मीडिया का ग्लैमर है भाई

                                    मीडिया का ग्लैमर है भाई
                

मीडिया का ग्लैमर जहाँ बाहरी लोगों को होता है वहीँ मीडिया में काम करने वाले भी इससे अछूते नहीं रहते। जीवन भर के खास दोस्त भी अपनी सारी दोस्ती एक किनारे रख कर ओवरटेक का मूड बना लेते हैं।
बोहरी समाज के धर्मगुरु एक बार ट्रेन से गुजर रहे थे, उनके अनुयायी दर्शनों के लिए रेलवे स्टेशन पहुंचे । मैं उस नज़ारे को याद कर रहा हूँ की अपने भगवान् की एक झलक पा कर सारा समाज महिला पुरुष कैसे रोते  बिलखते आशीष पा रहे थे। अनुशासन व समर्पण का एक यादगार भाव था वो।
खैर बात मीडिया की चल रही थी ग्लैमर को लेकर । जिसमें अनुशासन , समर्पण का न होना कोई नई बात नहीं है । आने वाले पता नहीं किस चाह के साथ आ रहे हैं, जाने वाले पता नहीं किस राह से परेशान जा रहे हैं, जो हैं उनको खुद की खबर नहीं । लेकिन ग्लैमर बरक़रार है ।
तेरे आने की जब खबर महके, तेरी खुश्बू से सारा घर महके ,शाम महके तेरे तसव्वुर से, शाम के बाद फिर सहर महके ,रात भर सोचता रहा तुझको, ज़हन-ओ-दिल मेरे रात भर महके ।। जगजीत सिंह से याद आया की निदा फ़ाज़ली भी चले गए  । धीरे धीरे ग़ज़लों का पुराना दौर ख़त्म होता जा रहा है, नए में अब वह जोश कहाँ  । वो अलफ़ाज़, वो भाव और श्रोताओं को बांधे रखने का वह सिलसिला  ही नहीं रहा ।  अब तो दर्शक भी बहुत देर तक बुद्धू बक्से के सामने बांधे नहीं रखे जा सकते । भांड मीडिया , पैकेट वाला मीडिया, दलाल मीडिया न जाने क्या क्या संज्ञा मिलने लगी है , फिर भी तेरे आने की जब खबर महके, तेरी खुश्बू से सारा घर महके ।
हमने इस कदर बसते - उजड़ते देखा है लोगों को 
अपनों  की छाती पर खड़े हो इमारत बना रहे लोग..
इस ग्लैमर का दूसरा रूप  सेल्फ़ी ने ले लिया है  । सुना है बुलंदशहर की डी.एम. बी चंद्रकला ने  सेल्फी के चक्कर में एक  युवक को चौदह दिन के लिए जेल भिजवा दिया । मॉस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार सेल्फी के चक्कर हर साल हजारों जानें जा रही हैं । वर्ष 2015 में दुनिया भर में सेल्फी लेने के चक्कर में 27 मौतें हुईं । रूस में लगातार हो रही मौतों व दुर्घटनाओं के मद्देनजर नागरिकों को चेतावनी दी गई है कि वे जोखिम लेकर सेल्फी लेने के शौक से बाज आएं। हमारे यहाँ भी मुंबई के बांद्रा में एक लड़की की सेल्फी लेते वक्त समुद्र में डूबने से मौत हो गई थी। प्रधानमंत्री जी , मंत्रियों के साथ सेल्फ़ी लेने से तो अब पत्रकार भी पीछे नहीं।।  अरे साहब हक़ बनता है एक ठो सेल्फ़ी लेने का, और फिर उपभोक्तावाद में अब तो सेल्फ़ी स्टिक भी बिकने लगी है ।
निदा  फ़ाज़ली के शब्दों में..
जैसी होनी चाहिए थी वैसी तो दुनिया नहीं 
दुनिया - दारी भी ज़रूरत है चलो यूँ ही सही.. 
सब ग्लैमर है भाई.. ।  हमारे ब्लोगर मित्र अविनाश वाचस्पति ज़िंदगी से लड़ते लड़ते चले गए । अच्छे  इंसान थे , नवोदितों को प्रोत्साहित करने की पहचान थे  । जब बिमारी से जूझते हुए आर्थिक तंगी में उन्होंने फेसबुक पर सबसे आर्थिक सहायता की अपील की, कुछेक को तो  इनबॉक्स में निजी मेसेज डाले, आज उन्हें अपना निकटवर्ती कहने वालों की संवेदनाओ से फेस दीवारें पटी पड़ी है. हम भी सिर्फ उनकी आत्मा शांति की प्रार्थना कर सकते हैं ।

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