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विश्व में सबसे छोटी ३०० वर्ष पुरानी बालकृष्ण की मूर्ति का दावा,

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विश्व में सबसे छोटी ३०० वर्ष पुरानी  बालकृष्ण की मूर्ति का दावा, विशाल चड्ढा  । जलगांव                जलगांव जिले के धरणगांव शहर में बालकृष्ण स्वरुप की एक ३०० वर्ष पुरानी मूर्ति अपने अलौकिक स्वरुप में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के लिए सुशोभित है। वर्षो से इस मूर्ति की पूजा अर्चना कर रहे जोशी परिवार का दावा है कि, बालगोपाल के स्वरुप में विद्यमान यह चांदी की मूर्ति विश्व में सबसे छोटी मूर्ति के रुप में मौजूद है। हालांकी जोशी परिवार द्वारा पुरातन सर्वेक्षण विभाग, लिम्का बुक या अन्य प्रकारके दावों के प्रयोग से इन्कार करते हुए इस मूर्ति की पीढी दर पीढी चली आ रही पूजा अर्चना को ही आधार माना है।  जोशी परिवार का दावा है कि, एक वयस्क इन्सान के हांथ की सबसे छोटी उंगली के नाखुन के  बराबर की यह कृष्ण मूर्ति विश्व की सबसे छोटी मूर्ति है। इस मूर्ति को चांदी की ठोस धातु से बनाया गया है। किंतू मूर्ति के  निर्माण में एक विशेष कलाकृ ती का ध्यान रखा गया है। जोशी परिवार इसे कृष्ण की भक्ति व चमत्कार का परिणाम बताता है कि, ठोस स्वरुप में बनाई गयी इस मूर्ति के नख-शिख तक स्नेह, चमक, व अपार श्रध्दा भर

खुखरायण समाज को नाज होना चाहिए अपने इस हीरे पर..

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खुखरायण  समाज को नाज होना चाहिए अपने इस हीरे पर.. संगीतकार श्री मदन मोहन कोहली का जन्म 25 जून 1924 को बगदाद इराक में हुआ था.श्री मदन मोहन कोहली के पिता श्री राय बहादुर चुन्नीलाल कोहली शुरू से ही फिल्म व्यवसाय से जुड़े थे. श्री राय बहादुर बाम्बे टाकीज और फिल्मीस्तान जैसे बडे फिल्म स्टूडियो में भागीदार थे. जिसके चलते मदन मोहन कोहली के घर का माहौल फि़ल्मी था और वह फिल्मों में एक बडा नाम बनना चाहते थे.किन्तु श्री राय बहादुर जी फि़ल्मी दुनिया को कॅरीब से जानते थे, इस लिए उन्होंने मदन मोहन को सेना में भर्ती होने देहरादून भेज दिया.मदन मोहन ने 1943 में सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर कार्य करना शुरू भी कर दिया.किन्तु दिल्ली स्थानांतरण होने के बाद मनमोहन एक बार फिर संगीत की तरफ खिचने लग गये  और वहां उन्होंने  लेफ्टिनेंट की नौकरी छोड़ कर लखनऊ आकाशवाणी में काम प्रारंभ कर दिया .लखनऊ आकाशवाणी में ही उन्हें संगीत जगत से जुड़े उस्ताद फैयाज खान, उस्ताद अली अकबर खान, बेगम अख्तर और तलतमहमूद जैसी मानी हुई हस्तियों से सीखने का मौका मिला. जिन्के कहने पार ही मदन मोहनजी ने लखनऊ से मुम्बई की रुख कि

