जुगाड़ तंत्र बनाम भारतीयता
जुगाड़ तंत्र बनाम भारतीयता
कहा जाता है की जुगाड़तंत्र में भारतीयता का कोई सानी नहीं है। अमरीकी आज भी इस जुगाड़तंत्र के कायल हैं । तकनिकी कितनी भी प्रगति कर ले लेकिन हमारे जुगाड़ तंत्र के आगे सब बेकार । अनिल अंबानी ने एक बार कहा था कि रिलायंस ने आविष्कारों मतलब इन्वेन्षन की बदौलत नहीं बल्कि नित नई खोजों इनोवेशन की बदौलत ही सफलता हासिल की है। भारत में इस इनोवेशन का अर्थ खालिस जुगाड़ ही है । भुआ जी हाल ही में अपने पुत्र से मिलने अमेरिका गई हैं। मेरी बात हो रही थी, उन्होंने बताया की चारों और दैनिक जीवन में वहां तकनीक का बोलबाला है। कमरों में जाते ही खुद लाइटें शुरू हो जाती हैं और भी न जाने क्या-क्या। अपने देश में भी यह सब आ गया है। गाँव कूंचों तक नए ब्रांड की गाड़ियां व कोकाकोला पहुँच चुका है। यह अलग बात है की देश के कई इलाकों में अब तक बिज़ली, पानी, सड़क जैसी मुलभुत सुविधाएं नहीं पहुंचीं। कितनी भी उन्नति हो जाए किन्तु पाश्चात्य देशों में रह रहे भारतीय आज भी अपने पूर्वजों के देसी नुस्खों को आज़माने से नहीं चूकते। अमरीका में भी सुबह पेट साफ़ करने के लिए रात को गरम पानी से इसकबगोल खाने का का जुगाड़तंत्र हावी रहता है। भारत में तो एक बीड़ी से मौसम बना लिया करते हैं। सरदार महेंद्र सिंह उर्फ़ बाबा ड्राइवर का स्मरण करना होगा। धूलिया जिले में रहा करते थे वह। एक बार उनके ट्रक में बैठ कर दिल्ली जाने का मौका मिला। ऊपर केबिन की अलमारी में लाइफबॉय साबुन की ढेरों बट्टी देखने को मिली। पूछताछ करने पर सब हसने लगे। मेरी जिज्ञासा भी आई-गई हो गई। सुबह एक ढाबे पर ट्रक रोका गया। मैं हैरान था बाबा ड्राइवर को देखकर, वह एक लाइफबॉय की बट्टी चाय के साथ बिस्कुट की तरह खा गए। और लगभग आधे-पोन घंटे के बाद उनका मौसम बना और वह पेट साफ़ करके लौटे। आज सरदार महेंद्र सिंह नहीं हैं। जुगाड़तंत्र तो पूर्व प्रधानमन्त्री अटल जी को भी भा गया था। तभी तो तेरह दलों की सरकार चला कर राजनीती में जुगाड़तंत्र को साबित कर दिखाया। एक कम्प्यूटर ठीक करने वाले मित्र के यहाँ लेपटोप की टूटी स्क्रीन बदलने की जगह उसके साथ पुराना सी.आर.टी मॉनिटर लगा देख विशवास हो गया की इट्स हैपेंड ओन्ली इन इंडिया। गुजरात व पंजाब में मोटर साइकल से यात्री ढोने वाले चारपहिया संसाधन देख कर ही शायद नेनो कार के आविष्कार की कल्पना ने जन्म लिया होगा। अमलनेर तहसील के पिंगलवाडा में रहने वाले विकास शिंदे को जमीन से पानी निकालने वाली मोटर साइकिल बनाने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। विकास ने २० से अधिक ऐसे औज़ार जुगाड़ से बनाए हैं। वेलेंटाइन डे आ रहा है। बहुत सी जुगाडें शुरू हो गई होंगी। एक अच्छी पहल जलगांव का मुलजी जेठा महाविद्यालय कर रहा है , वेलेंटाइन डे न मनाने के संकल्प के साथ। कैंसर से जूझ रही कोमल के लिए मानवता दिन मनाएंगे यह सब। सराहनीय कदम, किन्तु लोगों को जुड़ना व सोचना होगा ऐसे मानवता भरे कार्यों के लिए। कोमल दस वर्षों से कैंसर से लड़ रही है। हिम्मत न हारते हुए कोमल ने बारहवीं कक्षा में ९५ प्रतिशत अंकों के साथ प्रथम क्रमांक हासिल किया। उसके बोनमेरो ऑपरेशन के लिए १५ लाख रुपय की आवश्यकता है। यह सब १४ फरवरी को जलगांव के विभिन्न इलाकों में घरों से रद्दी इकठ्ठा कर, उससे आने वाली आय को कोमल के ऑपरेशन के लिए देंगे। कोमल को अमरावती का प्रयास सेवांकुर स्वयं सेवी संगठन सहायता कर रहा है। स्वयंसेवी संगठनो का भी देश में बहुत बोलबाला है। दिल्ली की सरकार को तो एन. ज़ी. ओ. वालों की सरकार कहा जाता है। दिल्ली में ऑड -इवन का फार्मूला चला कर यातायात पर नियंत्रण पाने का प्रयास किया गया। केज़रीवाल समर्थकों ने इस जुगाड़ को सफल बताया। भाजपाइयों ने इसे सिरे से नकारा। सिर्फ अॉटो चालकों को छोड़कर कोई भी इस ऑड -इवन फार्मूले से खुश दिखाई नहीं दिया। ब्रिस्बेन आस्ट्रेलिया में इस ऑड -इवन फार्मूले का भी जुगाड़ कर लिया गया है। वहां सुबह - शाम को एक निश्चित अवधि के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट, बसों के लिए एक लेन खोली जाती है। जिसमें अन्य वाहनो का प्रवेश नहीं होता। इससे बसें तेज़ी से चल पाती हैं। इस तरह के बस रूट बनाये गए हैं जो सभी व्यस्त बाज़ार, ऑफिसों से जुड़े हुए हैं। प्रत्येक रूट पर १५ मिनट के अंतराल में बस सेवा होती है। इस जुगाड़ से रोज़ाना २२ लाख से अधिक नागरिक इस सुविधा का उपयोग ले रहे हैं। लगता है भारतीयता का जुगाड़तंत्र अब निर्यात होने लग गया है।
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