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खानदेश की प्रचलित स्वांग लोककला

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                           खानदेश की प्रचलित स्वांग लोक कला                        खानदेश में विठ्ठल,बालाजी, प्रभु श्री राम आदि के रथोत्सव निकाले जाने की परंपरा है।इन रथोत्सव में मोर पंख धारी स्वांग की लोककला प्रस्तुत की जाती है। परंपराओं के आधार पर लोककथाओं के पात्र के रूप में भवानी देवी व भूर राक्षस के युद्ध संवाद को प्रस्तुत करने वाले स्वांग बडी संख्या में प्रस्तुत किए जाते हैं ।  अथाह भीड के बीच यह मोर पंख धारी स्वांग सभी का आकर्षण बनते हैं । रथोत्सव के दौरान एक दिन पहले से कुल तीन दिन तक के लिये इन स्वांग धारी भवानी स्वरूप की बडी संख्या में प्रस्तुती रहती है। स्वांग की इस लोककला में सिर्फ पुरूष वर्ग अपनी मन्नत पुरी करने के लिए देवी मां भवानी का स्वांग यां स्वरूप लेकर अपने मुखमंडल पर सिंदूर लगाकर, दैत्य और मां भवानी के बीच होने वाले युद्ध का वर्णन करते है। इस लोककलात्मक नृत्य के दौरान डफ, संबल, ढोल, नगाडा आदि वाद्योंं के एक अनोखे ताल पर युद्ध नृत्य आरंभ करते है। जैसे जैसे वादयों का ताल अति शीध्रता से बजाया जाता है, वैसे ही देवी माँ के यह स्वांग संगीत के लय और ताल पर शरीर कि

किताबों में मुरझाए फूल मिले..

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   किताबों में मुरझाये हुए कुछ फू ल मिले  याद आया जमाना जब थे यह फूल खिले रोशनी आंखों में चमक सी लगती थी तब  दोपहर की धूप भी ठंडक देती थी  तब   याद आया बहुत सा गुजरा जमाना कोने वाली अम्मी का चिडिय़ों को दाना चुगाना मां का नम आंखों से चूल्हे को फूं क कर जलाना देगची से उबलती दाल का पानी यह सब बातें याद दिला रही हैं कहानी                         किताबों में मुरझाये हुए कु छ फू ल मिले        भूतकाल की कल्पना लिये मानो भविष्य से मिले        आज वर्षों बाद जवानी की यादों के फूल खिले        किताबों में मुरझाये हुए कुछ फू ल मिले       किताबों में दबे फूल की सुगंध       महका रही है अब भी मन को      वो बेपरवाही, शरारत, उकेर रही अक्खडपन को      पांच-दस पैसे की भी एक औकात होती थी     खनकते सिक्कों के साथ लाखों की बात होती थी     बचपन-जवानी की दहलीज सब याद आ गई    कंचे, गुल्ली डंडा, शतरंज की बिसात याद आ गई                               मुरझाये फूलों ने यादों के रंग भर दिये                     शहर के शोर में मिश्री के स्वर घोल दिये                      याद आ

