लौट आये बप्पा अपने घर..

वैसे तो महाराष्ट्र में आने के बाद से हमारे परिवार में लाडले गणपति बप्पा की स्थापना का चलन प्रारंभ हुआ. किन्तु छोटे भाई विपुल के छुटपन का स्थान जब मेरी बड़ी बिटिया वंश ने लिया तो गणपति जी की स्थापना अगली पीढ़ी में चली गई. बाद में समय के साथ वंश ने बुद्धि के देवता गजानन को सुन्दर स्वरुप में घर पर ही आकार देना प्रारंभ किया. वंश पर गणनायक की असीम कृपा रही. पर्यावरण पूरक गणपति जी की मूर्ति निर्माण का हुनर वंश ने दूसरों को भी दिया. कुछ कार्यशाला तो कुछ गली-मोहल्ले के लोगों को, दोस्तों के साथ मिलकर सिखाया. 
 


दो वर्ष दिल्ली में बिताने के बाद वापिस घर लौट कर गणेशोत्सव मनाने का सौभाग्य मिला. विगत वर्ष दिल्ली में भी गणेश जी की स्थापना की थी. वह अनुभव भी अलग था. हमारे अपार्टमेंट में कोई भी महाराष्ट्रियन न होने के कारण पड़ोसियों को वंश द्वारा बने मूर्ति देखने की उत्सुकता थी. इसका परिणाम यह रहा कि दिल्ली में भी आनंद के साथ मनाये गए गणेशोत्सव पर्व के बाद हमारी घर मालकिन ने दुर्गा पूजा के लिए बिटिया वंश से एक आकर्षक दुर्गा जी की मूर्ति बनवा कर स्थापित की. 

खैर, कुछ भी कहें लेकिन  गणेशोत्सव का आनंद अपने घर में ही है. दिल्ली से लौटकर अब अपने घर में बिटिया वंश के द्वारा प्रतिवर्ष की भाँती बनाए गए पर्यावरण पूरक गणपति जी की स्थापना की तो..सच कहें मजा आ गया.. मानो  "लौट आये बप्पा अपने घर.. "


गणपति बप्पा मोरया.. 
मंगलमूर्ति मोरया... 
कृपा करो हे कृपानिधान..
करो जन जन का कल्याण .. 

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