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अब स्मृतियाँ मात्र शेष..

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                                                                                                             24  दिसंबर 2014    आज २४ दिसंबर २०१५ को पूज्‍यनीय दादी जी को हम सबके बीच से गये एक वर्ष बीत गया । बुजुर्गों का जाना जीवन की सबसे बड़ी क्षति के रूप में ही होता है । आज सिर्फ़ उनकी स्मृतियों को स्मरण कर प्रेरणा लेना ही हमारा समर्पण होगा । पूज्‍यनीय दादाजी द्वारा लगभग ३७-३८ वर्ष पूर्व सन्यास लेने के बाद माताजी ( दादी माँ ) ही थी, जिन्होने परिवार को मजबूती के साथ संभाला । हिन्दुस्तान विभाजन की पीढ़ा झेलने वाले इस परिवार में यह क्षण फिर से एक विभाजन जैसा ही था । मैं उस समय बहुत छोटा था किंतु इतना तो स्मरण है की काफ़ी कठिनाई भरे दिन थे वह । घर के मुखिया का अपने परिवार को अचानक छोड़ कर वैराग्य के मार्ग पर निकल जाना...सहसा ही कोई स्वीकार नही कर सकता..। माताजी के बुलंद होसलों से फिर से पूंजी एकत्रित कर जैसे तैसे परिवार ने फिर से अपना स्थान निर्माण किया । पाकिस्तान विभाजन में दादी सहित हमारे पुरोधाओं के शौर्य के किस्से सुनकर मेरा बचपन बीता । स्वाभाविक है इन सबकी छाप कहीं ना