निसर्ग व अध्यात्म का संयोजन मनूदेवी तीर्थक्षेत्र
खान्देश के पर्यटन स्थल के रूप में निसर्ग व अध्यात्म का आकर्षक संयोजन है मनूदेवी तीर्थक्षेत्र
खान्देश के जलगांव जिले में पर्यटन की दृष्टि से अनेकों पुरातन स्थलों के विद्यमान होने के चलते इस भूमि को पर्यटन के साथ साथ अध्यात्म के संयोजन का केंद्र भी माना जाता है ।
भारतीय मानचित्र पर अजंता ऐलोरा की गुफांओं के पर्यटन के लिए समीपस्थ रेलवे मार्ग के रूप में उल्लेखित जलगांव रेलवे स्टेशन न केवल बौद्ध परम्पराओं के इस विशाल धरोहर का साक्षी है, बल्कि अन्य छोटे छोटे पर्यटन स्थलों के समावेश के साथ एक वैभवशाली संपदा बन चुका है । हालांकि सरकारी तौर पर खान्देश के पर्यटन का अभी बहुत विकास होना बाकी है । कि न्तु यदि खान्देश के इन धरोहरों का तथ्यपूर्ण व विस्तृत विवेचन पर्यटन क्षेत्र में प्रस्तुत कि या जाए तो, इससे जिले के पर्यटन विकास को अधिक लाभ पहुँचेगा ।
खान्देश के जलगांव जिले को महाराष्ट्र में अधिक तापमान वाला गरम जिला माना जाता है । जिसके चलते लोगों द्वारा अनुमान लगा लिया जाता है कि जलगांव जिले में पर्यावरण संतुलन के अभाव के अलावा प्राकृति संपदाओं की कमी होगी । कि न्तु इन मिथ्यावादी तर्को से परे हटते हुए खान्देश में व्याप्त प्राकृतिक एवं पर्यावरण संतुलन के केंद्रों में से एक मनूदेवी तीर्थक्षेत्र का नाम भी सामने आता है । महाराष्ट्र के वैभवशाली संस्कृति व अध्यात्म की प्रस्तुति लिए अग्रेसर माने जाने वाले जलगांव जिले के यावल तहसील के अंतर्गत आने वाले श्री मनूदेवी तीर्थक्षेत्र को प्राकृतिक पर्यावरण संपदा से भरे पर्यटन स्थल के अलावा शक्तिपीठ के रूप में भी जाना जाता है । यावल शहर से अंकलेश्वर मार्ग की ओर चोपडा जाते समय रास्ते में लगने वाले आडगांव परिसर के समीप स्थित इस श्री मनूदेवी मंदिर स्थल की दूरी आडगांव फाटा परिसर से मात्र ९ किमी है । इस मार्ग पर जाते समय आडगांव से लगभग ६ कि मी की दूरी पर पवन पुत्र हनुमान का एक सुंदर एवं पुरातन मंदिर मौजूद है । इस मंदिर परिसर के निकट ही रमणीय तालाब निसर्ग के सप्तरंगों की छटा बिखैरता दिखायी देता है । श्री हनुमान मंदिर से मात्र 3 कि मी की दूरी पर स्थित आदि शक्तिपीठ श्री मनूदेवी तीर्थस्थल न केवल पुरातन मंदिर के रूप में बल्कि सुंदर झर झर बहते झरनों व पक्षियों की कलरव के स्वरों के साथ निसर्ग की अप्रतिम प्रस्तुति धरती पर उकेरता दिखायी देता है । जलगांव से मात्र ३५ किमी की दूरी पर सातपुडा पहाडियों से जुडा सूर्यकन्या मानी जाने वाली तापी नदी के आँचल में समाया रमणीय पर्यटनस्थल है । श्री मनूदेवी क्षेत्र में आने जाने वाले पर्यटको के लिए लगभग ४०० फुट ऊंचाई से सतत गिरने वाला झरना एक आकर्षण का केंद्र है । साधारणत: सात आठ महिने तक इस झरने से लगातार पानी गिरते हुए पर्यटको का मनोरंजन करता रहता है । मनशक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध इस श्री मनूदेवी शक्तिपीठ के बारे में कहा जाता है कि इसवीं १२५१ में इसका शोध करते हुए इंगले घराने के द्वारा इसे पर्यटन स्थल के रूप में प्रस्तुत किया गया । इतिहासकारों का कहना है कि पूर्व में ईश्वसेन राजा इस परिक्षेत्र में राज्य किया करते थे । जिसके पुरातन अवशेष भी यहाँ मौजूद है ।
