आदिवासियों का लोकप्रिय होली त्यौहार भोंग-या प्रारंभ





खान्देश के आदिवासी बहुल इलाकों में स्थानीय लोकप्रिय होली त्यौहार के भोंग-या स्वरुप का  गुरुवार १ मार्च से शुभारंभ हुआ खान्देश व सीमा से लगे अन्य राज्यों की आदिवासी संस्कृति में होली के इस भोंग-या स्वरुप को विशेष महत्व दिया जाता है। जिसके लिए वर्ष भर अपने क्रिया कलापों में लिप्त आदिवासी समाज बडी ही प्रतिक्षा के साथ इस दिन का इंतजार करते है। आम तौर पर होली से लगभग ८ दिन पहले से आदिवासी समाज द्वारा भोंग-या त्यौहार की परंपरा प्रारंभ हो जाती है। जबकी होली के लगभग एक माह पूर्व से आदिवासी व पावरा समाज द्वारा तांडा गांव में होली के पूर्व आगमन का स्वागत करते हुए विधीपूर्वक तैयारिंया की जाती है। इस भोंग-या त्यौहार के अंतर्गत आदिवासी समाज के युवा-युवतियों द्वारा विभिन्न प्रकार के रंगबिरंगे, तोता-मैना, शेर आदि अन्य प्रकार के मनोरंजक वेष धारण करते हुए आनंदपूर्वक एक साथ उपस्थित होकर यह त्यौहार मनाया जाता है। ऐसे में रंगो आदि के प्रयोग से परे इन आदिवासी समाज द्वारा प्रेम, उमंग, आपसी सौहार्द आदि के रंगो भरा स्नेह एक दूसरे पर उडेला जाता है। होली से लगातार ५ दिन तक आदिवासी संस्कृति के अनेको रंग जलगांव जिले की सातपुडा पर्वत श्रेणियों से जुडे आदिवासी भागों सहित खान्देश के नंदुरबार, धुलिया जिलों में देखने को मिलते है। विभिन्न परम्पराओं में आदिवासी समाज द्वारा डंडी गाडने की परम्परा के रुप में गोबर के कंडो की पांच तह रचते हुए उसमें नारियल फोडकर उसे जलाते हुए उसकी पूजा करने की यह परम्परा भोंग-या के स्वरुप में खुशी का पैगाम लेकर आती है। आधुनिकता की चकाचौंध एवं खर्चिले वातावरण में अपनी आय के अतिरिक्त साधन ना होने के चलते अब आदिवासी समाज द्वारा विभिन्न स्वॉंग रचते हुए ढोल मंजीरों की थाप पर नृत्य कर शहरी भाग का मनोरंजन करते हुए कुछ आर्थिक सहायता इकठ्ठी की जाती है। जिसके माध्यम से इस समाज द्वारा अपने क्षेत्रों में जाकर होली के भोंग-या स्वरुप को मनाया जाता है। ऐसे में इस समाज के पुरुष वर्ग द्वारा अजीब से परिधान, गले में मालाओं के नाम पर कुछ भी लटकाकर, बिंदी, लाली आदि का प्रयोग करते हुए नितांत प्रसन्नता भरे वातावरण में अपनी खुशी प्रस्तुत करते है। ऐसे में रिश्ते नातों की परम्पराओं को एक किनारे रखते हुए पिता-पुत्र, बहन-भाई, दामाद-भाभी सभी आपस में गुलाल आदि लगाकर होली मनाते है। इस मामले में खास बात यह है कि, आदिवासी समाज के युवक युवतियों को अपने लाल होंठ प्रस्तुत करने का शौक होने के चलते बडे पैमाने पर पान की खपत भी होती है। इन सब के बीच आगामी ८ मार्च को होली के दिन इस समाज द्वारा अपने अपने क्षेत्रों में एक बडा बांस परिसर के बीचोबीच गाडकर उसके चारों ओर नृत्य आदि कर के हार-कंगन व यथासंभव उपहार एक दूसरे को देते हुए इस होली परम्परा का निर्वाह किया जाता है। जिसकी तैयारियों के लिए महिला व पुरुषों द्वारा चांदी के आभूषणों को पहनते हुए आदिवासी भाषा में घागरा के रुप में पेहराव, दुपट्टे के रुप में ओढणी, हांथ व पैर में चांदी के कडे वाहवा व पेवा के रुप में, गले में चेन के रुप में शिबरा, चांदी की पतली चेन के रुप में टाबली, कमरबंद के रुप में करडोडा, पायलों के रुप में वाकला व तोला, आदि आभूषणों के साथ सज्ज होते हुए यह त्यौहार खुशी व उल्हास के साथ मनाया जाता है। 
 

सातपुडा पर्वत श्रेणियों से जुडे आदिवासी इलाकों में १ मार्च से भोंग-या की धूम दिखना प्रारंभ हुई जलगांव जिले में याव, रावेर एवं चोपडा तहसील का अधिकांश भाग आदिवासी जातियों से समाविष्ट है। जिसके चलते इन आदिवासी मिश्रीत इलाकों में भोंग-या की तैय्यारियां प्रारंभ हो चुकी है। आदिवासी समाज के युवा शहरी इलाकों में स्वांग रचकर इस पारंपारिक होली के खर्चों हेतू लोगों का मनोरंजन करते हुए चंदा इकठ्ठा करना प्रारंभ करेंगे। खान्देश के आदिवासी समाज की इस पारंपारिक होली को लेकर अध्ययन कर रहे, कला क्षेत्र से जुडे लोग, सांस्कृतिक क्षेत्र व पत्रकारिता, सामाजिक कार्यों में अध्ययन रत समुह, खान्देश के भोंग-या को करीब से देखने व जानने के लिए लोगों का इन इलाकों में आगमन प्रारंभ हो गया।

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