किंगकॉंग को हराया था जलगाव में

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जलगाव से जुड़ी हैं दारा सिंह की यादें,  किंगकॉंग को हराया था जलगाव में.. विशाल चड्ढा । जलगांव गुरुवार को रूस्तम-ए- हिंद कहलाने वाले विश्वविख्यात कुश्ती पहलवान दारा सिंह के निधन के बाद उनके खानदेश के चाहने वालों में शोक की लहर दौड़ गई. दारा सिंह का जलगाव जिले से काफ़ी निकट का संबंध रहा है. आस्ट्रेलिया के विश्व प्रसिध्ह पहलवान किंगकॉंग को दारा सिंह ने जलगाव में मात्र दो मिनट में चित्त किया था.. कुश्ती से जुड़े जलगाव के पुराने लोगों ने दारा सिंह से जुड़ी यादों को ताज़ा करते हुए बताया की लगभग 42 वर्ष पूर्व  11 जनवरी 1970 में दारा सिंह की जलगाव के पुलिस मुख्यालय से जुड़े मैदान पर विश्व प्रसिध्ह पहलवान किंगकॉंग के साथ कुश्ती हुई थी. इस जाँबाज़ कुश्ती को देखने के लिए जन सागर उमड़ा था. आज इस स्थान पर एक स्टेडियम मौजूद है.. बताते हैं की यह सारी जगह लोगों से खचाखच भरी हुई थी. और इतना ही जन सैलाब कुश्ती स्थल के बाहर भी मौजूद था. जिन लोगों को कुश्ती की टिकटें नही मिली थीं उन्होने कुश्ती स्थल के बाहर हाय-तौबा भी की थी. लोगों ने बताया की जलगाव में उस समय के प्रसिध टाइगर आज़ाद, स्टील मैन,

बुरहानपुर में मुगल कालीन यादें पानी के रूप में आज भी ताजा

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बुरहानपुर में मुगल कालीन यादें पानी के रूप में आज भी ताजा,   वर्ष १६१५ पानी के रचनात्मक प्रयास अभी तक जारी                 महाराष्ट्र भर में खान्देश को सबसे ज्यादा गरम क्षेत्र माना जाता है । अप्रैल माह के अंत तक इन दिनों खान्देश का तापमान ४७ डिग्री सेल्सीअस के आकडे को सहजता से छू कर अपने गरम इरादों को प्रस्तुत कर चुका है । एैसे में खान्देश में पानी की किल्लत का सहजता से ही अनुमान लगाया जा सकता है । इन दिनों जलगांव जिले के कई क्षेत्रों में पानी के लिए खीचतान एवं दर दर की ठोकरे खाना प्रारम्भ हो चुका है । किन्तू पानी के लिए पर्याप्त व्यवस्थापन व नियोजन न होने के कारण खान्देश भर में गरमी का दौर आते ही पानी की कमी के स्वर तेज होते दिखाई पडने लगते है । एैसे में रावेर तहसील के लोग पास में सटे हुए मध्यप्रदेश के बुरहानपुर शहर की मुगल कालीन जलव्यवस्थापन व्यवस्था को याद करते फूले नही समाते। मध्यप्रदेश का बुरहानपुर पूर्व काल में खान्देश प्रदेश के भूभाग के रूप में जाना जाता था । कालांतर महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश के निर्माण के साथ सीमाओं का समझौता होते हुए बुरहानपुर शहर मध्यप्रदेश क

गोमाता केंद्रित खेती का आर्थिक सफल प्रयोग : जनभारती

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       गोमाता केंद्रित खेती का आर्थिक सफल प्रयोग प्रकृति का वरदहस्त प्राप्त महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में गन्ना और धान प्रमुख फसलें है. देश में हुई हरित क्रांति के लाभ बहुत प्रमाण में इस जिले के गॉंव-गॉंव तक पहुँचे है. नया तंत्रज्ञान, रासायनिक खाद और कीटनाशक तथा उन्नत बिजों का प्रयोग किसानों ने आरंभ किया. उत्पादन बढ़ने से किसान आनंदित हुए; लेकिन कुछ ही समय में इसका विपरित परिणाम देखने को मिला. भरपूर उत्पादन की आशा में आधुनिक पद्धति के नाम पर खेती में रासायनिक खाद का अंधाधुंद  प्रयोग होने लगा. रसायनों कीअति मात्रा के कारण खेती की उर्वरा शक्ति घटी. जैसे जैसे समय बीतता गया, उत्पादन और भी घटता गया; तब किसान जाग उठा और इस समस्या का हल ढूढने लगे.     किसान समस्याग्रस्त होने से गॉंव की व्यवस्था अस्तव्यस्त हो गई. उस समय, कोल्हापुर के ‘जनभारती न्यास’ ने उन्हें एक आसान उपाय- हर घर में कम से कम एक देसी गाय पालना- बताया. १९९७-९८ को कोल्हापुर में प्रबोधन परिषद हुई थी. उसमें प्रमुख अतिथि के रूप में बोलते हुए विख्यात समाजसेवक नानाजी देशमुख ने कहा था कि जब