हेमाडपंथी शैली से बनाये गये इस मंदिर में लगभग १३ फुट ऊंचाई की एवं २ कि मी लंबाई की प्राचीन ईटों का निर्माण श्री मनूदेवी परिसर की विशेषता व्यक्त करता है । बताया जाता है कि बुरूज शैली में इस मंदिर परिसर की सीमाओं को बांधा गया था । अब इनके अवशेष मात्र इतिहास की गवाही देते है । श्री मनूदेवी देवी शक्तिपीठ के रूप में स्थानीय लोककथाओं के आधार पर बताया जाता है कि एक बार त्रिदेवों पर भारी संकट आन पडा । राक्षसों के अत्याचार एवं हावी होने की स्थिति में सातपुडा पर्वत श्रेणियों की गुफांओं मे छिपने का मन बना कर ब्रम्हा, विष्णू, महेश ने इन गुफांओं में छिपते हुए अपने तपबल व श्वासों के दम पर प्राकृतिक रूप से एक तीव्र ज्योत प्रकट की । उस सर्वशक्तिमान प्रकाश के सामथ्र्य से उसे श्री मनूदेवी मानते हुए इन त्रिदेवों ने आदि शक्ति से स्वयं पर संकटों के निदान का वरदान माँगा । लोकथाओं के आधार पर बताया गया है कि तब श्री मनूदेवी ने देवताओं को अभय वचन देते हुए श्री सप्तश्रृंगी देवी के अवतार के रूप में अवतरित होते हुए महिषासुर राक्षस के वध की जानकारी दी । बताया जाता है कि देवी के इस कथन के आधार पर महिषासुर से सतत सात वर्ष तक घनघोर युद्ध भी प्रस्तुत हुआ । इन लोकथाओं के आधार पर उपजी श्रद्धा के चलते ही खान्देश की कुलदेवी के रूप में श्री मनूदेवी को पूजा जाता है । इसके अलावा यहाँ पर स्थापित मूर्ति के प्राचीन एवं उत्खनन में प्राप्त होने के अवशेषों एवं तथ्यों के चलते इस स्थल को पुरातन होने का दावा प्रस्तुत करते है । इसके अलावा सम्पूर्ण मार्गशीर्ष महिने व श्रावण महिने की अमावस्या के दूसरे दिन श्री मनूदेवी का यात्रोत्सव मनाया जाता है । इस पर्यटन क्षेत्र में अध्यात्म की इस तरह की प्रस्तुति के अलावा परिसर में रमणीय पहाडियों के बीच ऊंचे ऊंचे वृक्ष , झाडियां एवं अन्य प्राकृतिक संपदाएं श्री मनूदेवी को अध्यात्म व पर्यटन का अनोखा संगम के रूप में प्रस्तुत करती है । आज श्री मनूदेवी पर्यटनस्थल के लिए रोजाना लगभग एक हजार लोग दर्शन व पर्यटन के लिए इस परिसर में पहुँचते है । इतना ही नही इस अध्यात्म व निसर्ग के प्राकृतिक संयोजन में लोगों द्वारा अपने धार्मिक अनुष्ठान विवाह, अभिषेक, मुंडण आदि भी किये जाते है ।
खान्देश की वैभवशाली परम्परा में ४०० फुट की ऊंचाई से बहने वाला झरना, रमणीय पहाडियां एवं हरियाली भरा वातावरण जलगांव जिले के बेहद गरम तापमान वाले जिले की मिथ्या को दूर करता है ।
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