विश्व में सबसे छोटी ३०० वर्ष पुरानी बालकृष्ण की मूर्ति का दावा,




विश्व में सबसे छोटी ३०० वर्ष पुरानी  बालकृष्ण की मूर्ति का दावा,
विशाल चड्ढा  । जलगांव


              
जलगांव जिले के धरणगांव शहर में बालकृष्ण स्वरुप की एक ३०० वर्ष पुरानी मूर्ति अपने अलौकिक स्वरुप में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के लिए सुशोभित है। वर्षो से इस मूर्ति की पूजा अर्चना कर रहे जोशी परिवार का दावा है कि, बालगोपाल के स्वरुप में विद्यमान यह चांदी की मूर्ति विश्व में सबसे छोटी मूर्ति के रुप में मौजूद है। हालांकी जोशी परिवार द्वारा पुरातन सर्वेक्षण विभाग, लिम्का बुक या अन्य प्रकारके दावों के प्रयोग से इन्कार करते हुए इस मूर्ति की पीढी दर पीढी चली आ रही पूजा अर्चना को ही आधार माना है।  जोशी परिवार का दावा है कि, एक वयस्क इन्सान के हांथ की सबसे छोटी उंगली के नाखुन के  बराबर की यह कृष्ण मूर्ति विश्व की सबसे छोटी मूर्ति है। इस मूर्ति को चांदी की ठोस धातु से बनाया गया है। किंतू मूर्ति के  निर्माण में एक विशेष कलाकृ ती का ध्यान रखा गया है। जोशी परिवार इसे कृष्ण की भक्ति व चमत्कार का परिणाम बताता है कि, ठोस स्वरुप में बनाई गयी इस मूर्ति के नख-शिख तक स्नेह, चमक, व अपार श्रध्दा भरी हुई है। धरणगांव के रसिक कुंज में रहनेवाले राजरसिक मथुरादास जोशी को वर्ष १९६२ में उनके विवाह पर यह अप्रतिम मूर्ति उनकी सासू मां द्वारा उपहार में दी गई थी। राजरसिक मथुरादास जोशी का विवाह वर्धा की रहनेवाली राजचंद्रिका भट के साथ हुआ था। गुजराती ब्राह्मण परिवार होने के चलते परंपराओं में श्रीकृष्ण भगवान के श्रीनाथजी स्वरुप की पूजा करने के कारण राजरसिक मथुरादास जोशी  की सासू मां द्वारा विवाह के समय इस मूर्ति को अपनी तीन पीढीयों के वरदान के रुप में सहेज कर दामाद बाबू को यह मूर्ति दी गई। पीढी दर पीढी परिवार के अन्य सदस्यों में पहुंच रही इस मूर्ति को इसी आधार पर ३०० वर्ष पुराना माना जा रहा है। परंपरागत तरीके से रोजाना इस अलौकिक नाखुन के बराबर उंचाई वाली कृष्ण मूर्ति की पूजा की जा रही है। जोशी परिवार का कहना है कि, इस मूर्ति के परिवार में आने के बाद से उनके जीवन में चमत्कार ही चमत्कार हुये है। एक पुराने चाय विके्रता के यहां नौकरी करते हुए किराए के मकान में रहनेवाले राजरसिक मथुरादास जोशी को विवाह के उपरान्त इंदौर में चाय विक्रेता मकान मालिक द्वारा उपहार में वह घर दे दिया गया। इसके उपरान्त दिन बदलते गये और कालातंर में दो बेटियों की शादी, किराए के मकान से बडी इमारत, बेटे का सफल कामकाज, सब कुछ बदल गया। जोशी परिवार द्वारा बताया गया कि, उनकी बडी बेटी के यहां दो बेटियां  है।  जिसके चलते बडी बेटी अवंतिका इस बाल गोपाल स्वरुप को अपना बेटा मानती है। एक बार वह राजकोट से धरणगांव के लिए रवाना होने से पहले बालगोपाल स्वरुप के लिए प्रसाद हेतू एक मिठांई के दुकान में गई वहां अवंतिका की जिज्ञासा को देखते हुए दुकानदार द्वारा जब इस सबसे छोटी मूर्ति के बारे में सुना तो इस मूर्ति का प्रचार गुजरात में फै ल गया। अब आलम यह है कि, गुजरात में श्रीकृष्ण को सर्वाधिक पूजा जाने के चलते लोगों द्वारा निरतंर दर्शनों के लिए आना-जाना जारी रहता है। 

          राजरसिक मथुरादास जोशी द्वारा बताया गया कि, जामनगर से तो एक बस भरकर श्रध्दालु धरणगांव पहुंचे थे। इन सबके बीच दर्शनों में वर्ष १९६२ से बनाये गये नियमों को आज भी जारी रखा जा रहा है। इस सबसे छोटी मूर्ति के दर्शन व पूजा अर्चना के लिए सुबह १० बजे से १२ बजे का समय निर्धारित किया गया है। इस समय के उपरान्त कितना भी रसुखदार इन्सान भी पहुंच जाये तो भी जोशी परिवार नियम भंग करते हुए दर्शन नही देते।

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