खान्देश में रंगोली की चलती फिरती पाठशाला .. कुमुदिनी नारखेडे

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खान्देश की प्रसिध्द रंगोली प्रस्तुतकर्ता कुमूदिनी नारखेडे को राष्ट्रसेवा पुरस्कार का सम्मान जलगांव शहर सहित खान्देश भर में रंगोलियों के माध्यम से अपनी पहचान स्थापित करनेवाली श्रीमती कुमूदिनी नारखेडे को मणिभाई देसाई प्रतिष्ठान व नेहरू युवा केंद्र और क्रीडा मंत्रालय भारत सरकार के संयुक्त तत्वाधान के 'मणिभाई देसाई राष्ट्रसेवा पुरस्कार दिये जाने की घोषणा की गयी। विदित हो कि, यह पुरस्कार रंगोली व सांस्कृतिक क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए प्रदान किये जाते है। आगामी २७ अप्रैल को पूना के एस.एम.जोशी फाउंडेशन सभागृह, स्वारगेट में शाम 6 बजे संपन्न होनेवाले एक समारोह में श्रीमती कुमूदिनी नारखेडे को राष्ट्र सेवा पुरस्कार प्रदान किया जायेगा। इस अवसर पर कार्यक्रम में प्रमुख अतिथीयों के रुप में राज्य ग्रामविकास मंत्री जयंत पाटिल, पिंप्री-चिंचवड की महापौर श्रीमती मोहिनी लांडे, पूना जिला परिषद के अध्यक्ष दत्ता भरणे आदि प्रमुख रुप से उपस्थित रहेंगे। खान्देश में रंगोली की चलती फिरती पाठशाला है कुमुदिनी नारखेडे जलगांव के पुराने शहर परिसर में रहने वाली श्रीमती कुमुदिनी विजय न

मक्खन के हनुमान

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मक्खन के हनुमान के रूप में मौजूद है जलगांव में ऐतिहासिक हनुमान मंदिर जलगांव शहरसे लगभग १५ किलोमीटर की दूरी पर रिधूर गांवमें हनुमानजी का ऐतिहासिक मंदिर देशभरमें अपने चमत्कार के रूपमे जाना जाता है। रिधूर गांवके अवचित हनुमान मंदिर के रूपमे पेहचाने जानेवाले हनुमानजीके इस पुरातन मंदिर की यह विशेषता है की  मंदिर मे आठ फु ट उची हनुमानजी की मूर्ती किसी पाषाण या धातू से नही बनाई गयी । इस पुरातन मंदिर की ऐतिहासिक विशेषता ये है की आठ फुट उचे हनुमानजीको मख्खन व सिंदूरसे  मूर्तीके रूपमे ढाला गया है। खास बात ये है की जलगांव जिलेकी ४५ डिग्री सेल्सीयस वाली गर्मीमे भी इस मूर्तीपर पिघलनेका कोइ परिणाम नही होता। जलगांव तहसीलके इस चम्तकारी देवस्थान को देखनेके लिए देशभरसे श्रध्दालूओका आगमन होता है। तापी नदी के किनारे बसे इस अवचित हनुमान मंदिर को स्थानिय मराठी भाषामे लोण्याचा मारोती के रुपमे उल्लेखीत किया जाता है। लगभग ९ हेक्टरके परिसर मे अवचित हनुमान मंदिर को सुशोभित किया गया है। मंदिर के निकटही एकादशी के मंदिर की भी स्थापना की गयी है। अवचत हनुमान मंदिर के उपर श्रीराम, लक्ष्मण

