बस मीठा मीठा बोलो

                                           


शीर्षक से याद आया की टीना मुनीम और देव आनंद अभिनीत फिल्म ‘मनपसंद’ सन 1980 में प्रदर्शित हुई थी। इसमें मोहम्मद रफ़ी द्वारा गाया, राजेश रोशन के संगीत से सजा एक गीत था ...

लोगो का दिल अगर हा जितना तुमको है तो बस मीठा मीठा बोलो
लोगो का दिल अगर हा जितना तुमको है तो बस मीठा मीठा बोलो

चले है जैसे कहीं शीशे पे आरी
कानो को लगे है आवाज़ तुम्हारी
चले है जैसे कहीं शीशे पे आरी
कानो को लगे है आवाज़ तुम्हारी
कहना है कुछ अगर तो बोलो में मिशरी घोलो
बस मीठा मीठा बोलो

साज़ छुपा है जब सीना-ए-दिल में
गीत तुम्हारे है तो फिर मुश्किल में
साज़ छुपा है जब ई-ए-दिल में
गीत तुम्हारे है तो फिर मुश्किल में
सब से तुम्हे अगर हा आगे बढ़ना है तो
बस मीठा मीठा बोलो

सौ मे से एक है बात पते की दिन हो सुरीला तो रात मज़े की
सौ मे से एक है बात पते की दिन हो सुरीला तो रात मज़े की
अपना यह माल अगर हाँ बेचना तुम को है तो
बस मीठा मीठा बोलो
लोगों का दिल अगर हा जितना तुमको है तो बस मीठा मीठा बोलो..



गीत भले ही वर्ष १९८० में लिखा गया हो लेकिन ज्ञान आज भी बाँट रहा है . यह अलग बात है की कुछ लोग सीधी बात में विश्वास  करते हैं और अपना परोक्ष - अपरोक्ष नुकसान कर जाते हैं. वही कुछ इस मीठा बोलने के नियम को अपना कर ज़हरीला वार भी कर जाते हैं. विगत ०८ नवम्बर को प्रधानमंत्री मोदी जी ने एक ही वार में सभी को अचंभित कर दिया. देश का समझदार - मासूम यां अनभिज्ञ बना तबका दिल से तो इस अभूतपूर्व ऐतिहासिक निर्णय पर गालियाँ दे रहा होगा, लेकिन बाहर तो उसे भी मज़बूरी कहो यां समर्पण.. बस मीठा मीठा बोलो.. अब यही देखो बाबा रामदेव ने लोकसभा चुनाव से पहले देश में घूम घूम कर पांच सौ - एक हज़ार के नोट बंद करने की बात की थी. रामदेव बाबा दूरदर्शी निकले और बस मीठा मीठा बोलो का सूत्र अपनाते हुए पतंज़ली की कायापलट करने का काम करते रहे, सफलता उनके कदम चूम रही है. जिन दादी-नानी के घरेलु नुस्खों को एक समय में नीम हाकिम खतरे जान माना जाने लगा था, आज उनमे से कुछ हम बदलते दौर के साथ अपनाने लगे हैं . दिल्ली में विगत माह में फैले चिकुनगुनिया, डेंगू के लिए उपचार के साथ पतंज़ली के गिलोय वटी उत्पाद की बेहद मांग बढ़ी. कुछ स्टोर्स पर यह प्रोडक्ट आउट ऑफ़ स्टोक तक हो गया था. मुझे याद है की बचपन में गाँव-कस्बों में बुखार होने पर गिलोय बेल की छाल चबाने के लिए कह दिया जाता था. यह अलग बात है की उस समय की यह असभ्य हरकते आज मजबूरीवश सभ्य समाज का अंग बन रही हैं. कारण साफ़ व स्पष्ट है बस मीठा मीठा बोलो .. अपने फायदे के दरवाज़े खोलो.. अरे भाई देखा नहीं आपने फिल्म मनपसंद की हिरोइन टीना मुनीम भी तो मीठा मीठा बोलो को अपनाकर अपनी कडवी दातुन बेच रही है. 

सोशल मीडिया का वात्सप, फेसबुक टूल्स अब ज्ञान का असीम भण्डार होते जा रहा है. सभी ज्ञान परोसू  टाइप के लोग सुबह से ही अपने कार्य संचार में व्यस्त हो जाते हैं.. ऐसा ही एक ज्ञान आया की..
मीठा बोलने वाला कभी हितेषी नहीं होता नमक की तरह कड़वा ज्ञान देने वाला ही सच्चा मित्र होता है। इतिहास गवाह है की आज दिन तक कभी नमक में कीड़े नहीं पड़े और मिठाई में कीड़े के साथ बीमारी भी होती है..!
सोचने में कोई बुराई नहीं है की मीठे में व मीठे से कीड़े लगने की बिमारी हो सकती है. रविश कुमार भी ऐसा ही कुछ मीठा बोल कर लोगों को अपना करने का काम कर रहे हैं, यह अलग बात है की वह सिर्फ अपने व अपने मालिकों के हित में मीठा बोलते हैं , मजीठिया के लिए लड़ रहे पत्रकारों के शोषण को लेकर उनकी मिठास ख़त्म हो जाती है. अपनी अपनी मज़बूरी है. सोशल ज्ञान के अन्दर पढ़ा था की “ वाणी में इतनी शक्ति होती है कि कड़वा बोलने वाले का शहद भी नहीं बिकता और मीठा बोलने वाले की मिर्ची भी बिक जाती है। ” लेकिन मीठा बोलने का तात्पर्य बदल चुके हैं , जिन्हें समझना होगा. लोगो का दिल अगर हा जितना तुमको है तो बस मीठा मीठा बोलो वाली पंक्ति के बीच छिपे अर्थ को भी समझना होगा. यह अर्थ भी "अर्थ " के हिसाब से बनते बिगड़ते रहते हैं. आप जब तक किसी के साथ भी "अर्थपूर्ण " रिश्ते रखते हैं, तबतक आप नमक की तरह कडवा ज्ञान देने वाले होने के बावजूद आप अच्छे होते हैं. संत तुलसीदास जी की चौपाई का सार समझना होगा तुलसी मीठे वचन तै, सुख उपजत चहुं ओर। वशीकरण के मंत्र हैं, तज दे वचन कठोर।इस के भावार्थ में कठोर वचन त्यजने को वशीकरण के मन्त्र नहीं कहा जा रहा बल्कि आज के परिवेश में सीधा सीधा अर्थ वशीकरण ही हो गया है..  खैर हम गहरे तक नहीं जाते सिर्फ अर्थ -अनर्थ से परे एक ही बात कहते हैं ..सौ मे से एक है बात पते की दिन हो सुरीला तो रात मज़े की, सब से तुम्हे अगर हा आगे बढ़ना है तो, बस मीठा मीठा बोलो..
               ...दातुन..काले दातुन..दस दस पैएसे ले लो...
                                ऐ बाबू !  ले लेना बाबू..


  
                                                                                  विशाल चड्ढा 



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