गणेशजी की अप्रतिम मूर्तियां


जलगांव की संगीता घोडगांवकर के पास है गणेशजी की अप्रतिम मूर्तियां,
एक हजार से अधिक गणेश मूर्तिओं के संग्रह को देखने आते है विदेशी सैलानी





 देश भर में गणोशोत्सव की धूम के बीच गणेश भक्तों को विभिन्न पंडालों में तरह तरह की भव्य मूर्तियां सहज ही आकर्षित कर देती है। ऐसे में पंडालों के बीच विभिन्न मुद्राओं में बैठे गणपति अनायास ही लोगों के बीच चर्चा का विषय बन जाते है ।

        किन्तू इन सब के बीच जलगांव की संगीता घोडगांवकर के पास के गणेश मूर्तिओं के संग्रह को देख कर उनके इस श्रद्धांवत शौक को कोई भी सराहे बिना नही रह सकता । जलगांव की विभिन्न सामाजिक संस्थाओं में कार्य कर चुकी अब गृहणी के रूप में अपना घरबार सम्भालने वाली संगीताजी के गणेश मूर्तिओं के संकलन के इस शौक ने उनके पास विभिन्न मुद्राओं एवं दुर्लभ मुद्राओं वाली गणेश मूर्तिओं का एक अच्छा खासा संकलन तैयार कर दिया है । प्रारंभ में संगीता घोडगांवकर की गणेशजी के प्रति अगाध श्रद्धा के बारे में कौन जानता था कि, उनकी यह श्रद्धा आगे चल कर गणेशजी की आकर्षक लुभावनी मूर्तिओं के संगलन के रूप में उन्हें महाराष्ट्र ही नही बल्कि विदेशों तक पहचान दिलायेगा ।

  इस बारे में संगीताजी का कहना है कि, वर्ष १९९१ में शादी के समय उनकी माताजी ने विदाई के उपहार के रूप में धातू के गणेशजी की प्रतिमा दी थी । जिसे उन्होंने सहेज कर रखा । तब तक संगीताजी को भी नही पता था कि, माताजी व्दारा दी गई गणेश प्रतिमा उनके लिए श्रद्धा ही नही बल्कि समर्पण का केन्द्र बन जायेगी । उस घटनाक्रम के बाद ज्यो-ज्यो वक्त बीतता गया संगीताजी देश, विदेश या कहीं भी जाती थी तो वहा पर गणेशजी की मूर्ति को खोज कर खरीद लेती थी ।


   साधारण रूप में इस कार्य को करते करते जब वर्ष २००० में संगीताजी ने अपने गणेश मूर्ति संकलन की ओर नजर डाली तो उन्होंने पाया कि, उनके पास दुर्लभ से लगभग १०० गणपति विभिन्न मुद्राओं में मौजूद है । इस बात ने संगीताजी उनके पति अवधुत घोडगांवकर को प्रफुल्लित सा कर दिया । और संगीता घोडगांवकर अपने संकलन की नई ऊचाई की ओर बढने लग गई । संगीताजी बताती है कि, विशेषत: वर्ष २००० के बाद से ही उन्होंने गणेश प्रतिमाओं के संकलन के लिए प्रयास प्रारंभ किये । इसके लिए जब उनके पति श्री अवधुत घोडगांवकर ने अपना बंगला बनाया तो संगीताजी ने सब से पहले गणेशजी को केन्द्रीत करते हुए एक म्युजिएम जैसा कमरा खास तौर पर गणेशजी की प्रतिमाओं के लिए बनवाया । 

 संगीताजी का कहना है कि, इसके लिए उनके पति ने खास तौर से वास्तूविशेषज्ञ की सलाह पर इस तरह से कमरे का निर्माण करवाया कि, बंगले के भीतरी भाग में होने के बावजूद इस कमरे में सुबह की ताजी धूप सीधे ही प्रवेश करती है। घोडगांवकर दम्पत्तिका कहना है कि, प्रारंभिक किरणों के प्रकाश से कमरे में रखी गणेश मूर्तिओं से तेजपुंज सा प्राप्त होता है ।

  संगीता घोडागांवकर ने अपने इस संकलन में महाबलीपुरम, नई दिल्ली, अहमदाबाद, चेन्नई,केरल, नेपाल, चीन, थाईलैन्ड, मलेशिया, कानपुर, नैनिताल, जयपुर, गोवा, कर्नाटक आदि जगहों से गणेशजी की विभिन्न धातूओं, विभिन्न पदार्थो मसलन टेराकोटा, वैक्स, मार्बल,  फाईबर, कपडा आदि से बनी मूर्तिओं का संकलन इकठ्ठा किया है । इसके अलावा संगीता घोडगांवकर के संकलन में बहुमूल्य पत्थरों में से पन्ना, नीलम, मुंगा, चंदन, पंचधातू, क्रिस्टल आदि की मूर्तियां भी मौजूद है । संगीता घोडगांवकर व्दारा बताया गया कि, जब वर्ष २००४ में उनके पास लगभग ७०० मूर्तियों का संकलन हो गया तब, इन मूर्तिओं को खरीदने के लिए जिन दुकानदारों से सम्पर्क किया गया था, उनके माध्यम से इस बात का प्रसार देश के विभिन्न स्थानों पर होने लगा ।


