ट्रॅफिक पुलिस ने कहा महामार्ग पर नहीं चलाते देखा महिला को कार

   हैदराबाद की ट्रेनर से बातचीत में उजागर हुआ उच्च   संस्कृति का शोषण


              औंरगाबाद-जलगांव राष्ट्रीय महामार्ग पर अचानक शहर के मुहाने पर यातायात पुलिस एक महिला को कार आंध्रप्रदेश पासिंग की कार चलाते देख कागजों की पुछताछ के लिए रोकता है। महिला चालक के पडोस की सीट में बैठे बुर्जूग व्यक्ती के दरवाजा खोलते ही यातायात पुलिस बडे अदद के साथ उन्हें बैठे रहने का इशारा करता है और महिला चालक से कागजों की जांच पडताल करने लगता है। सब कुछ व्यवस्थीत होने पर यातायात पुलिस कर्मी धन्यवाद अदा करते हुए बताता है की महामार्ग पर लंबी यात्रा के लिए किसी महिला को गाडी चलाते नहीं देखा। इस पर कार चला रही लगभग ४५ वर्षीय महिला ने हैदराबाद की फ्रेंच भाषा व व्यक्तीत्व विकास की ट्रेनर श्रीमती शुभा भसीन सेठ के रुप में अपना परिचय देते हुए बताया की नांदेड से औंरगाबाद होते हुए जलगांव तक ३ बार यातायात पुलिस कर्मीओं ने उन्हें रोकते हुए यही आश्चर्य व्यक्त किया है। यह परिवार खानदेश में एक समारोह में सम्मिलित होने निकला था ।
 
        दैनिक भास्कर संवाददाता ने फ्रेंच ट्रेनर के बारे में जानने का प्रयास किया। श्रीमती शुभा ने बताया की हैदराबाद से जलगांव होते हुए धुलिया, चालिसगांव व अन्य स्थानों के रुप में अपनी कार से वापीस हैदराबाद तक का लगभग १८०० किलोमीटर का सफर स्वंय गाडी चलाते हुए पुरा किया है। इसके लिए लगातार गाडी चलाकर सिर्फ रात को परिवार को आराम दिलाने के लिए ही यात्रा रोकी। वाहन में श्रीमती शुभा अपने पिता सतिश भसीन, मां प्रधानचार्य श्रीमती नीरा भसीन व बेटी अनुष्का मौजूद थी। बातचीत दौरान पता चला की श्रीमती शुभा अपनी दिनचर्या में दवा का बहुत बडा योगदान है। लंबी चली बातचीत से पता चला कि मध्यम वर्गीय परिवारों की तुलना में उच्च परिवारों में भी दमन व शोषण बडे पैमाने पर व्याप्त है। अपने पती के साथ २० वर्ष का शोषण काल बिताने के उपरांत बच्चों की भलाई के लिए श्रीमती शुभा ने एकदम प्रताडीत होकर पती का घर छोड दिया। मुंबई के ऐश्वर्य भरे इलाके में पती के साथ रह रही शुभा को विगत नवंबर माह में बेटी के डुबते भविष्य को लेकर यह निणर्य लेना पडा। बातचीत के दौरान उजागर हुआ की छात्रावास में रह रहे शुभा के बेटे ने स्वंय मां को फोन करके कहा था की मां छोटी बहन को इस भयानक वातावरण से निकालकर होस्टल में भेज दो अन्यथा वह पागल हो जाएगी। इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है की प्रताडना का क्या माहोल रहा होगा।
         बताया गया की श्रीमती शुभा के पती एक बडे सॉफ्टवेअर इंजिनिअर होने साथ साथ लगभग सवा लाख रूपए से अधिक प्रति माह कमाते है फिर भी विगत २० वर्ष में घर का सारा खर्च व बच्चों की पढाई शुभा ने चलाई। कार में मौजूद शुभा के सेवानिवृत्त पिता सतिश भसीन ने बताया की मुंबई से बेटी को वापीस लाने के बाद उसे डिप्रेशन से बाहर लाने के लिए उपचार करना पडा। आजीवीका का साधन ना होने कारण शुभा ने मुंबई में चलाए जा रहे चोकलेट बनाने के काम को प्रारंभ किया। बच्चे का आधे साल में ही जैसेतैसे प्रवेश दिलाया गया। एक माह तक संघर्ष करने के बाद शुभा ने हैदराबाद में ही फ्रेंच भाषा सिखाने का कार्य प्रारंभ किया। माता-पिता पर बोझ ना बनने की ठानते हुए शुभा ने आधुनिक तकनिक ज्ञान का प्रयोग करते हुए स्काईप जैसे सॉफ्टवेअर की मदद से मुंबई वा अन्य स्थानों पर फ्रेंच भाषा सिखाना प्रारंभ किया। आज भी संघर्ष कर रही शुभा ने बताया की धीरे धीरे गाडी पटरी  पर लौट रही है। वह अब भी २० वर्ष के दांम्पत्य जीवन के शोषण से उभर नहीं पाई। कि न्तु अब वह अपने बैंगलोर में शिक्षण ले रहे बेटें व साथ रह रही १२ वर्ष की बेटी के लिये ही जीवन यापन करेंगी। शुभा की दास्तान सुनकर हैरानी हुई की अबतक लोग यही समझा करते थे की मध्यम या निम्न वर्ग में ही बहुओं को घर से निकाल दिया जाता है किन्तु शुभा के साथ मुंबई में ऐसा दो बार हो चुका है। उच्च घराने व उच्च शिक्षित संस्कारीत परिवार में पली बडी शुभा के पिता मल्टीनैशनल कंपनी के प्रबंधक के  रुप में रिटायर हुए है। माताजी एक प्रख्यात विद्यालय में प्रधानाचार्य व भाई अमेरिका में रिसर्चर व लैबोट्रीका संचालक है। इतना व्यवस्थीत परिवार होने के  बावजुद शुभा ने विगत एक वर्ष पहले पुरी तरह से टुटने के बाद २० वर्ष के अनुभवों को कागज पर सहेजकर अपने परिजनों को परिचीत कराया। मुंबई से अपना परिवार समेट कर शुभा ने स्वंय लगातार गाडी चलाते हुए हैदराबाद का रुख किया। 

