हरिजनों के लिए खुला पहला मंदिर
खिरोदा का विठ्ठल मंदिर हरिजनों के लिए खुला किया जानेवाला पहला मंदिर
विशाल
विशाल
रावेर तहसील के अंतर्गत आनेवाले खिरोदा गांव को ऐतिहासिक सम्मान प्राप्त है। कई मायनों में राज्यभर में प्रसिध्द खिरोदा गांव राजनैतिक स्तर पर तो ख्याति रखता ही है। साथ में इतिहास के पन्नों में जातिगत भेदभाव दूर करने का एक सुनहरा अध्याय भी खिरोदा से जुडा हुआ है। खिरोदा परिसर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय धनाजी नाना चौधरी द्वारा स्वतंत्रता आंदोलनों के कार्यों को देखते हुए यह कहा जा सकेगा कि, फैजपुर में हुए कोंग्रेस के पहले ग्रामीण अधिवेशन की सारी कमान खिरोदा से संचलित हुयी थी। महात्मा गांधी का फैजपुर से खिरोदा तक बैलगाडी से आगमन एवं धनाजी नाना चौधरी के यहां वास्तव्य १९३२ की यह घटना खिरोदा गांव का महत्व बढा देती है। आज भले ही जलगांववासी इन ऐतिहासिक क्षणों को विस्मरित कर चुके हो किंतु खिरोदा का एक ऐतिहासिक स्मरण रखनेवाला योगदान भारत की तत्कालीन जातिगत छुआछूट भेदभाव को समाप्त करने की पहल के रुप में याद रखा जायेगा। जब स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय धनाजी नाना चौधरी की प्रेरणा से धनु अण्णा चौधरी व महारु बापू चौधरी के नेतृत्व में खिरोदा का विठ्ठल रुक्मिणी मंदिर महाराष्ट्र में पहली बार हरिजनों के लिए दर्शनों हेतू खुला किया गया था। ३१ जनवरी १९४० की इस घटना में विठ्ठल रुक्मिणी का यह मंदिर हरिजन भेदभाव को समाप्त करते हुए पूज्य सानेगुरुजी की उपस्थिती में वर्धा की श्रीमती मालती थत्ते द्वारा हरिजनों के लिए दर्शनो हेतू खोला गया महाराष्ट्र का पहला मंदिर बन बैठा। घर की मुर्गी दाल बराबर की उक्ति के आधारपर १९४० की यह घटना इतिहास की धरोहर बन कर रह गयी है। इस घटनाक्रम के बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय धनाजी नाना चौधरी के परिवार ने इसी परम्परा को जारी रखते हुए उनके पुत्र पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व कई मंत्रालयों के मंत्री रह चुके स्वर्गीय मधुकरराव चौधरी द्वारा आगे बढाया गया। अब परिसर के विधायक एवं स्वर्गीय मधुकरराव चौधरी के पुत्र शिरीष चौधरी द्वारा भी इन्ही परम्पराओं का निर्वाह करते हुए रावेर, फैजपुर, सावदा आदि परिसर से सटे सातपुडा वन क्षेत्र को बचाने का प्रयास किया जा रहा है। खिरोदा की १९४० की इस ऐतिहासिक घटनावाले विठ्ठल रुक्मिणी मंदिर को कॉंग्रेस के शताब्दी वर्ष के बाद शासन द्वारा एक स्मारक स्वरुप, मान्यता या शासकीय सम्मान दिए जाने की मांग अब परिसर में उठने लगी है। ताकि पर्यटन व इतिहास की घटनाओं में खिरोदा का यह विठ्ठल रुक्मिणी मंदिर समाविष्ट होकर जलगांव जिले का नाम अग्रणी कर सके।
खिरोदा गाव के इस ऐतिहासिक धरोहरको समाज के संमुख लाने का आपका प्रयास निश्चीतही स्पृहणीय और अभिनंदन के पात्र है| कहते हैं की जो लोग इतिहास भूल जाते है, वे इतिहास नही बना पाते! इस उच्च परंपरा को ध्यान मे रखते हुये अब हमारा जिम्मेवारी और भी बढ जाती है की न केवल इसका उचित सम्मान और अभिमान रखे बल्की इस गौरवशाली परंपराको कालनुरूप श्रेयस रुपमें आगे बढाये|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
I always felt very proud to be a citizen of khiroda. It's a Milestone that every GenX should be aware. They should aware for what actually our Khiroda is always known for...
जवाब देंहटाएंWhat our ancestors achieved for us and what we are doing. I think this is the best way to get them aware.