पानी निकालने वाली मोटर साइकिल बनाने वाले विकास शिंदे


खेती के औजार से लेकर जमीन से पानी निकालने वाली मोटर साइकिल बनाने वाले विकास शिंदे को मिला राष्ट्रीय पुरस्कार,
 राष्ट्रपति ने सराहा विकास के काम को


जलगांव !   हाल ही में दिल्ली में संपन्न हुये राष्ट्रीय शोध प्रतिष्ठान के छठवे राष्ट्रीय संशोधन स्पर्धा में अमलनेर तहसील के पिंगलवाडा में रहनेवाले विकास शिंदे को उनके प्रयोगात्मक कार्यों व शोधात्मक प्रस्तुति के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार के रुप में ५० हजार रुपये नगद व सम्मानचिन्ह के साथ नवाजा गया। पिंगलवाडा के विकास चैतराम शिंदे को प्रसिध्द वैज्ञानिक रघुनाथ माशेलकर के हांथो सम्मानित किया गया। इस अवसर पर एनआइएफ के प्रोफेसर अनिल गुप्ता व अन्य मौजूद थे। राष्ट्रपति भवन प्रांगण में संपन्न हुये इस कार्यक्रम में देशभर से नव शोध प्रवर्तक अपनी संकल्पनाओं एवं शोधों के साथ उपस्थित हुये थे। कार्यक्रम में राष्ट्रपति महामहिम प्रतिभा देविसिंह पाटिल ने विकास शिंदे के उपकरणों खास तौर से ड्रिल मशिन को देखते हुए विकास शिंदे के कार्यों की सराहना की।



 विदित हो कि, महाराष्ट्र के जलगांव, नंदुरबार, धुलिया जिलों से तैयार खान्देश को अब तक कलाकारों, कृषि, कपास, केला, गन्ना, साहित्य, कवि आदि की धरती के रूप में पहचाना जाता था, किन्तू किसी ने भी खान्देश की सृजनशीलता उधमशलता एवं कल्पना को समझकर इन प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने या इन प्रतिभाओं व्दारा आविष्कारीत वस्तुओं को और अन्य आयाम प्रदान कर व्यवसायिकता एवं ख्याति प्रदान करवाने का जिम्मा नहीं लिया है। 

ऐसे कलाकारों, अनपढ या कम पढेलिखे बुद्धि के हानी व प्रयोग करने वालों को अहमदाबाद के हनी बी नेटवर्क, सृष्टि संस्था ज्ञान, आदि के पारखी दृष्टिकोण से राष्ट्रीय स्तर पर अपने आविष्कारों को पहुॅंचाने एवं इसे व्यवसायिक स्तर दिलाने की क कोशिश की गई है । जलगांव जिले की एक एैसी ही आसाधरण सी प्रतिभा विकास चैत्रराम शिंदे के  सामने लाने का काम अहमदाबाद की सृष्टि संस्था, हनी बी नेटवर्क, ज्ञान, राष्ट्रीय नवप्रर्वतक संस्थान आदि के प्रमुख प्रोफेसर अनिल गुप्ता एवं ज्ञान संस्था के महेश पटेल के मार्गदर्शन में जलगांव की विश्व सेवा फाउन्डेशन के प्रविण पाटिल व उनकी बहन अनिता महाजन ने ढूंढ निकाला । विकास  शिंदे नौ वी पास ग्रामीण नवयुवक अपने गरीब परिवार के साथ थोडी सी खेती के साथ अमलनेर के श्री क्षेत्र पिंगलवाडे में गुजर बसर कर रहा था । बकरी का शौक होने के कारण एक बकरी विकास शिंदे की बडी पूंजी थी । खेती से गुजर बसर न हो पाने के चलते विकास शिंदे ने दस साल पहले बकरी बेचकर एक वैल्डिंग मशीन खरीदी और यहॉं से विकास शिंदे की अविष्कारिक सोच के सूर्य का उदय हुआ । 

