श्री इच्छादेवी माता का मंदिर एक तीर्थक्षेत्र


मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र की सीमा पर मुक्ताईनगर तहसील के समीप स्थित  श्री इच्छादेवी माता का मंदिर एक तीर्थक्षेत्र की गरिमा स्थापित करता  है। मध्यप्रदेश के बुरहानपुर तहसील में आने वाले इच्छापुर गांव में मौजूद इस प्रख्यात मंदिर का दोनों राज्यों में बेहद महत्व है। 


























शारदीय नवरात्र उत्सव पर इच्छादेवी माता मंदिर पर मुक्ताईनगर व आसपास के श्रध्दालुओं द्वारा बडी संख्या में पहुंचकर आराधना की जाती  है। महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित इस ख्याती वाले मंदिर में सर्वपित्र अमावस्या की पूजा के बाद स्नान आदि के उपरान्त से ही श्रध्दालुओं का आगमन प्रारंभ हो जाता है। बुरहानपुर से २३ किमी व मुक्ताईनगर शहर से मात्र १७ किमी दूरी पर स्थित इस देवी के मंदिर को लगभग ४६० वर्ष पुराना माना जाता है।





   
मध्यप्रदेश के अलावा महाराष्ट्र की सीमा पर बसे लोगों द्वारा इस मंदिर के प्रति बडी श्रध्दा रखी जाती है। नवरात्र उत्सव प्रारंभ होते ही खान्देश से बडी संख्या में श्रध्दालुओं द्वारा श्री ईच्छादेवी मंदिर पहुंचकर देवी की पूजा अर्चना के साथ मन्नत मांगने का कार्य प्रारंभ कर देते है। इच्छा देवी मंदिर के प्रति श्रद्धा को देखते हुए  इन दिनों मुक्ताईनगर परिसर से पैदल जानेवाले श्रध्दालु भी देखे जा सकते है।  इस पुरातन मंदिर में १२५ फिट की ऊंचाई पर मां ईच्छादेवी की स्वयंभू मूर्ति विराजमान है। बताया जाता है कि, ग्वालियर के एक मराठा सुबेदार द्वारा इस मंदिर का निर्माण किया गया था। बाद में बुरहानपुर के सरदार भुस्कूटे द्वारा देवालय परिसर तक पहुंचने के लिए १७६ सीडियां निर्मित करायी गयी। वर्षभर छोटेबडे धार्मिक कार्यक्रमों के अलावा ईच्छापुर के इस मन्नतधारी मंदिर में शारदीय व चैत्रीय दोनो नवरात्र बडे धूमधाम से मनाएं जाते है। स्थानीय लोगों का कहना है कि, श्रध्दालुओं की बढती संख्या व मंदिर के रखरखाव के लिए १९८४ में श्री ईच्छादेवी ट्रस्ट की स्थापना की गयी थी।
 इस ट्रस्ट के संचालकों द्वारा मंदिर के इतिहास के बारे में बताया गया कि, स्कंद पुराण में तापी महामात्य वर्णन के अंतर्गत सप्तम अध्याय में मां ईच्छादेवी की महिमा का वर्णन उल्लेखित है। जिसके अनुसार ईच्छापुर गांव में देविदास नामक ब्राह्मण द्वारा तप किये जाने पर मां ईच्छादेवी ने ८ भुजाओं व शस्त्रधारण किये स्वरुप में वात्सल्य के साथ ब्राह्मण को दर्शन दिये। पौराणिक कथाओं के आधार पर देविदास नामक भक्त को माता ने ईच्छावर प्रदान किया। जिसके चलते इस गांव व मंदिर का नाम माँ ईच्छादेवी पर अंकित हुआ। गांव के बुजूर्ग बताते है कि, चैत्र माह में भक्तजन उपवास रखते हुएं नीम की पत्तियां लपेटकर स्थानीय भाषा में उसे नीम की साडी कहते हुये  देवी से वरदान प्राप्त करते है। और इस प्रक्रिया में चैत्र मास की चतुर्दशी को देवी का पूजन कर के उपवास छोडा जाता है। इस अवसर पर ट्रस्ट द्वारा मंदिर परिसर में किये गये कार्यों में सभा मंडप का निर्माण, गौ शाला, यात्री निवास एवं अन्य तरह की सुविधाओं की व्यवस्था करते हुए पर्यटन का समुचित प्रबंध किया गया है। मान्यताएं है कि लोगों द्वारा अपनी मन्नत को पूरा करने के लिए शारदीय नवरात्र उत्सव का इंतजार करते हुये इच्छादेवी मंदिर तक पैदल यात्रा प्रारंभ की जाती है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जगजीत , आशा और लता जी.. वाह क्या बात है

गणितज्ञ भास्कराचार्य जयती पर विशेष