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मार्च, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आज महिला आजादी पर जश्र नहीं मनाओंगे

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विश्व महिला दिवस पर सुबह....सुबह....    सज धज कर निकले पति से बोल बैठी पत्नी कहां निकले हो भद्र पुरुष आज महिला आजादी पर जश्र नहीं मनाओंगे रविवार है तो क्या घर का काम नहीं करवाओंगे   आज विश्व में क्या वाटस अप, फेसबूक, ट्वीटर पर भी महिला छाई है फिर कामचोरी से तुम्हे क्या बुराई है   डरते सहमते भद्र पुरुष की आवाज थरराई सुखे हलक में से कुछ शब्दों की लडीयां बाहर आई बोला जश्र ही तो मना रहा हूँ पी पी पी के अधिवेशन जा रहा हूँ पत्नी का माथा  ठनका ेबेलन का कंपन भनका बोली महिला दिवस हमारा आजादी तुम मनाओगे घर का काम धरा है तुम पी पी पी के अधिवेशन जाओगे   आनन फानन में चित्रहार का अल्प विराम हुआ दो मिनट के विज्ञापन में ही ठुकाई का सारा प्रोग्राम हुआ बेचारा मरता क्या न करता उत्सव पर बिन किये की सजा पा गया महिला आजादी के जश्र में बरतन चौके में समा गया बेलन झाडू का दर्द भी उसे सालता रहा भ्रद पुरुष से कु पुरुष का भ्रम पालने लगा पी पी पी का सपना कराह में झलकने लगा   महिला दिवस हावी सा होने लगा शाम को पार्टी से लौट पत्न

सावधान रेलवे में चलती है अलग भाषा..

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                         सावधान रेलवे में चलती है अलग भाषा             जेब कतरो की सांकेतिक भाषा अंजाम देती है अपराध को                                                     भुसावल मंडल रेलवे के अंतर्गत इन दिनों जेब कतरो की जो सांके तिक भाषा उभरकर आ रही है। वह अपने आप में निर्माण की गई संवाद की एक शैली बनी हुई है। संवाद की प्रक्रिया के लिए संकेतो को यदि सकारात्मकता के साथ जोडा जा सकता है तो वही इन संके तो व शब्दों को अपराध के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। भुसावल मंडल में रेलवे के अंतर्गत चोरी व जेब काटने की घटनाओं का प्रमाण बढता ही जा रहा है। इसे रोकने के लिए भले ही भरसक प्रयास हो किन्तू जेब कतरो की इजाद की गई भाषा का जब तक गंभीर अध्ययन नहीं होगा तब तक जेब कतरी की घटनाओं में कमी नहीं आ पाएगी। टे्रन में यात्रीयों के सामान पर हाथ साफ करते हुए यदि कोई पुलिस कर्मी आ जाता है तो कहा जाता है की मख्खी आ गई या फिर ढोला आ गया।     जेब कतरो की भाषा में १ हजार के नोट को थान, १०० रूपए के नोट को गज,  ५०० रूपए के नोट को गांधी बापू, फुटकर पैसो को १० या २० पाव, ५० रूपए को आधा गज क