारण यहां पर कन्या जन्मदर भी अच्छी देखी जा सकती है। सिर्फ एक जिला इन सब में पिछडा दिखाई देता है। केरल में ९५.५० प्रतिशत साक्षारता के साथ १०८४ कन्या जन्मदर के आकडे स्पष्ट हुए है। केरल के बाद पुडूंचेरी में ८५.८५ प्रतिशत साक्षारता के साथ १०३७ कन्या जन्मदर देखी जा सकती है।
राष्ट्रीय संयोजक डा.राजेंद्र फडके द्वारा इस अभियान का जो ड्रॉप आऊट रेट मुद्दा बताया गया है उसमें अत्याधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि देश के १०० जिलो में छत्तीसगड का गरियाबंध इलाका ८१.७२ प्रतिशत ड्रॉप आऊट रेट के साथ देश में पहले क्रमांक का है। दनतेवाडा इलाका भी ८१.०३ प्रतिशत के साथ दुसरे क्रमांक पर है। मध्यप्रदेश का रतलाम सबसे कम ३९.६२ प्रतिशत ड्रॉप आऊट रेट के साथ ७८ वें क्रमांक पर है।
** ४१ प्रतिशत ग्रामपंचायत की कमान बेटियों के हाथ **
बेटी बचाओ, बेटी पढाओ अभियान की केंद्रिय समिती द्वारा जानकारी दी गई कि हरियाणा में प्रदेश की ४१ प्रतिशत ग्रामपंचायतो की कमान महिलाओं के हाथ में आई है। हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार जैसे पुरे पट्टे में बेटिओं को बहुत अधिक नहीं बढाया जाता। हरियाणा में कन्या जन्मदर के आकडे पूर्व में ७०० से ९०० के बीच थे। वर्ष २०१५-१६ के आकडो में इस अभियान के बाद से कन्या जन्मदर में सुधार के आकडे सामने आ रहे है। करनाल ने जहां पहले ७३६ कन्या जन्मदर थी। अब यह ७५६ दिखाई दे रही है। पानीपत में सर्वाधिक कन्या जन्मदर का ९४६ आकडा पहुंच गया है। यही कारण है कि प्रदेश के ग्रामपंचायत चुनाव में ३३३ गांवो में अविवाहित बेटिओं ने विजय हासिल करते हुए विकास की जिम्मेदारियां संभाली है।
** बेटी बचाओ बेटी पढाओ चौक का नामकरण **
देशभर में इस अभियान की उपयोगिता बढाने के लिए हरियाणा के अंबाला में एक चौराहे का नाम बेटी बचाओं बेटी पढाओं चौक रख दिया गया। आमतौर पर नेता व महापुरूषो के नाम पर चौराहो का नामकरण कर बढावा दिया जाता है। किन्तू प्रधानमंत्री इस दुरगामी संकल्पना को पुरा करने के लिए अंबाला में चौक के नाम से शुरूआत की। डा.राजेंद्र फडके ने बताया कि अभियान के अंतर्गत जिलो में, मनपा, नगरपालिका, ग्रामपंचायतो आदि व्यवस्थाओं में प्रस्ताव पारित कर बेटी बचाओं बेटी पढाओं चौक नामकरण करने का अनुरोध भी किया जा रहा है।
** छायाबाई है बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान की पुरोधा **
** छायाबाई है बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान की पुरोधा **
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रारंभ किए गए बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान की ख्याती फैलते ही देश में सकारात्मक परिणाम दिखना प्रारंभ हो गए है। लोगो में फैलती जनजागृती उन्हें कन्या महत्व से परिचित करा रही है। देश में कन्या जन्मदर के गिरते अनुपात को रोकने के लिए प्रत्येक व्यक्ती का परोक्ष यां अपरोक्ष योगदान हो सकता है। ऐसा ही योगदान शिरपूर शहर के रामसिंहनगर में रहने वाली छायाबाई भील ने विगत दिनो अपने सकारात्मक योगदान से सभी को प्रेरणा डे डाली। रामसिंहनगर इलाके के सुनसान भाग में ७ दिन के कन्या भु्ण को फेक दिया गया।
छायाबाई भील को जब यह कन्या भु्ण मिला तो उसने अपनी माली हालत को परे रखकर उस कन्या भु्रण को अपना लिया। विगत २५ अक्टूबर की इस घटना में सुनसान में पडे इस कन्या भु्ण को छायाबाई भील ने देखा। उसने तुरंत ही घास काटना छोडकर कन्या भु्ण को उठा लिया और उसे घर ले जाकर दुध पिलाया। अपने परिवार की सहायता से छायाबाई ने कन्या को बालरोग विशेषज्ञ के पास ले जाकर उपचार भी कराया। यह जानकारी शहर में फैलते ही लोगो द्वारा छायाबाई भील का सम्मान करते हुए सहायताएं देना भी प्रारंभ कर दिया। इन सब के उपरांत बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान के अखिल भारतीय संयोजक डा.राजेंद्र फडके ने स्वयं शिरपूर जाकर कन्या व छायाबाई की पुछताछ करते हुए आर्थिक व शासकीय सहायता उपलब्ध कराई। प्रधानमंत्री मोदी के स्वप्रो को पुरा करती छायाबाई जैसी सिपहसलार का उन्होंने साडी व अन्य सामग्री देकर सम्मान भी किया।
