भरत नाट्यम की मंझी हुई कला कारा है शालिनी राव,






भरत नाट्यम की  मंझी हुई कलाकारा है शालिनी राव,

 बेटी की  ही चाह के  लिए करती थी प्रार्थना

विशाल चड्ढा, जलगांव


जलगांव - बिहार में जन्मी एवं आसाम में पली-बढी शालिनी राव ने जलगांव में जिलाधिकारी निरंजन सुधांशू की  पत्नी के  परिचय के  साथ अपनी एक अलग पहचान को  स्थापित करते हुए जलगांव से विदा ली।


जलगांव के  जिलाधिकारी रह चुके  निरंजन सुधांशू के  एक विशेष प्रशिक्षण के  लिए चयन होने पर बैंगलोर स्थानांतरण के  साथ श्रीमती शालिनी राव ने अपने जलगांव के  अनुभव को  खुलकर व्यक्त करते हुए इस शहर से स्वयं को  भावनात्मक रुप से जोड लिया।




श्रीमती शालिनी राव ने जलगांव से जाने से पहले अपने भीतर समायी एक कला को  सार्वजनिक मंच पर प्रस्तुत करते हुए शहर के  लोगों को  यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि , जलगांव के  जिलाधिकारी निरंजन सुधांशू व उनकी  पत्नी श्रीमती शालिनी राव के  रुप में दो मंझे हुये कलाकार अब तक जलगांव में मौजूद थे। और स्थानीय लोगों ने उनकी  कला को  करीब से महसूस भी नहीं कर पाया।
बिहार में आयएएस अधिकारी पिता के  घर जन्मी शालिनी राव को  बचपन से ही नृत्य का शौक था। उस दौर में टेलीविजन पर रात को  सांस्कृतिक कार्यक्रमों में विभिन्न लोक संस्कृति के  कत्थक, कुचिपुडी, भरत नाट्यम जैसे कार्यक्रमों की  प्रस्तुति होती थी। बचपन में ही उनके  पिता श्री विरेंद्र प्रसाद राव का आसाम कैडर में होने के  चलते गुवाहाटी स्थानांतरण को  गया। जहां पर शालिनी राव के  मातापिता ने मात्र ६ साल की  उम्र में ही उनके  नृत्य शौक को  देखते हुए भरतनाट्यम की  कक्षाएं लगा दी। शालिनीजी बताती है कि , भरतनाट्यम में भरपूर मेहनत के  चलते बचपन में असहनीय थकान ने उन्हे इस कला से दूर करना चाहा। किंतु उनके  पिता का दबाव और प्रेरणा उन्हे भरतनाट्यम की  ओर ढकेलती गयी। ऐसे में समय समय पर पिताजी के  स्थानांतरण के  साथ जहां भी गये भरतनाट्यम सीखा। शालिनीजी का कहना है कि , प्रारंभिक शिक्षा आसाम में पूरी करने के  बाद वह लोग दिल्ली चले आये। जहां पर उन्होने पहलीबार सरदार नवतेजसिंह जौहर से व्यवसायि· तौर पर भरतनाट्यम की  शिक्षा ली। उन्होने बताया कि , भरतनाट्यम में कला क्षेत्र घराना व तंजौर घराना दोनों में से कठीन स्वरुप में उन्होने कलाक्षेत्र घराने को  चुनते हुए गुरु जौहर से भरत नाट्यम के  बारीकी  के  गुर सीखे। शालिनीजी ने बताया कि , कलाक्षेत्र घराना के  अंतर्गत नवतेज जी एक मात्र सरदार भरतनाट्यम में दिग्गज नाम है।
 समय के  साथ उनके  पिता ने बिहार में निरंजन को  उनके  लिए पसंद करते हुए मार्च २००४ में उनका विवाह कर दिया। किंतु इस रिश्ते से पहले रुढीवादीता से परे शालिनी राव ने निरंजन सुधांशू से स्पष्ट रुप से बातचीत करते हुए बताया कि , वह विवाह के  बाद भी भरतनाट्यम जारी रखेगी। शालिनीजी का कहना है कि ,स्वयं निरंजन उनके  भरतनाट्यम में संलग्र होने के  कारण विवाह के  लिए उत्सुक थे। आज पूरी तरह से सहयोग करते हुए निरंजन द्वारा शालिनीजी को  प्रोत्साहन दिया जाता है। इतना ही नहीं रोजाना की  प्रैक्टिस में भी निरंजन सुधांशू द्वारा शालिनी को  समय-समय पर याद दिलाते हुए बाकी  अन्य कार्यों को  अपने जिम्मे लेते हुए कला के  प्रति अपने समर्पण भाव को  दर्शाया जाता है। वर्ष २००४ में गोंदिया आने पर शालिनी को  छोटे से शहर के  चलते अपने भरतनाट्यम के  खो जाने का भय सताने लगा।
ऐसे में जानकारी हासिल करते हुए शालिनीजी ने नागपूर में भरतनाट्यम के  गुरु किशोर हम्पीहोली के  पास जाकर पुन: अपनी नृत्य शिक्षा प्रारंभ की । इस रोचक कला के  जुनून में शालिनीजी ने नागपूर आकर भरतनाट्यम की  दो घंटे की  प्रैक्टिस के  लिए आवागमन के  ६ घंटो का सफर रोजाना करना  स्वीकार कि या।