पदमालय तीर्थ स्थल में गणेशजी से जुडी है अलौकिक कथाएं

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    विराजमान है बाएं व दाएं सूंडवाले गणेशजी                                               जलगांव शहर से लगभग ३० किलोमीटर की दूरी  एरंडोल तहसील में  स्थित पदमालय तीर्थ स्थल गणेशोत्सव के दौरान एक बडे श्रध्दा का केंद्र बना हुआ है। आमतौर पर वर्ष भर पदमालय तीर्थ स्थल पर श्रध्दालुओं का आगमन होता है। किंतु गणेशोत्सव के दौरान पदमालय में विराजमान बाएं व दाएं सूंडवाले गणेशजी की मूर्ति का दर्शन श्रध्दालुओं को एक वरदान समान प्राप्त होता है। पदमालय तीर्थ स्थल की कई अलौकिक बाते इसे और भी महत्वपूर्ण बना देती है। खान्देश के इस पुरातन मंदिर में चांदी के सिंहासन पर गणेशजी की बाएं व दाएं सूंडवाली  मूर्ति रत्नों से सजी विराजमान है। मंदिर संस्थान के विश्वस्तों का कहना है कि, महाराष्ट्र के अष्टविनायक की तरह मान्यता रखनेवाले इस तीर्थ को ढाई पीठ के आधे पीठ के रुप में जाना जाता है।            गणेशजी की मूर्ति किसी के द्वारा भी तैयार न करते हुये स्वयं भू रुप में प्रकट हुई है। पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि, शेषनाग ने जब धरती को विराजमान कराया था उस समय गणेशजी से दाएं और दर्शन देने के लिए अनुनय विनय

खान्देश भर में मनाया गया कृषिपर्व पोला, आधुनिकता की दौड में सजे हुए बैल प्रस्तुत कर रहे थे अनोखापन

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  जलगांव शहर सहित पूरे खानदेश में  सोमवार २५ अगस्त को कृषिपर्व के रुप में पोला उत्सव मनाया गया। इस वर्ष समाधान कारक बारिश होने के बावजुद पोला पर्व पर कुछ खास उत्साह दिखाई नहीं पडा। किन्तू परंपराओं को जारी रखते हुए पोला पर्व मनाया गया। आगामी दिनों में चुनाव की सरगर्मियां देखते हुए भी पोला पर्व पर प्रभाव देखा गया। जिले में इस त्यौहार की तैयारियों के लिए एक पखवाडे से लोगों की भागदौड प्रारंभ हो गई थी। शनिवार को शहर के बाजार क्षेत्र में पोला पर्व की खरिददारी देखी गई। रविवार को बाजार बंद होने के बावजुद भी छुटपुट खरीददार दिखाई दिये। खान्देश सहित संपूर्ण महाराष्ट्र में मनाये जाने की परंपरा है। आम तौर पर महाराष्ट्र के कृ षि प्रधान क्षेत्रों में पोला उत्सव बडी धुमधाम व श्रध्दा के साथ मनाया जाता है। महाराष्ट्र के अलावा छत्तीसगढ व अन्य राज्यों में भी पोला उत्सव मनाने की परंपरा है। पोला पर्व भादो मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इसे पोला पाटन व कुशोत्पाटनी आदि नाम से भी जाना जाता है। पोला त्यौहार में किसानों द्वारा अपने पशूधन खासतौर से बैल आदि की  पूजा, प्रतिष्ठा कर अपने पशु धन के लिए स्वास्थ्

चारसौ से अधिक मोबाईल पोट्रेट को अंजाम दिया मितेन ने

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मोबाईल पर थिरकती उंगलियों से अमिताभ बच्चन की सराहना तक, चारसौ से अधिक मोबाईल पोट्रेट को अंजाम दिया मितेन ने                        जलगांव शहर में बिना किसी आर्ट पाश्र्वभूमी के अपने शौक को आगे बढाते हुए ४३ वर्षीय मितेन लापसिया ने अमिताभ बच्चन के चारसौ से अधिक मोबाईल पोट्रेट बनाकर युवाओं में एक अच्छी पैठ निर्माण की है।                 इंटरनेट के युग में सीधे साक्षात्कार को जाने की अवस्था में मितेन लापसिया को इस सारी कलात्मकता के लिये स्वयं अमिताभ बच्चन ने बधाई भी दी। लगातार अपना क्रियेशन जारी रखते हुए श्री लापसिया ने पुन: अमिताभ बच्चन को अपनी ओर आकर्षित करते हुए एकबार फिरसे वाहवाही लूटी।        शहर में क्रियेटिव डिजाईनर व प्रिंटींग का व्यवसाय करने वाले श्री लापसिया को कला व पोट्रेट बनाने का शौक उनके पिता श्री चंद्रकांत लापसिया से प्राप्त हुआ। मुंबई में जे.जे.आर्टस् महाविद्यालय में श्री चंद्रकांत लापसिया ने अपनी शिक्षा पूरी कर जलगांव में अपने हुनर को प्रसारित किया।                            बचपन से घर में कुची व रंग का तालमेल देखकर

