रेमन मैगसेसे पुरस्कार..निलीमा मिश्रा
सामाजिक कार्यों, विभिन्न प्रकार के उत्थानों, समाज की दिशा निर्धारण व प्रेरणा के लिए दिए जानेवाले विश्व के एक सर्वोच्च पुरस्कार रेमन मैगसेसे पुरस्कार का वर्ष २०११ ·का सम्मान जलगांव जिले के पारोला तहसील के बहादरपुर गांव की सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री निलीमा मिश्रा को दिए जाने की घोषणा घोषणा के साथ गांधीजी के अमर वाक्य कि गांव में भारत बसता है का सत्यापन हुआ है। पारोला तहसील के छोटे से गांव बहादरपुर से अपने सामाजिक कार्यों को ग्रामीण पटल पर उदय करनेवाली निलीमा के बारे में किसी ने भी नहीं सोचा होगा कि , गांव में सामान्य सा व्यक्तित्व एवं अपने काम की धुनी निलीमा एक दिन अंतरराष्ट्रीय स्तर के इस पुरस्का र का सम्मान प्राप्त करेंगी। फिलीपींन्स के राष्ट्राध्यक्ष रेमन मैगसे से की स्मृती में वर्ष १९५७ से प्रारंभ किये गये इस पुरस्·कार को उनकी जयंती पर मनिला में आगामी ३१ अगस्त को वितरित कि या जायेगा। जिसके लिए भारत की ग्रामीण आत्मा से बहादरपुर की निलीमा मिश्रा देश के गौरव के साथ यह पुरस्कार प्राप्त करेंगी। इससे पहले आचार्य विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण, बाबा आमटे, पांडुरंग शास्त्री आठवले, सत्यजीत रे, टी.एन. शेषण, जलक्रांती के राजेंद्रसिंह, दूध क्रांती के वर्गीस कुरियन, अरविंद केजरीवाल आदि के नाम प्रमुख है। बहादरपुर व लगभग धुलिया, नंदुरबार, जलगांव, नासिक आदि जिलों में दीदी ·के रुप में पहचानी जानेवाली निलीमा मिश्रा द्वारा ग्रामीण जमीनीस्तर के कार्यों में स्वयं को इस प्रकार से झोंक दिया गया कि , आज वह इस पुरस्कार की प्राप्ती के बाद और अधिक जिम्मेदारियां मिलने की बात कह रही है। निलीमा मिश्रा ने महिला रोजगार उत्थान एवं स्वावलंबन को लेकर महिला बचत गुटों की स्थापना की । ग्रामीण उद्योग व महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए वर्ष २००० में उन्होने भगिनी निवेदिता ग्रामीण विज्ञान निकेतन की स्थापना करते हुए उसके माध्यम से ग्रामीण स्तर के सामाजिक कार्य को प्रारंभ करते हुए बचत गुट स्थापित करना प्रारंभ कि या । जिसके अंतर्गत सुश्री मिश्रा द्वारा अब तक १८०० बचत गट स्थापित किए जा चुके है। इन बचत गुटों के माध्यम से प्रमुख रुप में रजाईयों का निर्माण करते हुए घर पहुंच भोजन, डिब्बा व्यवस्था, गृह उद्योगों को बढावा, दूग्ध व्यवसाय, महिलाओं में सिलाई मशिन कार्य, युवाओं को तकनिकी शिक्षण, कम्प्युटर आदि प्रशिक्षण प्रदान किये गये। इसके अलावा निलीमा जी द्वारा शासकीय योजना, पानी रोको , पानी बचाओं के अतंर्गत गांव में अपने समुहों को प्रोत्साहित करते हुए नाला निर्माण, खेतों की मेढ आदि निर्माण का कार्य कराया। इतना ही नहीं किसानों को पग-पग पर सहायता देते हुए ग्रामीण विकास की संकल्पना के साथ वर्मी कंपोस्ट, देसी खाद आदि के लिए प्रोत्साहित कि या। निलीमाजी के कार्यों में दूध उत्पादन में किसानों के साथ होनेवाली परेशानियों का अध्ययन करते हुए दूध उत्पादको को न्याय दिए जाने के चलते एक भव्य डेयरी स्थापना की कल्पना भी की जा रही है । जिसके लिए सुश्री मिश्रा द्वारा बहादरपुर गांव के छह जरूरतमंद कि सानों को दो दो भैंसे खरीदने के लिए कर्ज भी प्रदान कि या जा चुका है। महिला स्वयं रोजगार में बचत गटों के माध्यम से निलिमाजी द्वारा गरीबी की रेखा के नीचे या जरुरत मंद आर्थिक दरिद्रता में जी रही महिलाओं को विभिन्न कार्यों में लगाते हुए स्वयं आमदनी के रूप में पैसा एकत्रित करते हुए एक करोड रूपए का निवेश किया गया है। इस एकत्रित कि ये गये पैसे को सुश्री मिश्रा द्वारा नियोजन बध्द तरीके से सत्ताईस गांवों