 किंतु मेहनत व कला के  अपने लगाव को  अपने से दूर नहीं जाने दिया। नागपूर के  बाद श्री सुधांशू के  पूना स्थानांतरण के  बाद एक बार फिर से नये शहर में नयी तलाश प्रारंभ हो गयी। जिसमें श्री हम्पी होलीजी की  सहायता से कलाक्षेत्र घराने की  ही अनुराधा शिंदे शिक्षिका के  साथ भरत नाट्यम की  अरंगनेत्रम, रंगमंच प्रस्तुति आदि को  सीखा। जिसके  लिए उन्होने रोजाना ६ घंटे की  प्रैक्टिस को  स्वीकार कि या। इस दौरान पूर्व में गिर पडी शालिनी राव के  दाहिने घुटने में लगी अंदरुनी चोट फिर से उभर आयी। और उन्हे पूना में पडे अस्पताल का रुख करना पडा। सुधा चंद्रन की  नाचे मयुरी को  याद करते हुए शालिनी बताती है कि , डॉक्टर द्वारा उन्हे भरत नाट्यम छोडने व पूरी तरह से आराम करने के  निर्देश दिये गये। कुछ दिन तक मोटा सा पट्टा बांध कर घर पर बैठी शालिनी ने अचानक अपनी ईश्वर के  प्रति निष्ठा को  साक्षी मानते हुए घुटनो में बंधा पट्टा उखाड फेंका और भरत नाट्यम में पुन: लीन हो गयी।

 इसे ईश्वरीय आस्था कहा जायेगा कि , शालिनीजी द्वारा पुन: अपने इस कला समर्पण को  पा लिया गया। आसाम में महाविद्यालय जीवन से लेकर अब तक शालिनीजी ने छोटे-बडे चार दर्जन से अधिक शो प्रस्तुत किये है। इनमें वह अपने नई दिल्ली निवास के  समय की  गुरु प्रख्यात उमा शर्माजी के  साथ १९९६ में लाल कि ले पर हुए एक महोत्सव में सीता के  किरदार के  रुप में प्रस्तुत किये गये कार्यक्रम को  यादगार मानती है। अब तक शालिनीजी द्वारा दूरदर्शन पर राष्ट्रीय प्रस्तुति, आसाम लोककला प्रस्तुति, महाराष्ट्र में एलोरा फेस्टीवल, रायपुर में कालिदास महोत्सव, बनारस में शिवरात्री पर आयोजित कार्यक्रम, पूना, हैद्राबाद आदि स्थानों पर अपनी नृत्य प्रस्तुति की  है। शालिनी राव द्वारा विभिन्न कार्यक्रम के  माध्यम से भरतनाट्यम के  रंगमंच पर मुमताज का किरदार निभाया है।
 नृत्य के  प्रति उनमें इतना समर्पण है कि , जब वह मां बननेवाली थी तब वह रोजाना ईश्वर से बेटी की  ही मांग करती थी। शालिनीजी ने उन दिनों के  अपने इस अनुभव को  बहुत उत्सुकता के  साथ बताया कि , जब वह डॉक्टरी जांच या अन्य कार्य से अस्पताल जाती थी तो उनके  मुंह पर एक ही रट होती थी कि , मुझे बेटी चाहिए। उन्होने बताया कि , एक बार तो डॉक्टर महोदया उनका बेटीवाला शोर सुनकर बाहर गैलरी तक यह देखने आयी कि , इस दौर में कौन है जो बेटी की  ही रट लगा रहा है। इसके  प्रति शालिनी का कहना है कि , वह चाहती है कि , उनकी  बेटी भरत नाट्यम में उनका अनुसरण करे। यदि ऐसे में बेटा होता तो शायद वह भरतनाट्यम के  प्रति उदासीन होता। उन्हे ईश्वर का शुक्र है कि , बेटी ने ही जन्म लिया। भले ही अब वह आगामी स्पर्धात्मक युग में उनके  इस स्वप्र को  पूरा ना कर पाए। हालांकि  शालिनीजी द्वारा इसके  लिए अभी से सोचना व प्रयास  करना प्रारंभ कर दिया है। बेबाक तरीके  से अपनी बात को  प्रस्तुत करते हुए शालिनी राव ने बताया कि , एक अधिकारी की  पत्नी होने के  चलते उन्हे खुले स्वरुप में अपने शो प्रस्तुत करने में परेशानी होती है। किंतु फिर भी सीमाएं बंध जाने के  बावजूद उनके  अधिकारी पति का पूरा सहयोग रहता है।
अपने पूना के  एक शो के  बारे में शालिनी जी ने बताया कि , सारे रिश्तेदार, माता-पिता सभी उस शो के  लिए विशेष रुप से उपस्थित हुये। ऐसे में जब शो प्रारंभ होने ही जा रहा था, तब उन्होने अपने पति निरंजन सुधांशू को  फोन लगाकर पूछा की  कहा है, तो निरंजन ने बताया कि , कमिश्नर साहब के  साथ एक आवश्यक बैठक चल रही है। जिसपर बुरी तरह से नाराज होते हुए मैने उन्हे कह डाला कि , घर में भी कदम मत रखना। जैसे-तैसे निरंजन शो देखने पहुंच गये। बाद में पता चला कि , उन्होने कमिश्नर साहब ·को  सारी बात सत्य बता दी थी।
 बिहार में भरतनाट्यम को  लेकर एक संस्थान खोलने की  इच्छा व्यक्त करते हुए शालिनीजी ने बताया कि , जलगांव में मात्र  एक साल के  अपने सफर में उन्होने ७० बच्चों को  भरतनाट्यम की  शिक्षा दी। उन्होने अफसोस भी जताया कि , विदेशी यहां आकर भारत की  संस्कृति, लोककला सीखना चाहते है। और हम शीला की  जवानी पर अटके  हुए है।

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