** कन्या जन्म पर अस्पताल उठाता पूरा खर्च **
पूना
के हडपसर इलाके में कन्याभु्ण हत्या रोकने के लिए डा.गणेश राख द्वारा
व्यापक प्रयास किए जा रहे है। कन्या जन्म होने पर डा.राख अपना योगदान देते
हुए प्रसुती का किसी भी प्रकार का खर्च नहीं लेते। इसके लिए चाहे ऑपरेशन
करना पडे यां बाहरी डाक्टरो की सहायता लेनी हो तो भी वह सारी जिम्मेदारी
उठाते है। डा.राख ने पूना में वर्ष २००७ में एक छोटासा अस्पताल प्रारंभ
किया। उस समय उन्हें ध्यान में आया कि अस्पताल में पुत्र के जन्म लेने पर
परिजन मिठाईयां बांटते थे और कन्या के जन्म लेते ही अभिभावक प्रसुता मां को
रोता बिलखता छोडकर अस्पताल से चले जाते थे। बाद में कन्या जन्म से जुडे
परिजन प्रसुती खर्च में डिस्काऊंट भी मांगने लगे। वर्ष २०११-१२ की जनगणना
में जब डा.राख ने पाया की पूना में कन्या जन्मदर ९१४ पहुंच गई है तो उन्हें
बहुत अधिक निराशा हुई। क्योंकि वर्ष १९६१ पूना की कन्या जन्मदर ९७६ थी। इन
सब को देखते हुए डा.गणेश राख ने ३ जनवरी २०१२ से बेटी बचाओ आंदोलन की
शुरूआत की। बेटी के जन्म पर अस्पताल का सारा खर्च माफ करने का निर्णय लिया।
इन ४ वर्षो में डा.गणेश राख के अस्पताल में ४६४ बेटिओं ने जन्म लिया। आज
उनकी पत्नी तृप्ती व ९ वर्ष की बेटी तनिषा भी मेडिकेअर हॉस्पिटल फाउंडेशन
के इस कार्य में सहायता कर रही है। दिन बदिन प्रबोधन करते हुए अब डा.गणेश
राख के अस्पताल में जन्म लेने वाली कन्या को १ दिन पूर्व की परी कहते हुए
उसका जन्मदिन मनाया जाता है। डा.गणेश राख ने बताया कि यह अभियान देशभर में
चलाया जाना चाहिए। इसके लिए वह अपने स्तर पर डाक्टरो से संपर्क कर रहे है।
देश के लगभग ४ हजार डाक्टरो ने बेटी बचाओं अभियान की इस शैली में जुडना
स्वीकार किया है।
बेटी बचाओ बेटी पढाओं अभियान से प्रेरित होकर महाराष्ट्र की महिला व बालविकास मंत्री पंकजा मुंडे ने माझी कन्या भाग्यश्री योजना को राज्य में प्रभावी तरिके से चलाने का संकल्प लिया। इस योजना के माध्यम से राज्य में शीघ्र ही सकारात्मक परिणाम दिखाई देने का अंदाजा भी व्यक्त किया गया। योजना में पहले वर्ष १५३.२३ करोड रूपए का खर्च अपेक्षित रखा गया है। १८ वर्ष तक योजना के अंतर्गत ३१११.१८ करोड रूपए खर्च किए जाने का निर्धारण भी किया गया है। एक साथ पुरे राज्य में चलाई जाने वाली इस योजना में एक बेटी के जन्म के बाद परिवार नियोजन करने वाले परिवार को बेटी का जन्मदिन मनाने के लिए ५ हजार रूपए, बेटी के ५ वर्ष तक की आयु पुरे होने तक पोषण आहार देने के लिए १० हजार रूपए दिए जाएगे। बेटी के ६ वीं कक्षा से १२ वीं कक्षा तक शिक्षण के दौरान पोषण आहार व अन्य खर्च के लिए ७ वर्ष के लिए २१ हजार रूपए प्रदान किए जाएगे। जिन माताओं ने दो बेटिओं के उपरांत परिवार नियोजन अपनाया है, उन्हें बेटी का जन्म दिन मनाने का लिए ढाई हजार रूपए, दोनो बेटियों के ५ वर्ष तक होने तक पोषण आहार के लिए १० हजार रूपए, दोनो बेटिओं ५ वीं कक्षा तक पोषण आहार व अन्य खर्च के लिए १५ हजार रूपए, दोनो बेटिओं को १२ वीं कक्षा तक के लिए पोषण आहार व अन्य खर्च के लिए २२ हजार रूपए प्रदान किए जाएगे। मात्र एक बेटी व एक बेटे वाले परिवारो को यह लाभ प्राप्त नहीं हो सकेगा। गरीबी की रेखा के नीचे परिवारो के लिए लडकियों का बिमा भी निकाला जाएगा। कन्या जन्म के एक वर्ष के भीतर भारतीय जीवन बिमा निगम की २१ हजार २०० रूपए की किश्त शासन की ओर से भरी जाएगी। १८ वर्ष आयु पुर्ण होने पर १ लाख बिमा की रकम लडकी को दी जाएगी। साथ ही कन्या के अभिभावको का भी बिमा निकाला जाएगा। महिला व बालविकास मंत्री पंकजा मुंडे ने योजना के माध्यम से आशावाद भी व्यक्त किया है कि राज्य में योजना के प्रभावी क्रियान्वन से कन्याभ्रुण हत्या पर प्रतिबंध लगाया जा सकेगा। क्योंकि कन्या को बोझ मानकर ही उसके लालनपालन ना करने की पुरानी रूढीवादी कुरितियां समाज में व्याप्त है।
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