@@ बच्चों की मालिश हंसी खेल नही..!!


नवजात बच्चों की मालिश करना हंसी खेल नही , २५ सालों से कठोर हाथों से नर्म मालिश कर रही है इंदूबाई सपकाले


विशाल चड्ढा


नवजात बच्चों को उनकी जन्म देने वाली माँ के हाथों की पहचान होने के कारण इन बच्चों को किसी और के द्वारा संभाले जाना स्वीकार नही होता । इससे प्रकृति की दी गयी बुद्धि ही कहा जायेगा ,कि नवजात बच्चे फौरन ही किसी दूसरे का हाथ पहचान कर रोना प्रारंभ कर देते है । ग्रामीण इलाको में आज के शहरी परिवेश की तुलना में बच्चों के जन्म के बाद जन्म देने वाली माँ एवं नवजाज शिशु की मालिश आदि करने की वैज्ञानिक परम्परा है । हालांकि शहरी जीवन में यह सब बातें दूर होते हुए आज के फिटनेस संस्थानों एवं सम्बन्धित दवाईओं , लेप आदि पर निर्भर हो चुकी है । किन्तु अर्ध शहरी व ग्रामीण भागों में अभी भी दादी माँ ·के नुस्खे से भरपूर जडी बुटियों यां पारम्परिक मसालों आदि से बने तेलों से मालिश करने एवं उसके बाद गर्म पानी से स्नान आदि करने की परम्पराऐं व्याप्त है । जलगांव में पिंप्राला हुडको परिसर में रहने वाली इंदूबाई सपकाले विगत २५ वर्षो से इन कार्यो को अंजाम देते हुए अब तक न जाने कितने बच्चों एवं उनकी माताओं की मालिश कर के उन्हे निरोगी बना चुकी है । इतना ही नही इंदूबाई सपकाले घुटनों एवं पैरों के दर्दो से परेशान बुजुर्गो की मालिश के अलावा लकवाग्रस्त व पोलिओ आदि के मरीजों की भी मालिश कर के उन्हे संजीवनी प्रदान करने का प्रयास करती है । इंदूबाई सपकाले ने बताया कि केरल में पारम्परिक तरीके से मालिश कराने के लिए लोग ऊंचे दाम देकर इसका लाभ लेते है । किन्तु शहरी, अर्ध शहरी व ग्रामीण इलाको में कुछ शिक्षित हो चुके यां सोसायटी का हवाला देने वाले लोग इस तरह की मालिशों से कतराते है । हालांकि वह नही जानते कि नवजात शिशु एवं प्रसव के बाद महिला को विभिन्न वस्तुओं से मिश्रित तेल से मालिश की क्यों आवश्यकता होती है । इस बीच इंदूबाई सपकाले ने बताया कि कामकाजी महिलाएं एवं भागती व्यस्त जिंदगी से जुझते परिवार इन सब का महत्व भूलते जा रहे है । पहले तो प्रसव के बाद महिला एवं नवजात शिशु को कई दिनों तक अजवायन एवं अन्य प्रकार की वस्तुओं का, गाय के गोबर से बने कडो की आग पर धुआँ कर के उस वातावरण में उन्हे रखा जाता था । जो उन्हे चमत्कारी आयुर्वेद की शक्ति प्रदान करता था । कि न्तु अब बाजार में उपभोगतावाद के चलते आ गये प्रोडक्ट बच्चों के साबुन व तेल आदि के कारण आधुनिकता की जीवनशैली जी रहे लोग इन पारम्परिक चीजों से दूर होते जा रहे है । अपने संस्मरण व अनुभव बांटते हुए इंदूबाई सपकाले ने बताया कि सरसों, नारियल, तिल एवं मुँगफली के तेल से पहले मालिश की जाती थी । कुछ परिवार गाय के घी का मालिश के लिए इस्तेमाल किया करते है । किन्तु लाख इनके फायदें बताने के बावजूद भी अब परिवारों द्वारा जो तेल आदि उपलब्ध कराया जाता है उन्ही से काम चलाना पडता है । एक ८३ वर्षीय महिला की मालिश करने जा रही इंदूबाई सपकाले ने बताया कि उस वयोवृद्ध महिला को हाथ और पैर में गाठें बन गयी थी । कि न्तु उनकी मालिश से वह बुजुर्ग महिला ठीक होते हुए शुभाशिष देती है । जलगांव में इस तरह से दस महिलाएं मिल कर इंदूताई सपकाले के साथ एक महिला बचत गट भी चला रही है । इसके अलावा श्रीमती सपकाले बर्तन , पडे, खाना आदि बनाने का भी कार्य करती है । अपनी सासू माँ से इस परम्परा को सीख कर अपना कार्य प्रारंभ करने वाली इंदूबाई सपकाले ने बताया कि विगत २५ वर्षो में न जाने कि तने बच्चों को मालिश करके स्वस्थ्य बनाया है । इनमें से तो कु छ बच्चों की शादी भी हो गयी है । एक दो परिवार तो ऐसे भी जहाँ मैंने बच्चे के माँ यां बाप की भी मालिश की है और अब मैं उन·के बच्चों की भी मालिश कर रही हूँ । भोपाल से जलगांव रहने आये एक प्रायवेट बैंक के मैनेजर श्री संजय खानवलकर एवं उनकी पत्नी अर्चना खानवलकर ने बताया कि पिछले एक वर्ष से श्रीमती इंदूबाई सपकाले उनकी छोटी बेटी बाद में उनकी माताजी की मालिश कर रही है । अपने अनुभवों में खानवलकर दंपत्ति ने बताया कि अब तो बच्चें को इतनी आदत लग गयी है कि जब तक इंदूताई अपने दिखने वाले कठोर हाथों से नर्म नर्म मालिश नही करती बेटी स्वस्थ्य नींद नही सो पाती । जलगांव के श्री बिर्ला परिवार को याद करते हुए इंदूबाई ने बताया कि सबसे पहले मैँने उनके यहाँ पर यह कार्य प्रारंभ किया था । आज बिर्ला परिवार का बेटा शादी योग्य है और मुझे देखते ही कहने लगता है, कि बचपन में बहुत मालिश करायी अब मैं बडा हो गया हूँ । इंदूबाई के परिवार में दो लडके व दो लडकि यां है । खास बात तो यह है कि इनके बच्चों की भी मालिश साथ में बहूओं व अपनी बेटियों की भी मालिश इंदूबाई ही करती है । इंदूबाई की मालिश की खास बात यह है कि इनके हाथ में आते ही बच्चा अपने आप को सुरक्षित एवं प्रसन्न समझने लगता है । अधिकांश परिवारों ने बताया कि उनके घरों मे बच्चो की मालिश के बाद जिस तरह से सधे हुए हाथों से इंदूबाई बच्चे को नहलाती है उसके बाद बच्चा भरपूर नींद लेता है । इतना ही नही साधारणत: एक घंटे तक मालिश व नहाने की प्रक्रिया में बच्चे की रोने की आवाज तक नही आती । शहरो मे तो अब यह आलम है कि इंदूबाई जैसी हुनरबाज महिलाओं को परिवार दुन्ढ़ते फिरते ..है ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

गणितज्ञ भास्कराचार्य जयती पर विशेष

श्री इच्छादेवी माता का मंदिर एक तीर्थक्षेत्र

जगजीत , आशा और लता जी.. वाह क्या बात है