वैल्डिंग मशीन हाथ में आते ही विकास शिंदे ने पुराने लोहे के बाजार से अपनी कल्पना शक्ति के आधार पर कुछ साईकिल के पुराने कलपुर्जे, गरारी, एक्सल आदि खरीद कर अपनी कल्पना को मूर्त रूप देना शुरू किया  और खेल खेल में अपनी सृजनशीलता से एक साईकिल के पैडल व साईकिल यंत्रणा प्रणाली से चलने वाली एक ड्रिल मशील का निर्माण किया । विद्युत के बिना कम ताकत में लोहे में ड्रिल करने वाली यह मशीन को आकर्षक रूप, थोडे से बदलाव आदि को यदि बाजार क्षेत्र में उतारा गया तो ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह के कार्यो में ड्रिल की समस्या से छुटकारा मिल जायेगा । पिंगलवाडे जैसे छोटे व मुख्य धारा से दूर गांव में रहनेवाले विकास शिंदे ने अपनी इस आविष्कारिक सोच को आगे बढाते हुए कृषि कामों मे नई तकनीक प्रस्तुत करने का निश्चय किया । कपास की बुवाई के लिए तीन तीन फुट की दूरी पर क्यारी बनाई जाती है । इस समस्या को देखते हुए क्यारी बनाने की प्रक्रिया को सरल व कम खर्चीला बनाने हेतू विकास शिंदे ने एक ऐसा यंत्र विकसित किया जिसे अपनी कमर पर बांधकर यां बैल आदि के पीछे बांधकर खीचने से दो क्यारिओं की जगह एक साथ तैयार हो जाती है । इन सब से हटकर विकास शिंदे ने खेती कामों के लिए एक मोटर साईकिल तैयार की है । पुराने कबाड से किसी का इंजन, किसी का पहिया, जोड तोड कर विकास शिंदे ने एक एैसी मोटर साईकिल तैयार की जिसे बुवाई, गुढाई, खरपतवार स्वच्छता आदि के कार्य किये जा सकते है । तीन गियर वाली इस गाडी में हैवी काम के लिए ही पहला गियर प्रयोग किया जाता है । इन आविष्कारों से अपने काम में परिवक्तता लाते हुए विकास शिंदे ने एक और कृषि यंत्र बनाते हुए इस मोटर साईकिल से जोडकर छोटे किसानो की पानी की समस्या को खत्म करने का तरीका खोज निकाला । विकास शिंदे ने जमीन से छै इंच के पाईप से एक बार में पचास लिटर पानी निकालने की तकनीक विकसीत की है । 

इस यंत्र प्रणाली का वजन तीस किलों बताया जाता है । इस प्रकार से मोटर साईकिल के पिछले पहिये से खीचने वाला यह यंत्र कुल अस्सी किलो वजन के साथ कार्य करता है । देसी तकनीक का इस्तेमाल एक बडे यंत्र के स्वरूप को निर्माण देने में कामयाब हो गया । जलगांव जिले के अमलनेर तहसील के छोटे से गांव श्री क्षेत्र पिंग्लवाडे में विकास शिंदे व्दारा यह आविष्कार सचमुच एक सोचनीय विषय है । इन आविष्कारों में छोटी-छोटी तकनीक विकास की गहरी सोच और सृजनशीलता का पैमाना बताती है। हालांकि, विकास शिंदे के खेत में अब विद्युत आपूर्ती हो चुकी है, और उसने यह मोटरसाईकिल प्रयोग करना बंद कर दिया है। किंतु विकास शिंदे के इस प्रयोग से ग्रामीणक्षेत्रों में उपयोग लिया जा सकता है। अपनी ड्रिल मशिन के बारे में बताते हुए विकास द्वारा जानकारी दी गयी कि, ड्रिल मशीन में लगने वाले ड्रिल के उपरी भाग पर साईकिल एक्सल का कोन वैल्डिंग किया है । जो ड्रिल के मत्थे में लगे एक्सल पर जाकर फिट होता है । ऐसे में बिना लैथ मशीन, संतुलन के एवं ग्रामीण स्तर की वैल्डिंग से कोन में वैल्डिंग किया गया ड्रिल का बिट चलने में आडा तिरढ्ढा डग मारता सा दिखेगा । जब प्रयोगात्मक दृष्टि से यह समस्या विकास के सामने आई तो उन्होंने इस विषय पर सोचते हुए कोन और एक्सल के बीच एक १/४ साईज का साईकिल छर्रा डाल दिया और इस छर्रें के कारण अब ड्रिल करते समय बिट एकदम सीधा संतुलित चलता है । इन सब बातों से पता चलता है कि दूर सुदूर क्षेत्रों में प्रतिभाओं की कमी नही है । सिर्फ कमी है तो इन लोगों को एक मंच उपलब्ध कराने की और इनके कार्यों  को जन जन तक पहुंचा  कर इन्हे संबल बनाने की । इस सारे मुद्दे पर अहमदाबाद के हनी बी नेटवर्क के प्रोफेसर श्री अनिल गुप्ता ने विकास शिंदे के कार्य के बारे में बताया कि, सृष्टि संस्था, ज्ञान, हनी बी नेटवर्क राष्ट्रीय नवप्रवर्तक आदि के माध्यम से विकास शिंदे को पूरी सहायता दी जायेगी । 

 
उनके इन सब आविष्कारों को एक स्थान, व्यवसायिकता आदि प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाया  जायेगा । प्रोफेसर अनिल गुप्ता ने बताया कि विकास का यह आविष्कार कम भूमि वाले किसानों के लिए एक वरदान साबित हो सकता है । यदि युक्ति लडाई जाये तो गांव की कोई भी मोटर साईकिल रात को पानी सिंचन के इस यंत्र को चलाने के लिए किराये पर ली जा सकती है । आज विकास शिंदे ने अपनी गरीबी से उबरते हुए खेती में नये-नये प्रयोगों के साथ वह कपास की खेती के साथ बीच-बीच में ज्वार की फसल बो कर लाभ ले रहे है । सवा बीघा की जमीन रखनेवाले विकास शिंदे के पास अब आठ बीघा से अधिक जमीन है । और आज भी वह अपने बकरी पालने के शौक को नही भूला । किन्तू आज दो दर्जन बकरियों के समूह के मालिक विकास को अपना बकरी पालन, बकरी के  प्रति के कर्ज को चुकाना सा लगता है।


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