गणितज्ञ भास्कराचार्य जयती पर विशेष

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गणितज्ञ भास्कराचार्य जयती पर विशेष -       गणितज्ञ भास्कराचार्य का जलगांव जिले से बहुत बडा संबंध बताया जाता है। गणित व खगोलशास्त्र के अध्ययन में भास्कराचार्य को जलगांव जिले में ही प्रगती मिलने के साक्ष्य भी मौजूद है। इतिहास में इसवी सन ११५ ३ से ५४ के बीच जलगांव जिले के चालीसगांव तहसील में स्थित पाटणादेवी परिसर में मिले संस्कत शिला लेखों में खगोलशास्त्री भास्कराचार्य का उल्लेख प्राप्त होता हेै। भास्कराचार्य के पौत्र के रूप में चांगदेव ने भी बडे ज्योतिष होने का सम्मान इसी जिले में प्राप्त किया। पूराने शिलालेखों के अनुसार चांगदेव ने अपने दादा के सिद्धांत शिरोमणी व अन्य ग्रंथों के अध्ययन के लिये पाटणा परिसर में एक बडा मट निर्माण करने की भी इतिहास में जानकारी मौजूद है। इतिहास कारों का कहना है कि अंतरराष्ट्रिय किर्ती के प्रख्यात गणितज्ञ, खगोल शास्त्री भास्कराचार्य चालीसगांव के पाटणे यां पाटणा देवी परिसर में सन १११० से ११८५ तक निवास करते थे। भास्कराचार्य ने इसी स्थान पर अपनी विधवा बेटी लिलावती के लिये गणित शास्त्र पर गं्रथ लिखा था। सिद्धांत शिरोमणी गं्रथ में गणित के श

राज्य में दसवीं कक्षा के मात्र ४ प्रतिशत विद्यार्थियों ने प्रथम भाषा के रूप में स्वीकारा हिंदी को

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दसवीं कक्षा के मात्र ४ प्रतिशत विद्यार्थियों ने प्रथम भाषा के रूप में स्वीकारा हिंदी को  हाल ही में १० वीं कक्षा के परिणाम घोषित होने के बाद राज्य भर के कुल १० वीं कक्षा उत्तीर्ण हुए विद्यार्थियों की संख्या का ४ प्रतिशत ही हिंदी भाषा को प्रथम भाषा के रूप में स्वीकार करने में सफल हुआ। जबकि हिंदी भाषा को दूसरे व तीसरे भाषा प्रारूप में स्वीकार करने वालों की संख्या लगभग ८१ प्रतिशत रही। देश में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा हिंदी भाषा के प्रोत्साहन के लिये निर्णय लेकर जो सूचना जारी की गई है। उससे भाषा वाद का मुद्दा सामने आने लगा। दक्षिण प्रदेशों में पहले से ही हिंदी भाषा के उत्थान यां प्रमुखता को लेकर भाषा वाद का आंदोलन किया जाता रहा। ऐसे में स्कूली शिक्षा में हिंदी की अनिवार्यता यां विद्यार्थियों के रूझान, आकर्षण भी भाषा की स्थिती को बयान कर रहे है। महाराष्ट्र में १० वीं कक्षा के सामने आये नतिजों में हिंदी भाषा को प्रथम भाषा के रूप में स्वीकारने वालों की संख्या उर्दु भाषा को प्रथम भाषा के रूप में स्वीकारने वालों की संख्या के रूप में काफी कम है। हिंदी भाषा को दसवीं कक्षा क ी परीक