प्रभू श्रीराम के चरणों से पावन हुयी भूमि
आस्था का सुहाना
संगम...प्रभु राम
और
विज्ञान का
द्वन्द ..
चोपडा तहसील के अंतर्गत आनेवाले एक प्राकृतिक श्रीक्षेत्र उनपदेव को पौराणिक कथाओं के आधार पर प्रभू श्रीराम के चरणों से पावन हुयी भूमि के रुप में प्रसिध्द इस क्षेत्र को रामायण काल के शरभंग ऋषि की तपोभूमि भी माना जाता है। उनपदेव के बारे में एक विशेषता है कि, यहां के जलकुंड में गो मुख से प्राचीन काल से गरम पानी निर्झर बह रहा है। इस गरम पानी के अद्भुत मान्यता के साथ महाराष्ट्र ही नही दूर-दूर के लोग भी श्रीक्षेत्र उनपदेव में पर्यटन के साथ-साथ आस्था लिये आते है। गरम पानी के उद्गम से भरा यह क्षेत्र सातपुडा पर्वत श्रेणियों के आंचल में समाया हुआ है। अब तक वैज्ञानिक से लेकर शास्त्रीय आधार पर भी श्रीक्षेत्र उनपदेव के इस गर्म पानी के श्रोत को जानने का प्रयास किया जा चुका है। किंतु प्रकृति के इस चमत्कार को दूर-दूरतक लोग आस्था से जुडा मानते है। पौराणिक आधार पर श्रीक्षेत्र उनपदेव में पौष माह में पारम्परिक यात्रा महोत्सव प्रारंभ होता है। जिसमें महाराष्ट्र के अलावा मध्यप्रदेश, गुजरात यहां तक की राजस्थान आदि राज्यों से श्रध्दालु दर्शन के लिए आते है। यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि, १४ वर्ष के वनवास पर प्रभू श्रीराम वन भ्रमण करते हुए सातपुडा पर्वत श्रेणियों में महर्षि शरभंग ऋषि के आश्रम में आये थे। तब महर्षि द्वारा उनका पूरा सम्मान किये जाने के बाद अपनी कुटियां में रात बिताने के लिए रुका या। रात के समय महर्षि के आश्रम में बडी-बडी घास के बीच कुछ हिलता हुआ सा दिखायी देने पर लक्ष्मण ने महर्षि से जानना चाहा तो महर्षि ने बात टाल दी। ऐसे में सीताजी ने जिज्ञासा दिखाते हुए सच्चायी जानने की कोशिश की तो, महर्षि ने घास उठाकर एक कुष्ठ रोगी को सामने खडा कर दिया। तब प्रभू श्रीराम ने उस कुष्ठ रोगी से उसके छिपे होने का का रण पूछा । इस बात पर महर्षि शरभंग ऋषि ने बताया कि, कुष्ठ रोगी अपने रोग से मुक्ति चाहता है। इस कुष्ठ रोगी को एवं महर्षि को आशिर्वाद व वचन देकर प्रभू श्रीराम वहां से चले गये। पौराणिक कथाओं के आधार पर जब प्रभू श्रीराम पंचवटी में बैठे हुए थे तब उन्हे सहसा ही महर्षि शरभंग का स्मरण आया। और उन्हे दिये हुए वचन को याद करते ही प्रभू श्रीराम ने एक मंत्रबध्द तीर को सातपुडा पर्वत श्रेणियों के इस भाग में छोडा। जिस स्थान पर यह तीर गिरा वहां से गोमुख के रुप में आज भी गरम पानी का झरना बह रहा है। इस बहते हुए गरम पानी के झरने में महर्षि शरभंग द्वारा जब उस कुष्ठ रोगी को स्नान कराया गया तो उसका रोग पल में गायब हो गया। तब से इस स्थान को उनपदेव के रुप में पहचानते हुए आज भी इस जल में स्नान करनेवाले के त्वचा रोग ठीक होने का दावा किया जाता है । सतत १२ महिने तक बहनेवाले गरम पानी के इस झरने के पौराणिक महत्व को इस पारम्परिक यात्रा के रुप में १ माह तक प्रस्तुत किया जाता है। जिसके लिए चोपडा बस स्थान से अतिरिक्त बसे भी चलायी जाती है। वैसे तो श्रीक्षेत्र उनपदेव ·के महत्व ·को देखते हुए प्रति रविवार चोपडा व अडावद से अतिरिक्त बस सेवा प्रदान की गयी है । पौराणिक कथाओं के महत्व के बीच वैज्ञानिकों का कहना है कि, श्रीक्षेत्र उनपदेव के तल में गंधक का भंडार होने के कारण यहां पर बारह महिने गरम पानी बहता रहता है। किंतु संस्कृति में विज्ञान भी आस्था के आगे घुटने टेक देता है।
जलगाँव जिले की
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें