खान्देश में रंगोली की चलती फिरती पाठशाला .. कुमुदिनी नारखेडे


खान्देश की प्रसिध्द रंगोली प्रस्तुतकर्ता कुमूदिनी नारखेडे को राष्ट्रसेवा पुरस्कार का सम्मान


जलगांव शहर सहित खान्देश भर में रंगोलियों के माध्यम से अपनी पहचान स्थापित करनेवाली श्रीमती कुमूदिनी नारखेडे को मणिभाई देसाई प्रतिष्ठान व नेहरू युवा केंद्र और क्रीडा मंत्रालय भारत सरकार के संयुक्त तत्वाधान के 'मणिभाई देसाई राष्ट्रसेवा पुरस्कार दिये जाने की घोषणा की गयी। विदित हो कि, यह पुरस्कार रंगोली व सांस्कृतिक क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए प्रदान किये जाते है। आगामी २७ अप्रैल को पूना के एस.एम.जोशी फाउंडेशन सभागृह, स्वारगेट में शाम 6 बजे संपन्न होनेवाले एक समारोह में श्रीमती कुमूदिनी नारखेडे को राष्ट्र सेवा पुरस्कार प्रदान किया जायेगा। इस अवसर पर कार्यक्रम में प्रमुख अतिथीयों के रुप में राज्य ग्रामविकास मंत्री जयंत पाटिल, पिंप्री-चिंचवड की महापौर श्रीमती मोहिनी लांडे, पूना जिला परिषद के अध्यक्ष दत्ता भरणे आदि प्रमुख रुप से उपस्थित रहेंगे।



खान्देश में रंगोली की चलती फिरती पाठशाला है कुमुदिनी नारखेडे

जलगांव के पुराने शहर परिसर में रहने वाली श्रीमती कुमुदिनी विजय नारखेडे को उनकी कलात्मक रंगोली कला के चलते जलगांव सहित धुलिया, नंदुरबार, शहादा, दोंडाईचा आदि स्थानों पर रंगोली की चलती फिरती पाठशाला के रूप में पहचाना जाने लगा है । चुटकियों में सूखे रंगों से धरातल पर भावनाओं को उकेरते हुए सुंदर कलाकृति को जन्म देने वाली कुमुदिनी नारखेडे द्वारा अपने सिद्धस्थ हाथों से लगातार १९७४ से रंगोली बनाते हुए न जाने कितने कलात्मक स्वरूपों को मूर्तरूप दिया है। हाल ही में राष्ट्रगान के १०० वर्ष पूरे होने पर विगत २७ फरवरी को जलगांव के मूलजी जेठाजी महाविद्यालय परिसर में १०० फिट व्यास की रंगोली बनाकर श्रीमती कुमूदिनी नारखेडे द्वारा अपनी कला के नये आयामों को प्रस्तुत किया।
 

  धार्मिक स्वभाववाली कुमुदिनीजी द्वारा राज्यशास्त्र में परास्नातक की उपाधि रखने के अलावा मराठी भाषा में भी परास्नातक उपाधि का प्रभुत्व रखा गया है । इतना ही नही आज अपनी बढती उम्र के बावजूद शिक्षण के प्रति लगाव रखते हुए कुमुदिनीजी द्वारा उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय में रंगोली परिवार के जतन व संवर्धन विषय को लेकर पीएचडी की जा रही है । अहिल्यादेवी होलकर, रानी लक्ष्मीबाई, खान्देश कवियत्री बहिणाबाई चौधरी को अपना आदर्श मानने वाली कुमुदिनीजी द्वारा वर्ष २००४ से विभिन्न समाचार पत्रों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर लगभग दो दर्जन लेख, शोध आदि प्रस्तुत किये गये है । महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देविसिंह पाटिल के जलगांव आगमन पर रंगोली प्रस्तुतिकरण के लिए कुमुदिनीजी को जिम्मेदारी दिये जाना, राष्ट्रीय स्वयंसेवक के सरसंघचालक मोहन भागवत  के वर्ष २००७ में विशाल हिंदु संमेलन के संबोधन पर विशेष रूप से रंगोली उकेरना एवं पूर्व उपराष्ट्रपति भैरवसिंह शेखावत के जलगांव आगमन पर रंगोली कला से उनका स्वागत करना इन तीनों क्षणों को कुमुदिनीजी द्वारा अपने लिए सौभाग्य व यादगार लम्हे के रूप में याद किया जाता है। 


 इन सबके अलावा कुमुदिनीजी को आदर्श माता पुरस्कार, रंगावली भूषण पुरस्कार, मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से नंदुरबार में सम्मान, विश्व सुर्यनमस्कार दिवस पर रंगोली रेखांटन पर सम्मान आदि से सम्मानित किया जा चुका है ।  कुमुदिनी नारखेडे का कहना है कि रंगोली एक लोककला के माध्यम से शास्त्रों व हिंदु संस्कृति में मंगलकारक, अशुभनिवारक मानी गयी है । जिसके प्रमाण मंगलवाद्ययंत्रो, मंत्रो के उच्चारण एवं अन्य धार्मिक वातावरण निर्माण करने वाले बिंदूओं में माने गये है । रंगोली को एक सांस्कृतिक देन मानते हुए कुमुदिनीजी द्वारा उसे सकारात्मकता का प्रतिक भी सिद्ध किया गया है । इतना ही नही संस्कृति के संकलन के साथ समाज में सौंदर्य व साक्षात्कार व सिद्धियों के प्राप्ति के रूप में भी उल्लेखित किया गया है । शहर में निकलने वाले गणपति विसर्जन उत्सव एवं लगभग १०० से अधिक वर्ष पुरानी रथोत्सव परंपरा में प्रमुख मार्गो पर यां यू कह ले इस आयोजन के संपूर्ण मार्ग पर श्रीमती कुमुदिनी नारखेडे व उनके द्वारा स्थापित किया गया श्रीराम रंगोली समूह के शिक्षार्थी व अन्य सहयोगी महिलाओं द्वारा सुंदर, रंगबिरंगी , सकारात्मक एवं उद्देश्यपूर्ण रंगोलियां बना कर शहर की सुंदरता में चार चांद लगाये जाते है ।

  इसके अलावा कुमुदिनीजी द्वारा अब खान्देश के धुलिया,नंदुरबार, जलगांव जिलों के अलावा महाराष्ट्र भर के कई इलाकों में रंगोली पर व्याख्यान से लेकर कला प्रस्तुति की जाती है ।
 

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