में छोटे उद्यम व खेती कार्यों में लगाया गया है । सुश्री मिश्रा द्वारा अपने इस १८०० बचत गुटों के परिवार से होनेवाली आय को माइक्रो फाइनेंस के रूप में इन्हीं के बीच दो करोड छब्बीस लाख के कर्ज के रूप में वितरीत किया गया । जबकि , किसानों को उन्नत खेती व जरूरतों के आधार पर ७६ लाख रूपये कर्ज के तौर पर बांटे गए है। निलीमा मिश्रा द्वारा रजाई निर्यात ·रनेवाली दीदी के रुप में अपनी पहचान स्थापित की गयी है। आज विभिन्न बचत गटों से कलात्मक साफ सुथरी रजाईयां निर्माण कराते हुए भगिनी निवेदिता ग्रामीण विज्ञान निकेतन के माध्यम से इंग्लैंड, आस्टेलिया, जर्मनी, नार्वे आदि विदेशों में निर्यात किया जा रहा है। शिक्षास्तर पर भी ग्रामीण कार्य करते हुए निलीमाजी ने छोटे बच्चों के लिए आंगनवाडी एवं मध्यम बच्चों के लिए बालवाडी स्थापित की है। इस संदर्भ में निलीमा जी के माताजी निर्मला मिश्रा ने बताया कि , अपनी उम्र के १३ वे वर्ष में ही निलीमा ने विवाह ना करने का संकल्प ले लिया था। इस दौरान पूना में मानसशास्त्र की परास्नातक उपाधि लेते हुए सुश्री निलीमा ने प्रसिध्द समाज सुधारक डा. एस.एस. कालबाग के नेतृत्व को स्वीकार करते हुए ८ वर्ष समाज कार्य कि या। उसके बाद वर्ष २००० में पारोला के पैत्रिक निवास बहादरपुर में लौटकर बिना किसी राजनैतिक सहयोग के अपना भगिरथी कार्य प्रारंभ किया। निलीमाजी का गांववालों एवं गांववालों का उनपर इतना विश्वास है कि , उनके द्वारा वितरित कि या जा रहा कर्ज समय पर सम्मान ·के साथ वापस लौटाता है। सामाजिक चेतना के रुप में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए निलीमाजी ने ग्रामीण घरों में शौचालय के निर्माण में सहायता व प्रेरणा, वृक्षारोपण के लिए आग्रह व घरों में से शराब को खत्म कि ये जाने के लिए सक्ती के साथ कार्य किये।
उनके पिता श्री चंद्रशेखर मिश्रा का कहना है कि , परिवार की निलीमा द्वारा अविवाहित रहने का निर्णय उस समय बहुत ही अजीब लगा था। किंतु आज उसका कार्य उस निर्णय को भुला चुका है। निलीमा मिश्रा के कार्यों में कनाडा में रहनेवाले डा. जगन्नाथ वाणी को नहीं भुलाया जा सकता है। उनके अनमोल सहयोग, आर्थिक सहायता, एवं प्रोत्साहन ने निलीमा को दीदी बनने तक पहुचाया । बुधवार २७ जुलाई को की गई इस पुरस्कार की घोषणा के बाद से बहादरपुर गांव के साथ साथ पूरे जलगांव जिले में हर्ष उल्हास का फैल गया । बहादरपुर गांववासीयों के अलावा जिले भर ·के लोगों द्वारा सुश्री निलीमा मिश्रा को बधाईयां देते हुए बहादरपुर गांव में मराठी परंपरा के नववर्ष की तरह गुढी निर्माण करने एवं आतिषबाजी करने का कार्य कि या गया। इन दिनों सुश्री निलीमा मिश्रा द्वारा अपने चालीस सहयोगियों के परिवार के साथ सभी संस्थान के देखरेख करते हुए इस सफलता को अपने संगठन के एक -एक सदस्य के योगदान का परिणाम बताया। इतना ही नहीं जिम्मेदारियां बढने के अहसास के चलते और अधिक काम करने की इच्छशक्ति दर्शायी। आगामी कार्य में वह विदर्भ के चंद्रपुर व अको ला जिलों में महीला बचत गटों के माध्यम से महीला सक्षमीकरण का कार्य फैलाना चाहती है । इन सब के बीच निलीमा मिश्रा के मर्म ह्दय का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि , उन्होने अपनी मॉं से प्रेरणा लेते हुए रोजाना गांव के पचास बेसहारा बुजूर्गों को भोजन कराये जाने ·का पुण्य·का र्य सतत प्रारंभ रखा है। इन सभी जमिनी स्तर के कार्यों को देखते हुए ही निलीमा मिश्रा रेमन मैगसेसे पुरस्कार का सही दावेदार मानते हुए कहा जा सकता है कि , भारत में जमीनी स्तर के कार्य मौजूद है। और गांव में ही भारत की आत्मा बसती है।
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