लकीरें पैरों में हैं


मेरी तकदीर की लकीरें पैरों में हैं
चलते चलते अब घिसने लगी,
तुम नाहक ही हथेलिया देखते हो
यहाँ की धुंधली लकीरें तो मिट चुकीं,
इन लकीरों का ही गर सोचा होता
ना पाता मुकम्मल जहाँ में खड़ा,
चल डालेंगे डेरा कहीं और अभी
हम बाशिंदे है, रिफ्यूजी भी..

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