हम बाशिंदे है, रिफ्यूजी भी..



मेरी तकदीर की लकीरें पैरों में हैं
चलते चलते अब घिसने लगी
तुम नाहक ही हथेलिया देखते हो
यहाँ की धुंधली लकीरें तो मिट चुकीं
इन लकीरों का ही गर सोचा होता
ना पाता मुकम्मल जहाँ में खड़ा
चल डालेंगे डेरा कहीं और अभी
हम बाशिंदे है, रिफ्यूजी भी..
         - ( पुरानी कलम से ) 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जगजीत , आशा और लता जी.. वाह क्या बात है

श्री इच्छादेवी माता का मंदिर एक तीर्थक्षेत्र

गणितज्ञ भास्कराचार्य जयती पर विशेष