पानी निकालने वाली मोटर साइकिल बनाने वाले विकास शिंदे

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खेती के औजार से लेकर जमीन से पानी निकालने वाली मोटर साइकिल बनाने वाले विकास शिंदे को मिला राष्ट्रीय पुरस्कार,  राष्ट्रपति ने सराहा विकास के काम को जलगांव !   हाल ही में दिल्ली में संपन्न हुये राष्ट्रीय शोध प्रतिष्ठान के छठवे राष्ट्रीय संशोधन स्पर्धा में अमलनेर तहसील के पिंगलवाडा में रहनेवाले विकास शिंदे को उनके प्रयोगात्मक कार्यों व शोधात्मक प्रस्तुति के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार के रुप में ५० हजार रुपये नगद व सम्मानचिन्ह के साथ नवाजा गया। पिंगलवाडा के विकास चैतराम शिंदे को प्रसिध्द वैज्ञानिक रघुनाथ माशेलकर के हांथो सम्मानित किया गया। इस अवसर पर एनआइएफ के प्रोफेसर अनिल गुप्ता व अन्य मौजूद थे। राष्ट्रपति भवन प्रांगण में संपन्न हुये इस कार्यक्रम में देशभर से नव शोध प्रवर्तक अपनी संकल्पनाओं एवं शोधों के साथ उपस्थित हुये थे। कार्यक्रम में राष्ट्रपति महामहिम प्रतिभा देविसिंह पाटिल ने विकास शिंदे के उपकरणों खास तौर से ड्रिल मशिन को देखते हुए विकास शिंदे के कार्यों की सराहना की।  विदित हो कि, महाराष्ट्र के जलगांव, नंदुरबार, धुलिया जिलों से तैयार खान्देश को अब तक कलाकारों, क
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आदिवासियों का लोकप्रिय होली त्यौहार भोंग-या प्रारंभ खान्देश के आदिवासी बहुल इलाकों में स्थानीय लोकप्रिय होली त्यौहार के भोंग-या स्वरुप का  गुरुवार १ मार्च से शुभारंभ हुआ खान्देश व सीमा से लगे अन्य राज्यों की आदिवासी संस्कृति में होली के इस भोंग-या स्वरुप को विशेष महत्व दिया जाता है। जिसके लिए वर्ष भर अपने क्रिया कलापों में लिप्त आदिवासी समाज बडी ही प्रतिक्षा के साथ इस दिन का इंतजार करते है। आम तौर पर होली से लगभग ८ दिन पहले से आदिवासी समाज द्वारा भोंग-या त्यौहार की परंपरा प्रारंभ हो जाती है। जबकी होली के लगभग एक माह पूर्व से आदिवासी व पावरा समाज द्वारा तांडा गांव में होली के पूर्व आगमन का स्वागत करते हुए विधीपूर्वक तैयारिंया की जाती है। इस भोंग-या त्यौहार के अंतर्गत आदिवासी समाज के युवा-युवतियों द्वारा विभिन्न प्रकार के रंगबिरंगे, तोता-मैना, शेर आदि अन्य प्रकार के मनोरंजक वेष धारण करते हुए आनंदपूर्वक एक साथ उपस्थित होकर यह त्यौहार मनाया जाता है। ऐसे में रंगो आदि के प्रयोग से परे इन आदिवासी समाज द्वारा प्रेम, उमंग, आपसी सौहार्द आदि के रंगो भरा स्नेह एक दूसरे पर उडेला जाता है।

गणेशजी की अप्रतिम मूर्तियां

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जलगांव की संगीता घोडगांवकर के पास है गणेशजी की अप्रतिम मूर्तियां, एक हजार से अधिक गणेश मूर्तिओं के संग्रह को देखने आते है विदेशी सैलानी  देश भर में गणोशोत्सव की धूम के बीच गणेश भक्तों को विभिन्न पंडालों में तरह तरह की भव्य मूर्तियां सहज ही आकर्षित कर देती है। ऐसे में पंडालों के बीच विभिन्न मुद्राओं में बैठे गणपति अनायास ही लोगों के बीच चर्चा का विषय बन जाते है ।         किन्तू इन सब के बीच जलगांव की संगीता घोडगांवकर के पास के गणेश मूर्तिओं के संग्रह को देख कर उनके इस श्रद्धांवत शौक को कोई भी सराहे बिना नही रह सकता । जलगांव की विभिन्न सामाजिक संस्थाओं में कार्य कर चुकी अब गृहणी के रूप में अपना घरबार सम्भालने वाली संगीताजी के गणेश मूर्तिओं के संकलन के इस शौक ने उनके पास विभिन्न मुद्राओं एवं दुर्लभ मुद्राओं वाली गणेश मूर्तिओं का एक अच्छा खासा संकलन तैयार कर दिया है । प्रारंभ में संगीता घोडगांवकर की गणेशजी के प्रति अगाध श्रद्धा के बारे में कौन जानता था कि, उनकी यह श्रद्धा आगे चल कर गणेशजी की आकर्षक लुभावनी मूर्तिओं के संगलन के रूप में उन्हें महाराष्ट्र ही नही बल्कि वि