 जिसके चलते जलगांव में आने वाले कुछ विदेशी सैलानीओं यां स्थानीय स्तर पर मिलने आये विदेशी लोगों को इस गणेश मूर्ति संग्रहालय को देखने की इच्छा जागृत हुई । संगीताजी के घर में अब तक इजराईल, जर्मनी, अमेरिका आदि जगहों से लोग आ कर इस संग्रहालय की सराहना कर चुके है। इनमें से जर्मनी से आये युवकों ने तो भारत में आ कर इस संग्रह को देख कर गणेशजी के प्रति अंतरिक भावना से समर्पण की बात तक कही । संगीता घोडगांवकर के इस गणेश मूर्ति संग्रहालय में महेन्द्रसिंह धोनी की तरह विकेट कीपिंग करते हुए गणेशजी को देखा जा सकता है। तो वही विश्वनाथ आनंद की तरह शतरजं खेलने में  मग्न गणेशजी किसी का भी मन मोह लेते है । इस संग्रह में एक सूर्यनमस्कार की सभी बारह मुद्राओं को प्रस्तुत करते हुए गणेशजी की मूर्तियां  योग एवं व्यायाम के समन्वय को प्रस्तुत करती है ।


 इन मूर्तिओं के संग्रह में ग्रंथ पढते, लोकमान्य तिलक बने हुए, सरदारजी के रूप में भांगडा करते हुए, सावन के मौके पर झूला झूलते हुए, दांडिया रास खेलते हुए, आराम कुर्सी पर बैठ कर पठन करते हुए, विभिन्न वाद्ययंत्रों को बजाते हुए, शिवपार्वती के साथ, आदिवासी वेशभूषा में, जापानी स्वरूप के लाफिंग बुद्धा के रूप में, नारियल पर नक्काशी कर बनाए गये गणेश के रूप में, फुटबाल पर आरा फरमा रहे खिलाडी गणपति आदि के अलावा अकल्पनीय मुद्राओं में गणेश प्रतिमाओं के रूप में विराजमान है । आज गणेशोत्सव के अवसर पर संगीताजी के घर में इन मूर्तिओं को देखने वालों का तांता सा लगा है । 



इस बात पर घोडगांवकर परिवार बेहद प्रसन्न नजर आ रहा है कि, अनायास प्रारंभ हुई एक प्रथा आज ख्याती का केन्द्र बन गई है। संगीता घोडगांवकर ने बताया कि, अब उनके इस संकलन कार्य में उनके पति अवधुत घोडगांवकर तो पूरी तरह से समलित हो चुके है। वे देश-विदेश में कही भी जाते है तो उन्हें अनोखे गणेशजी की मूर्ति की खोज रहती है । इतना ही नही संगीताजी की दोनों बेटियां समृद्धी व सिद्धी भी उन्हें इस संकलन के लिए प्रोत्साहित करती रहती है । संगीता का मानना है कि, उनका नासिक में रहने वाला भांजा अजिंक्य व पति अवधुत के प्रोत्साहन के चलते ही वह इस मुकाम पर पहुंची  है ।

  संगीताजी के इस संकलन में अभी बहुमूल्य हीरे व पूर्ण रूप से सोने से बनी गणेशजी की मूर्ति का अभाव उन्हें खल रहा है । उनका कहना है कि, गणेशजी ने जब इतनी कृपा दिखाते हुए १ हजार से अधिक संख्या को स्थापित किया है तो, शीघ्र ही गणेशजी व्दारा यह कमी भी पूरी की जायेगी । संगीता ने बताया कि, अब तो मुंबई, जयपुर, दिल्ली आदि जगहों के विशेष मूर्तियां बनाने वाले यां बेचने वाले दुकानदार खुद फोन करके यूनिक गणेशजी के बारे में जानकारी दे देते है । 

मूलत: नासिक की रहने वाली संगीता घोडगांवकर पर्यावरण में परास्नातक की डिग्री रखती है । जिसके चलते वह गणेशोत्सव में अपने घर व अपने रिश्तेदारों, करीबिओं आदि को ईकोफे्रन्डली गणेश स्थापना के लिए प्रेरित करती है । गणेशजी के प्रति भावुक होते हुए संगीता घोडगांवकर ने बताया कि, उन्हें गणेश विर्सजन बिल्कुल पसंद नही है । अपने एक अन्य अनुभव के बारे में बताया कि,  सिप्पीओं व शंख आदि से बने एक बहुतही नाजुक से गणेशजी को वह केरल से जलगांव तक हाथ में रख कर लाई थी । अपने इस संग्रहालय में एक मुखी से लेकर पंचमुखी तक की गणेश प्रतिमांओं ने संगीता घोडगांवकर बताती है कि, उनके पास एक ऐसी गणेश प्रतिमा है जिसने हाथ में बच्चे के रूप में छोटे गणेश को उठा रखा है ।

  संगीताजी उस प्रतिमा में ममता एवं स्नेह देखती है । और यही मूर्ति उन्हें अपने पूरे संग्रहालय में सबसे ज्यादा प्रिय है । संगीताजी का गणेश प्रेम उन्हें उदासी एवं तनाव भरे समय में अपने पास खीच लाता है । उनका कहना है कि, जब वह थोडा बहुत भी परेशान या उदास होती है तो, वह इस संग्रहालय वाले कमरे में आ कर बैठ जाती है । जहां उन्हें ना जाने क्यों एक अद्रुश्य सी ताकत व सम्बल देती है ।


          

                                         












































































































                                                       -विशाल चड्डा

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