फेसबुक नहीं फांसे बुक है..
इन दिनों ऑफिस, महाविद्यालय, साइबर कैफे , कही भी फेसबुक की कथित सोशल नेटवर्किंग दिखाई दे जाएगी । ऐसे में फेसबुक के लिए सिर्फ समय की बर्बादी की टिप्पणी से बेहत्तर और कुछ नहीं हो सकता । किसी भी चीज़ के परिणाम और दुषपरिणाम देर बाद सामने उभर कर आते हैं । संभवत फेसबुक भी अब धीरे धीरे मीठे ज़हर की तरह लोगों के दिलों दिमाग में उतरता दिखाई दे रहा है । सामान्य भाषा में कहें तो फेसबुक को अब फांसे यां फंसे बुक भी कहा जा सकता है । क्योंकि पहले तो सोशल नेटवर्किंग, चैटिंग, सामजिक दायरा बढाने के लिए मित्रों का साम्राज्य खड़ा करने की होड़ मची रहती है किन्तु बाद में यही होड़ सिरदर्दी का सबब बन जाती है । एक सर्वेक्षण के अनुसार निजी क्षेत्र की कंपनियों में काम करनेवाले कर्मचारी अपने काम के समय में से लगभग 12.5 प्रतिशत हिस्सा सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों के चक्कर में बर्बाद करते हैं। हाल ही में औद्योगिक संगठन ‘द एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया’ (एसोचैम) द्वारा कराए गए सर्वेक्ष के अनुसार औसतन हर कार्यालय में कर्मचारी काम छोड़कर रोजाना लगभग एक घंटा फेसबुक, ऑर्कुट, माइस्पेस, ट्विटर जैसी नेटवर्किंग वेबसाइटों पर समय व्यतीत करते हैं। आलम यह हो गया है की अब कम्पनियों ने फेसबुक के प्रयोग को रोकने के लिए जुगत लगाना प्रारंभ कर दिया है। ठीक इसी तरह पहले जी मेल के साथ हुआ था, चैटिंग के जूनून में कम्प्यूटर व्यस्त रहते थे । फांसे बुक अर्थात फ़ेसबुक पर आपको १६ वर्ष से ले कर ६० साल तक के सभी मिल जायेंगे ।
ख़ैर इस साइबर युग में फेसबुक की बात करें तो लोगों को टिप्पणियो के अलावा रोचक, अच्छी जानकारी साँझा करने में बहुत कम दिलचस्पी है । आज अधिक से अधिक समय ऑनलाइन खर्च करते हुए लगातार लंबे समय तक कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठ कर अपनी आंखों के साथ साथ जेब को भी नुकसान पहुँचाया जा रहा है । घरों में अनावश्यक कम्प्यूटर से चिपके रहने के कारण पति-पत्नी के बीच झगडे हो रहे हैं । सर्वेक्षण के अनुसार निजी क्षेत्र की कंपनियों के 82 प्रतिशत कर्मचारियों का फ़ेसबुक पर एकाउंट है।
फांसे बुक अर्थात फ़ेसबुक इस्तेमाल करते हुए यदि कोई किसी वजह से टोक दे उपयोगकर्ता अपना आप खो देता है। खैर इन दिनों कम्प्यूटर से चिपके रहने के इस नए साधन ने घरों, मित्रों में कलह प्रारंभ कर दी है। अनावश्यक टिप्पणी, खुद को श्रेष्ठ दिखाने की होड़, ओछा प्रस्तुतीकरण, एक तरह से लोगों के मन में ज़हर घोल रहा है । अपने से जुडी झूठी गलत जानकारियां प्रस्तुत कर नए नए विपरीत लिंगी दोस्तों को आकर्षित करने का प्रयास किया जा रहा है । संचार के इस तेज़ माध्यम का दुरूपयोग अधिक प्रारंभ हो गया है । फ़ेसबुक पर ऐसे कई उदाहरण है की अपनी कम आयू दर्षा कर शादी शुदा लोग स्वयम के परिवार व समाज को धोखा दे रहे हैं । एक सज्जन को मै जानता हूँ की वह दो आठ साल के बच्चों के पिता हैं, किन्तु फेसबुक पर आज भी २८ वर्ष के युवा के रूप में मौजूद हैं । खैर बहुत सारे कारण है की अब फेसबुक को फांसेबुक पुकारा जा सकता है। कम्प्यूटरऔर इन्टरनेट का सकारात्मक
प्रयोग करने वाले अपनी नियमित ज्ञानवर्धक वेब साईट से दूर हो रहे हैं । क्योकि सत्यता तो यह है की उन्हें फांसे बुक अर्थात फ़ेसबुक ने फाँस लिया है। जय हो..
प्रयोग करने वाले अपनी नियमित ज्ञानवर्धक वेब साईट से दूर हो रहे हैं । क्योकि सत्यता तो यह है की उन्हें फांसे बुक अर्थात फ़ेसबुक ने फाँस लिया है। जय हो..
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