      नारी की कथा आते ही पुरानी बाते कही जाती है की अबला जीवन हाय नारी की यही कहानी, आंचल में है दुध और आंखो में पानी। शुभा की सहमी हुई बेटी ने जिस तरह से बातचीत की उससे अंदाजा लगाया जा सका की ऐशो आराम व शोहरत के पीछे भी वही दकियानुसी सोच व शोषण मौजूद है। निम्र वर्ग की तरह शायद उच्च वर्ग में भी महिला प्रताडना, दमन, मारपीट मौजूद है किन्तू यह सब ऐश्वर्य के सामने ढक सा जाता है। अपनी जीवन शैली को परे रख संघर्ष कर रही शुभा इन हालातो पर अपने माता पिता का धन्यवाद करते हुए बताती है की बेटी को सभी माता पिता ने उच्च शिक्षण व स्वालंबी बनाना चाहिए। ताकी जिंदगी के किसी भी मोड पर आकर बेटीयां अपने पैरो पर खडी हो सके। विगत २० सालो में अपनी कला व गुणों को भुलाने के बात शुभा ने अपना वही चोकलेट बनाने, फ्रेंच व अंग्रेजी भाषा की जानकार होने के कारण अनुवादक, शिक्षक का कार्य प्रारंभ किया। विगत २-३ माह में ही धीरे धीरे शुभा अपना खर्च उठाने के काबील होती जा रही है। इसके लिए व्यक्तीत्व विकास की कार्य शालाएं, विज्ञापन संस्थानों, प्रकाशकों के पास अनुवाद का काम मांगते हुए इंटरनेट के बखुबी प्रयोग से फ्रेंच ट्रेनर के रुप में स्थापित हो रही है। 
     शुभा का दावा है की स्काइप व प्रत्यक्ष रुप में वह १५ दिन के भीतर वह फे्रंच सिखा सकती है। अपने इस दावे को स्थापित करने के लिए उन्होंने तुरंत लैपटॉप पर मुंबई, अहमदाबाद में फ्रेंच सीख रहे लोगो से बात कराई। एक नई स्फुर्ती व चेतना के साथ शुभा जिस तरह से महामार्ग पर अकेले हैदराबाद से वापीस हैदराबाद तक वाहन चलाती हुई हिम्मत निर्माण कर रही थी। वह काबिले तारिफ व बेटीयों के लिए आदर्श स्थापित हो सकता है। अब वह बच्चों की खातिर कानुनी प्रक्रिया से परे रहते हुए अपने ससुराल वालो से अपना अधिकार मांगने के लिए संघर्ष करेंगी। विगत २० वर्ष सारा दमन सहने वाली शुभा ने नई स्फुर्ती हासिल करते हुए हालातों से सीख कर अधिकारों के लिए लढना प्रारंभ कर दिया है। इस सारी दास्तान के साथ फें्रच ट्रेनर शुभा ने माता पिता व बेटीयों के लिए एक ही संदेश दिया की आज अधिक से अधिक पढना, रोजगार पुरक पाठ्यक्रम करना व हमेशा संघर्ष के लिए तैयार रहना ही अपनाना होगा। किसी की भी मानसिकता को समझा नहीं जा सकता।   

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